छत्तीसगढ़ राज्य के वनों में पाए जाने वाले औषधीय पौधों के गुणों का विश्लेषण और प्रमाणीकरण करने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान, मुंबई द्वारा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को एक परियोजना स्वीकृत हुई है। इस परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले महत्वपूर्ण औषधीय पौधों के रासायनिक तत्वों पर अनुसंधान काम करते हुए वैज्ञानिक तरीके से औषधीय पौधों में पाए जाने वाले विशेष तत्वों की खोज और प्रमाणीकरण किया जाएगा।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रदत्त इस परियोजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले महत्वपूर्ण औषधीय पौधें जैसे बच, मामफल, केऊकंद, चरोटा, काली मूसली, तिखुर, कालमेघ और अन्य महत्वपूर्ण औषधीय पौधों को छत्तीसगढ़ के तीनों जलवायविक क्षेत्रों सरगुजा, बस्तर और मैदानी क्षेत्रों से एकत्रित किया जाएगा और पौधों में पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों का विश्लेषण किया जाएगा।
इन्हें मिली जिम्मेदारी
अनुसंधान कार्यों से यह पता लगाया जाएगा कि विभिन्न जलवायविक परिस्थितियों में रासायनिक तत्वों में क्या बदलाव आता है और कौन से क्षेत्र के किन पौधों में औषधीय रूप से महत्वपूर्ण रासायनिक तत्व ज्यादा पाए जाते है। इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिए एस.एस. टुटेजा को प्रमुख अन्वेषक और सह- अन्वेषक डॉ एस.एल. स्वामी और डॉ. धर्मेन्द्र खोखर का बनाया गया है। परियोजना में अनुसंधान कार्य भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान के डॉ. ए.के. बौरी के मार्गदर्शन में किया जाएगा।
200 किस्मों के औषधीय पौधों का रोपण
बता दें कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वद्यिालय के औषधीय सगंध पौध और अकाष्ठीय वनोपज उत्कृष्ठता केन्द्र, रायपुर में औषधीय और सगंध पौधों अनुसंधान और विस्तार कार्य किया जाता है। साथ ही साथ उन्नत जातियों की पौध सामग्री तैयार की जाती है। कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय उद्यान भी तैयार किया गया है जिसमें विभिन्न प्रकार के लगभग 200 किस्मों के औषधीय और सगंध पौधों को लगाया गया है।