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रायपुर : गलघोटू और एकटंगिया रोग से बचाने 17.14 लाख पशुओं को लगा टीका

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पशुओं में बरसात के दिनों में होने वाली गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए राज्य में 17 लाख 14 हजार से अधिक पशुओं को अब तक टीका लगाया जा चुका है। पशुधन विकास विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पशुओं में होने वाली गलघोटू बीमारी से पशुधन हानि होने का अंदेशा रहता है। राज्य की सभी पशुपालकों को अपने पशुओं को इस बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण कराने की अपील की गई है।





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गलघोटू और एकटंगिया का टीका पशुधन विकास विभाग द्वारा शिविर लगाकर और पशु चिकित्सालयों और केन्द्रों में नियमित रूप से किया जा रहा है। गलघोटू बीमारी वर्षा ऋतु के शुरू होने पर रोगग्रस्त पशुओं के मल, मूत्र से चारागाह के प्रदूषित होने पर होती है। इसलिए इसे भू-जन्य रोग भी कहा जाता है। रोगी पशुओं में एकाएक तीव्र बुखार आता है, जिससे पशु सुस्त और खाने-पीने में अरुचि होती है। रक्त और श्लेष्मायुक्त दस्त के लक्षण दिखाई देने लगते है। रोगी पशु के गले निचले जबड़े के बीच दर्दयुक्त कड़ी सूजन दिखाई पड़ती है।





पशुओं में टीकाकरण कराने की अपील





जीभ सूजकर मुंह से बाहर निकलने लगती है। मुंह से लगातार लार बहने, श्वास लेने में बेचैनी इस रोग के प्रमुख लक्षण है। रोगग्रस्त पशु के गले और जीभ में सूजन अधिक बढ़ने के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है और दम घुटने से पशु की मृत्यु हो जाती है। पशुओं में गलघोटू रोग की रोकथाम की सर्वोत्तम उपाय प्रतिबंधात्क टीकाकरण ही है। पशुपालकों को वर्षाऋतु के शुरू होने से पहले ही अपने पशुओं में टीकाकरण कराने की अपील की गई है।





9 लाख 73 हजार पशुओं को लगा टीका





पशुधन विभाग द्वारा इस रोग के विरुद्ध निशुल्क प्रतिबंधात्मक टीकाकरण कार्य मिशन मोड पर किया जा रहा है। पशुपालक अपने गौ वंशीय-भैंसवंशीय पशुओं चिकित्सा संस्था से सम्पर्क कर टीकाकरण करा सकते हैं। अभी तक राज्य में 9 लाख 73 हजार पशुओं को गलघोटू (एच. एस.) का टीकाकरण लगाया जा चुका है। इसी तरह एकटंगिया रोग भी वर्षाऋतु में गाय-भैंस प्रजाति में फैलने वाली छूतदार बीमारी है, जीवाणु के द्वारा फैलता है।





यह है लक्षण





3 साल तक की आयु के पशुओं में इसका प्रकोप अधिक होता है। दूषित चारागाहों पर स्वस्थ पशुओं के चरने से इस रोग के जीवाणु प्रदूषित घास के माध्यम से पशुओं के शरीर में प्रवेश पा जाता है। इस बीमारी में भी तेजबुखार आता है और गर्दन, कंधों, पुटठों पर सूजन और लगड़ेपन का लक्षण प्रमुख रूप से देखने को मिलता है।





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बीमारी के शुरू से ही चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने से पशुओं को आराम मिलता है। इसी बीमारी के रोकथाम का सर्वोत्तम उपाय तीन साल के आयु वाले समस्त गौवंशीय-भैंसवंशीय पशुओं में प्रतिबंधात्मक टीकाकरण है। पशुधन विकास विभाग द्वारा राज्य में इस रोग के रोकथाम के लिए निशुल्क टीकाकरण किया जा रहा है। अभी तक 740 लाख पशुओं को एकटंगिया (बी. क्यू.) का टीकाकरण किया जा चुका है।


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