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बस्तर के हस्तशिल्प को मिल रही नई पहचान, प्रोफेशनल डिजाइनरों की मदद से महिला समूह कर रहे नये-नये प्रयोग


रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप बस्तर जिला प्रशासन द्वारा बस्तर की लोककला, शिल्पकला, संस्कृति, पर्यटन एवं अन्य स्थानीय कलाओं को देश-दुनिया मे पहचान दिलाने नित नये प्रयोग किये जा रहे हैं। वैसे तो बस्तर आर्ट देश-दुनिया मे पहले ही विख्यात है, पर उसका लाभ स्थानीय कलाकारों को कम ही मिल पाता है। बस्तर आर्ट की अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी जबरदस्त मांग है, पर मार्केटिंग की बारीकियों की जानकारी न होने की वजह से शिल्पकारों को उनकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिल पाता है।





उल्लेखनीय है कि ग्रामोद्योग मंत्री गुरू रूद्रकुमार के निर्देशन में आमचो बस्तर की भावना को केंद्र में रखते हुये जिला प्रशासन नित नये प्रयोग कर रहा है। जिसमें महिला समूह को निर्माण, यूनिक डिजाइन, मार्केटिंग, एकाउंटिंग में प्रशिक्षण देकर उसे आकर्षक एवं बाजार के मांग अनुरूप सामग्रियां और वैल्यू एडेड उत्पादों का निर्माण करवाया जा रहा है। वर्तमान में महिला समूह के उत्पादों की मार्केटिंग हेतु ट्राईफेड, बस्तर कला गुड़ी, ट्राइबल टोकनी, लोका बाजार, सॉफ्टवेयर, पंखुड़ी सेवा समिति, अमचो बस्तर बाजार, सहित अन्य संबंधित संस्थानों से अनुबंध करवाया गया है, जिसका अच्छा प्रतिफल मिल भी रहा है।





बस्तर में समूह से जुड़ी महिलाएं इन दिनों कलाकृतियों में वैल्यू अडिशन करने में जुटी हुई है। पूर्व से प्रचलित बाँस कला, मृदा कला, टेराकोटा, तुम्बा आर्ट, सीसल कला, हस्त निर्मित अगरबत्तियां एवं धूपबत्ती और ढोकरा क्राफ्ट के नये आकर्षक डिजाइनों से संभावनाओं को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है। बस्तर कलेक्टर श्री रजत बंसल ने बताया कि परंपरागत एवं नए डिजाइन के प्रोडक्ट्स की अच्छी मांग आ रही है।





सोशल और डिजिटल प्लेटफार्म में प्रोडक्ट्स के प्रचार से विक्रय में भी बढ़ोत्तरी हुई है। हम निरंतर मार्केटिंग सिस्टम को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। बस्तर हस्तशिल्प को पर्यटन से जोड़ने की भी जिला प्रशासन की योजना है इसके तहत मुख्य पर्यटन स्थलों मे सुविनियर शॉप खोले जाएंगे, जिसमें बस्तर की सभी कलाकृतियों को प्रदर्शन व विक्रय हेतु रखा जाएगा। बस्तर जिला प्रशासन की इस पहल से एक ओर जहाँ दिशा खो रही बस्तर हस्तशिल्प को एक नई दशा और दिशा मिलेगी। साथ ही हस्तशिल्पियों को निरंतर काम और आजीविका में भी वृद्धि होगी। जिससे भावी पीढ़ी बस्तर हस्तशिल्प को आजीविका के रूप में अपनाने के लिए भी प्रेरित होगी।


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