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बसंत ऋतु के स्वागत में महासमुन्द में सरस कवि गोष्ठी


महासमुन्द। सर्किट हाउस में सुपरिचित साहित्यकार एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष जी. आर. राणा के मुख्य आतिथ्य में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। गोष्ठी मेंं रायपुर से पहुँचे भाषाविद् डॉ.चित्तरंजन कर, कवि स्वराज्य करुण एवं महासमुन्द के व्यंग्यकार ईश्वर शर्मा सहित अनेक प्रतिष्ठित‌ कवियों ने भाग लिया। गोष्ठी का संचालन साहित्यकार अशोक शर्मा ने किया।
मुख्य अतिथि की आसंदी से कवि जी आर राणा ने जीवन दर्शन‌ की प्रभावशाली कविताएँ सुनाईं। पानी के प्रतीक पर उनकी इन पंक्तियों पर श्रोताओं की खूब वाहवाही मिली:-





"जन्म जोंक का जल में होता
पर वह खून का प्यासा होता।
नीर से पीर यदि पढ़े आदमी
श्रेष्ठ सिद्ध सृष्टि है आदमी।"





कार्यक्रम की‌अध्यक्षता कर रहे डॉ. चित्तरंजन कर ने अपने गीत और नवगीत के माध्यम से जबरदस्त समां बांधा। उनके एक गीत की ये प्रतीकात्मक पंक्तियाँ देखिए:-




"कहना मुश्किल किसके सुख दुख की कितनी मात्रा है।
जीवन क्या है एक बहुत लम्बी चौड़ी यात्रा है।
चलने में युग, रुकने में क्षण भर लगता है।
इंसानों के जंगल में डर क्यों लगता है।
अपनापन हो जहाँ कहीं वो घर लगता है।"





‌‌ सुपरिचित कवि स्वराज्य 'करुण' ने अपनी चुनिंदा रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही हासिल की । नए बिम्ब‌ों के साथ उनकी ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली थीं :-





"कभी उस पाले में तो कभी इस पाले में,
हाथ मिलाए अंधियारे में, कुश्ती लड़े उजाले में।
हर तरफ है आज उसका दबका भी और जलवा भी,
इसीलिए वो फर्क न समझे नीले ,पीले , काले में ।"





सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार ईश्वर शर्मा ने अपने गद्य व्यंग्य के माध्यम से आम आदमी की बेबसी और मुफलिसी का अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया।




उनकी हर पंक्ति पर वाहवाही होती रही। उनके व्यंग्य की बानगी देखिए:-





"फिर आम आदमी कैसे रह जाओगे आप। आपको भी गरीब और असभ्य कहलाना है क्या? ये परदा
बाहर लगा है…तो समझो भीतर‌ का सारा नंगापन ढंका है…इसे ढंका ही रहने दो साहब।और इसे मैं ले भी जाउंगा, तो मेरे पास क्या है जिसे मैं ढाँकूंगा?"





श्रृंखला साहित्य मंच पिथौरा से आए सुपरिचित कवि प्रवीण 'प्रवाह' ने अपनी नई कविता और ग़ज़ल से गोष्ठी को नई ऊँचाई दी। उनकी ये बेहतरीन पंक्तियाँ देखिए:-




"सुबह के संदर्भ में मुझे चुप कर देना कोई कारगर उपाय नहीं है। सूरज को उगने से रोकने‌ के लिए।
क्योंकि सूरज उगाने के लिए, चिड़ियों ने चहचहाना शुरु कर दिया है।"





गोष्ठी का सफल संचालन कर रहे अशोक शर्मा के शेरों और गजल की पंक्तियों ने गोष्ठी को जीवन्त बनाए रखा। उनकी ग़ज़ल की ये पंक्तियां देखिए:-





"नजर चुभती सवाली उँगलियाँ हैं,
पराये हो गये हैं हम वतन में।
गुलाबों सी नहीं किस्मत हमारी,
खिले हम भी मगर हैं इस चमन में।





बागबाहरा से आए सुपरिचित कवि रुपेश तिवारी की छत्तीसगढ़ी की कविताओं में ग़ज़ब




का बिम्ब विधान परिलक्षित हुआ। उनकी इन पंक्तियों पर खूब वाहवाही हुई:-





"कारी टूरी कुहकत हे,अमुवा के डार म ।
हांसत हे मुचमुच ले, सरसों फूले खार म।।
लाली पींयर लुगरा गंवतरहीन ल खुलत हे।
अपन घर म मुनगा बहू झूनझून ले झूलत हे ।"





शायर सलीम कुरैशी ने तरन्नुम में दिलकश ग़ज़लें सुनाकर श्रोताओं का दिल जीता। उनकी इन पंक्तियों पर खूब दाद हासिल हुई:-




"ज़िन्दगी की क़श्ति का साहिल पास नहीं होता।
आ ही जाती है दबे पांव, मौत तेरा एहसास नहीं होता।
दरख्वास्त, सबूत, मुक़दमा, जिरह और फैसला,अब भी होता है ये सब मगर इंसाफ नहीं होता।"





