गरियाबंद । आदिवासी विकासखंड मुख्यालय मैनपुर के तौरेंगा, कुल्हाड़ीघाट, राजापड़ाव क्षेत्र सहित आसपास के वन क्षेत्रों मे अब राष्ट्रीय पक्षी मोर विलुप्ति के कगार पर पहुंचते जा रही है। आज से 10-15 वर्ष पहले बिहड़ जंगलों में और मुख्य मार्ग के किनारे मोर आसानी से झुमते नाचते झुंड के झुंड दिखाई पड़ते थे। वर्तमान की आपाधापी व वन्य प्राणियों के शिकार के चलते राष्ट्रीय पक्षी मोर (peacock extinction in chhattisgarh Forest) उचित संरक्षण व संवर्धन के अभाव में उपेक्षित होते जा रहा है।
जंगली इलाकों में लगातार बस रहे गांवों के चलते पक्षी मोर अब उदंती, तौरेंगा, कुल्हाड़ीघाट के जंगलों में कुछ ही स्थानों पर दिखाई देने की बात ग्रामीणों द्वारा सुनने में आती है। जहां इनकी संख्या के कम होने का मुख्य कारण इनका शिकार ही है। कड़े प्रतिबंध के बावजूद राष्ट्रीय पक्षी के सुन्दर पंखों के लालच में शिकारी जहरीली दवाई खाद्य पदार्थ के साथ मिलाकर इन्हें देते है, जिसे खाकर ये मर रहे हैं। राष्ट्रीय पक्षी मोर वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 1972 की अनुसूची 1 का प्राणी है जिसे मारने पर 7 वर्ष की सजा का प्रावधान निर्धारित है।
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पूरे देश में मोर राजस्थान में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। जिसका मुख्य कारण वहां की जलवायु का इनके लिए अनुकूल होना बताया जाता है। एक ओर जहां वन विभाग राजकीय पशु वन भैंसे के संरक्षण में करोड़ों खर्च कर रहा है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय पक्षी मोर के संरक्षण (peacock extinction in chhattisgarh Forest) के लिए विभाग का रवैया उदासीन लगता है। ग्रामीणो ने बताया कि इनकी संख्या में कमी का प्रमुख कारण दूरस्थ क्षेत्रों मे इनका शिकार है। इनकी कम होती संख्या को गंभीरता से लेते हुए इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए विभागीय उच्च अधिकारियों सहित राज्य सरकार को जल्द से जल्द उचित व ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। वहीं, इनके शिकार पर रोक लगाने के लिए इनके पंखों के संग्रहण पर रोक लगाना भी अति आवश्यक है। जंगलों में मोर पंख संग्रहण पर पाबंदी नहीं होने के कारण शिकारी बेधड़क पंख संग्रहण के बहाने जंगलों में जाकर इनका अवैध शिकार करते हैं, जिस पर अंकुश लगाना राष्ट्रीय पक्षी मोर के संरक्षण के लिए जरूरी है।