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धान के मुख्य कीटो का ऐसे करें नियंत्रण, नहीं होगा फसलों को नुकसान

कृषि विज्ञान केंद्र नारायणपुर धान की फसल नारायणपुर जिले के 90 प्रतिशत किसानों की आजीविका की एकमात्र सहारा है। अभी नारायणपुर क्षेत्र के अधिकतर भाग में धान की रोपनी लगभग हो चुकी है और जो किसान भाई आग्रिम बुवाई-रोपाई किए हैं उनके खेतो में शत्रु कीटो का प्रकोप देखा जा रहा है। जिनके प्रबंधन के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा लगातार किसानों का प्रक्षेत्र भ्रमण कर प्रबंधन के लिए सलाह प्रदान किया जा रहा है।  


इसी कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र नारायणपुर से सुरज गोलदार (कार्यक्रम सहायक पौध रोग विज्ञान) और ग्रामीण कृषि विस्तार आधिकारी प्रभात बिस्वास द्वारा ग्राम बखरुपारा के किसान सुरेन्द्र सिंह के खेत का अवलोकन किया और देखा गया कि उनके खेत में तना छेदक और पत्ती मोडक कीटो का प्रकोप हुआ है। इसके निराकरण के उपाय बताए गए हैं। किसान धान के विभिन्न कीटों का नियंत्रण सुझाए गए तरीके अपनाकर कर सकते हैं। जिन कीटों से धान की फसल की हानि होती है उनमें तना छेदक, कीट प्रमुख है। 


पीले रंग की इल्लियां


कभी कभी धान के नर्सरी स्टेज में भी देखा जा सकता है, लेकिन इसका प्रकोप रोपाई के 15-20 दिन के बाद से धान की बाली निकलते समय तक अधिक दिखाई देता है। यह कीट तने के अंदर घुसकर तना के मुख्य भाग को खाता है जिससे धान के पौधे के मध्य की पत्तिया और तना सूख जाती है और उस तने को खींचने से आसानी से बाहर निकल जाती है। तना के निचले भाग को देखने से वहा एक छोटा सा पिन के आकार का छेद दिखाई देता है और उस भाग को चीरकर देखने से यह कीट देखा जा सकता है। तना छेदक की इल्लियां हल्के पीले रंग के होते है।ॉ


पत्तियों से रस चूसकर पौधे को करती है कमजोर


इसके अलावा पत्ती मोडक कीट पत्ती को गोलाकार में मोड़कर पत्ती के हरा भाग को खुरचकर खाती है, जिससे पत्तियों पर सफेद धरियां बन जाती है। इसके रोकथाम के लिए कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत जी. 5 कि.ग्रा. प्रति एकड़ छिड़काव और फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 400 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए। माहू - ये फसल में गभोट और बाली अवस्था में ज्यादा नुकसान पहुंचाते है। सफेद, हरा और भूरा महू का फसल में प्रकोप होता है। ये तने और पत्तियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करते हैं। इसके ज्यादा प्रकोप से फसल झुलसी हुई दिखाई देता है और पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।


इतनी मात्रा में करें स्प्रे 


वहीं गंधी बग मच्छर के आकृति के, मच्छर से बडे आकार के हरापन लिए भूरा रंग के होते है, ये कीट पत्तियों से और मुख्यतरू बलियो से रस चूसते हैं। इससे दाने पोंचे रह जाते हैं। कटुआ- कटुआ (आर्मी वार्म) किट के इल्ली हल्के हरे से भूरे रंग के और शरीर के ऊपर सफेद हल्के पीले रंग के धरियां पाई जाती है। ये कीट नर्सरी अवस्था में पत्तियों को और बाली अवस्था में बलियों को काटकर खेत में गिरा देते हैं। माहू, गंधी बग और कटुआ कीट के रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 4 प्रतिशत, थायोमिथेक्साम 4 प्रतिशत एस.सी. 30-40 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए। वहीं थायोमिथेक्साम 5 प्रतिशत W.जी. 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए या लैम्डा साईहेलोथिन 5 प्रतिशत ई.सी. 7.5-10 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए और थायोमिथेक्साम 12.6 प्रतिशत, लैम्डा साईहेलोथिन 9.5 प्रतिशत जेड.सी. 6-8 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए।

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