अपने चुटिले व्यंग्य के लिए सुपरिचित कवि प्रलय थिटे ने अपनी कविताओं  के माध्यम से व्यवस्था की विसंगतियों पर करारी चोट करते हुए खूब वाहवाही लूटी। बानगी देखिए:-




"जागो ! शिव !! जागो !!!
कौन कहता है कि तीसरा नेत्र खोलो ।
पर अब कुछ तो बोलो। अब हिमालय तुम्हारे तप का स्थान नहीं ।
अब तुम्हारा वन भ्रमण उतना आसान नहीं। "





लघु कथा के सशक्त हस्ताक्षर महेश राजा ने अपनी चुटीली और धारदार रचनाओं से व्यवस्था पर चोट की। उनकी इन पंक्तियों पर खूब वाहवाही हुई:- 




जँजीर की विवशता





"जँजीर की विवशता वही समझता है,
जिसके गले में जँजीर होती है।अपने मालिक की रोटी पर पलने पर भी मैं तुम पर नहीं भौंक रहा हूँ, यही क्या कम है।"





वरिष्ठ कवि‌ हुकुम शर्मा ने अपनी उत्कृष्ट ग़ज़ल और मुक्तकों से वाहवाही बटोरी। उनकी ये पंक्तियाँ काबिले गौर थीं:-




"जरा रख धैर्य बुरा वक्त बीत जाएगा,
तेरे दुखों से भरा घट ये रीत जाएगा।
रात कितनी भी भयावह हो सुबह आती है,
क्या अँधेरा कभी किरणों से जीत पाएगा।"





कवि अशोक चौरड़िया के दोहों और ग़ज़लों की खूब सराहना हुई। उनकी छोटी बहर की एक ग़ज़ल का यह बेहतरीन शेर देखिए:-




किसके कितने चेहरे लिख तूं,
दर्पण गूंगे बहरे लिख तूं ।
उथले-उथले बहुत लिखा है,
कुछ तो गहरे-गहरे लिख तूं ।।





युवा कवि निलय शर्मा की रुमानी कविताएँ काफी प्रभावशाली थीं। उन्होनें सस्वर कविता पाठ करते हुए इन पंक्तियों से विशेष छाप छोड़ी:- 




"बिना बादलों के बारिश कहीं भी हो नहीं सकती
बिना पत्थर की मूरत कहीं भी हो नहीं सकती
भरी महफिल में हंस लेना मगर इतना भी तू सुन ले
बिना बाहों के तू मेरे कभी रो नहीं सकती।"





रायपुर से पहुचीं कवियत्री माधुरी कर की जीवन दर्शन की कविताएँ बहुत अच्छी थीं।




उनकी ये पंक्तियाँ देखिए:-





"पुस्तक मत पढ़िए
पुस्तक लिखने के लिए,
इंसान को पढ़िए
इंसानियत को
ज़िन्दा रखने के लिए।"





सुपरिचित छत्तीसगढ़ी कवि बंधु राजेश्वर खरे ने ठेठ ग्रामीण छत्तीसगढ़ी कविताएँ सुनाकर श्रोताओं का मन मोह लिया। बानगी देखिए:-




"करनी दिखे मरनी के बेर, झन कर संगी अंधेर।
बरकस होके मईहन ल दबा डरे
गरीब के पेट मार सरबस ल खा डरे।
शेर ल घलो मिलथे सवा सेर, झन कर संगी अन्धेर।"





नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. कुलवंत आजमानी ने भावप्रवण कविताओं से श्रोताओं का दिल जीत लिया । कन्या लिंग भेद पर उनकी ये पंक्तियाँ देखिए :- 




"एक ही प्रसव पीड़ा, एक ही तन, एक ही खून।
पर‌ लड़की जन्म पर देख माँ का विलाप,
किसी लड़की ने क्या सोचा
किसी लड़की से मत पूछना…….!"





कवियत्री सरिता तिवारी ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पतन पर चिन्ता व्यक्त करती कविता सुनाईं जिसे खूब वाहवाही मिली।:-




"गाँव कि मिट्टी,तालाब का पानीं,खेत की मेड़,तुलसी के पेड़,और दरवाजे में जलते दिए कि रौशनी का महत्व।
अगर आप हमे बचपन से ही समझाते।
तो आज आपके बच्चे कपडे में नग्न नजर नहीं आते"





कवियत्री डॉ. साधना  कसार ने अपनी कोमल भावनाओं की कविताओं से श्रोताओं के दिलों में कोमलता का भाव जागृत किया । उनकी ये पंक्तियाँ काबिले तारीफ थी:-




"ताड़ना सहना और हंसते रहना
अब यह बात गलत है।
आँसुओं संग जीवन भर बहना
अब यह बात गलत है।"





गोष्ठी को सफल बनाने में  बीआर साहू, एस.चन्द्रसेन की उपस्थिति तथा अनुज शर्मा,रणधीर सिंग,मानसिंग, एवं सर्किट हाउस के समस्त स्टाफ की सहभागिता प्रशंसनीय रही।

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