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रक्षाबंधन पर्व पर क्यों मनाते हैं संस्कृत दिवस, जानिए संस्कृत से जुड़ा स्वर्णिम इतिहास

संस्कृत सप्ताह का आरंभ वर्ष 1969 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से हुआ। तब से केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस रक्षाबंधन अर्थात श्रावण पूर्णिमा को संस्कृत दिवस मनाया जाता है । भारत सहित कई देशों में श्रावण पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस मनाया जाता है। हमारे संत ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि श्रोता हैं। इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को  ऋषि पर्व और संस्कृत दिवस  मनाया जाता है। वर्ष 2000-01 में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के पहल करने से संस्कृत वर्ष मनाया गया। और प्रथम बार संस्कृत सप्ताह मनाया जाना प्रारंभ हुआ।



अब संस्कृत सप्ताह का आयोजन

संस्कृत सप्ताह रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा से 3 दिन पूर्व और 3 दिन बाद तक मनाया जाता है। और रक्षाबंधन के दिन संस्कृत दिवस का आयोजन किया जाता है। संस्कृत भारती के जिला अध्यक्ष आचार्य सुखेद्र द्विवेदी ने बताया कि संस्कृत भारती नामक संगठन जो एक अखिल भारतीय संगठन है। यह हर राज्य में कार्य कर रहा है। जिसका मुख्य उद्देश्य संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार और संस्कृत की महत्ता को  बनाए रखना और संस्कृत में वार्तालाप के साथ देश सेवा को प्रोत्साहित करना है । 

छत्तीसगढ़ संस्कृत बोर्ड का गठन

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 25 मार्च 2003 को छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्या मंडलम अर्थात संस्कृत बोर्ड की स्थापना हुई। इसके बाद वर्ष 2003 से संस्कृत सप्ताह संस्कृत भारतीय संगठन छत्तीसगढ़ एवं संस्कृत विद्या मंडल मिलकर हर वर्ष संस्कृत सप्ताह मनाने लगे। साथ ही अन्य शिक्षण संस्थाओं के द्वारा भी पूरे छत्तीसगढ़ में संस्कृत सप्ताह मनाया जाता है। सभी विद्यालयों- महाविद्यालयों तथा सामाजिक स्तर में 7 दिन तक अलग-अलग संस्कृत के कार्यक्रम जैसे विद्युत गोष्टी, श्लोक प्रतियोगिता ,संस्कृत संभाषण प्रतियोगिता, वीथी नाटक ,संस्कृत संभाषण शिविर, रैली ,संस्कृत विज्यान्प्रदर्शनी ,आदि का  आयोजन किया जाता है। 

इनकी सक्रिय भागीदारी

संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डॉ सत्येंद्र सिंह सिंगर, संगठन मंत्री हेमंत साहू, प्रांत मंत्री दादू भाई त्रिपाठी, शिक्षण प्रमुख लक्ष्मीकांत पंडा सहित महासमुंद जिला के जिला अध्यक्ष आचार्य सुखेन्द्र  द्विवेदी, बिलासपुर से दामोदर सोनी, राजीव तिवारी, प्रफुल्ल त्रिपाठी सहित अनेक विद्वान एवं छात्र-छात्राएं विद्या मंडलम से अन्य संस्कृत के विद्वान इसमें भाग लेंगे। 

सभी भाषाओं की जननी और प्राचीन भाषा है संस्कृत

संस्कृत को सभी लोग देव भाषा और पुराणों की भाषा समझते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी है कि यह जन-जन की भाषा है। भारतीय पुरातन संस्कृति और सनातन संस्कृति को बचाए रखने में संस्कृत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।जितने भी वेद पुराण ग्रंथ हैं, वे सभी मूल रूप में संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। वेद पुराणों की महत्ता को देखते हुए अब विश्व की अन्य भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा रहा है ।यदि वेद पुराण उपनिषद के मूल उपनिषद के अर्थ को समझना हो तो संस्कृत भाषा सीखना आवश्यक है। पहले के समय में हर कोई संस्कृत को जानता और समझता था। इसलिए ही तो पहले के समय सभी वेद पुराण शास्त्र सब संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं । प्राचीन भाषा के प्रति जागरूकता फैलाना अति आवश्यक है। आज की पीढ़ी केवल धन संचय करने में लगी हुई है । संस्कृत ऐसी भाषा है जो जीवन को समृद्ध बना सकती है।  श्रावण पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है और उस सप्ताह को संस्कृत सप्ताह कहते हैं।  ऋषियों ने ही संस्कृत में विविध ग्रंथों की रचना कर हमारी विरासत को सहेजे रखा है। इसलिए ऋषि परंपरा को सम्मान देने श्रावण पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के लिए चयन किया गया ।

सप्ताहभर विविध आयोजन

संस्कृत भाषा के प्रचार प्रमुख एवं जिला अध्यक्ष आचार्य सुखेंद्र द्विवेदी ने बताया कि संस्कृत दिवस और संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत भाषा के संरक्षण प्रचार से संबंधित चर्चा,  गोष्ठी, संस्कृत में संभाषण, संस्कृत प्रश्नोत्तरी, व्याख्यान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा के साथ अधिक से अधिक लोगों को संस्कृत के प्रति लगाव हो । संस्कृत को कैरियर के रूप में अपनाने संस्कृत के माध्यम से देश सेवा करने के प्रति जोर दिया जा रहा है। ताकि आम जनता के साथ पढ़ने वाले बच्चे संस्कृत की महत्ता, संस्कृत के ग्रंथों की समझ रख सकें। और उससे उन्हें लगाव हो सके । संस्कृत विज्ञान की भाषा है, दिव्य भाषा है । सभी भाषाओं की जननी और दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है । यह किसी प्रकार कठिन भाषा नहीं, बल्कि बहुत ही सरल भाषा है ।आवश्यकता बस इसे सही तरीके से सीखने, दैनिक उपयोग में लाने की है।  

संस्कृत भाषा हो स्कूल पाठ्यक्रम में

केंद्र सरकार और सभी राज्यों के सरकारों से मांग किया जा रहा है कि जैसे अंग्रेजी भाषा के छोटे बच्चों के स्कूल में पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया गया है वैसा ही संस्कृत भाषा को भी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करें।  और संस्कृत के वेद शास्त्र गीता को कक्षा एक से बारहवीं तक के शिक्षा में शामिल करते हुए ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जावे जो 12वीं पास करते तक बच्चे को संस्कृत की महत्ता, वेद में समाजिक विज्ञान समझ आ सके।  एक से बारहवीं तक संस्कृत एक अनिवार्य विषय के रूप में हो। केवल कोर्स पूरा करने से ना हो, उसके जीवन में भी उतरे । संस्कृत पढ़ कर आगे की पढ़ाई हेतु कॉलेज में डिग्री लेकर अपने कैरियर को समाज के वैदिक विचारो को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ।

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