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इंसानियत जिंदा है साहब : सात समुंदर पार से मिली लाचारों को मदद, युवाओं ने किया भरपेट भोजन की व्यवस्था


महासमुन्द। अपनी जान किसे प्यारा नहीं है। पर विपत्ति काल में दूसरों की मदद करने वाला ही मसीहा कहलाता है। महासमुन्द के युवाओं ने भी लॉक डाउन के समय में खुद की जान जोखिम में डालकर जनसेवा का बीड़ा उठाया। यह क्रम अभी भी जारी है। गरीब और लाचारों को भरपेट भोजन मिल सके, इसके लिए महासमुन्द के युवाओं ने पहल की। इस पर सात समुंदर पार से भी मदद मिली। इससे जरूरत मंद लोगों को दो वक्त का भोजन पहुँचाया जा रहा है।









सेवाभावी युवाओं ने बताया कि अमेरिका में निवासरत भारतीय मूल के नागरिकों ने मदद के लिए आर्थिक सहायता दी है। साहू समाज (नासा) द्वारा असहाय लोगों के भोजन व्यवस्था हेतु 25 हजार रुपये का आर्थिक सहयोग किया गया। अमेरिका में रह रहे साहू समाज संगठन (नार्थ अमेरिकन साहू एसोसिएशन-नासा) द्वारा मदद की गई। इस धनराशि और आपस में चंदा करके महासमुंद शहर में लाॅकडाऊन के दौरान भोजन परोसा गया। ऐसे लोग जिनकी रोजगार छिन गई थी। सुबह-शाम भोजन मिल पाना मुश्किल हो रहा था। सड़क किनारे भीख मांग कर अपना जीवन यापन करने वाले, मानसिक संतुलन खो बैठे लोगों को लाॅकडाऊन के दौरान आर्थिक मदद कर सुबह एवं शाम को भोजन उपलब्ध कराया।
महासमुन्द जिले मेें लाॅकडाऊन होने पर मेघराज साहू, प्रीतम साहू, प्रिया साहू, मंजू साहू एवं धरम निषाद ने भोजन व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाली। जिनके पास खाने की व्यवस्था नहीं हो रही थी, उन लोगो तक सुबह-शाम भोजन पहुँचाया गया।









सेवा से प्रभावित हुए अमेरिकावासी





युवाओं की सेवा की जानकारी अमेरिका में निवासरत चंद्रकांत साहू और घनी साहू को पता चला तो उन्होंने इसकी जानकारी अमेरिका में रह रहे साहू समाज (नासा) के सदस्यों को दी। सदस्यों द्वारा तुरंत ही लाॅकडाऊन पीड़ित लोगो को भोजन उपलब्ध कराने पच्चीस हजार रुपये सहायता राशि प्रदान की।









ऐसे आया मदद का ख्याल





मेेघराज साहू ने बताया कि वे किसी काम से जिला चिकित्सालय गये थे। जहां कोरोना सक्रंमित मरीज के परिजनों को बाहर भटकते देखा। होटल/कैटीन बंद होने के कारण उन्हें भोजन के लाले पड़ गए थे।  दूरस्थ अंचल से आये गरीब परिवार को असहाय होने के कारण भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। तब लाॅकडाऊन अवधि तक सुबह-शाम का भोजन वितरण करने का  विचार आया।  यथासंभव सुबह-शाम का भोजन उपलब्ध कराया गया। अभी भी यह सेवा जारी है। अब ऐसे लोगो की पहचान कर उन्हें आर्थिक सहायता और सूखा उनके घर तक पहुंचाया जा रहा है।





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