आज बाबा गुरु घासीदास की जयंती (baba guru ghasidass birth anniversary) है। 'मनखे-मनखे एक समान', 'सत्य ही मानव का आभूषण है', सत्य और अहिंसा का संदेश जन-जन तक पहुंचाने वाले संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास (baba guru ghasidass ) की आज यानी शुक्रवार को 264वीं जयंती है। हर साल 18 दिसंबर को सतनामी समाज (Satnami Society) द्वारा बाबा गुरु घासीदास की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।

सीएम बघेल ने जयंती के अवसर पर बाबा गुरु घासीदास से सभी लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना की है। बघेल ने कहा है कि 'छत्तीसगढ़ के अनमोल रत्न बाबा गुरू घासीदास जी का जीवन दर्शन और विचार मूल्य पूरी मानव जाति के लिए कल्याणकारी है।'

'बाबा गुरु घासीदास जी ने सम्पूर्ण मानव जाति को 'मनखे-मनखे एक समान' के प्रेरक वाक्य के साथ यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य एक समान है। उन्होंने लोगों को मानवीय गुणों के विकास का रास्ता दिखाया और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। बाबा गुरू घासीदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सत्य, अहिंसा और सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाया। बघेल ने कहा कि बाबा गुरू घासीदास के उपदेश आज भी प्रासंगिक और समस्त मानव जाति के लिए अनुकरणीय हैं।'

गुरु घासीदास ने दिया था 'मनखे-मनखे एक समान' का संदेश
बता दें कि 18 दिसंबर 1756 को कसडोल ब्लॉक के छोटे से गांव गिरौदपुरी में एक अनुसूचित जाति परिवार में महंगूदास और अमरौतिन बाई के यहां बाबा गुरु घासीदास का जन्म हुआ था। घासीदास के जन्म के समय समाज में छुआछूत और भेदभाव चरम पर था। कहा जाता है कि बाबा का जन्म अलौकिक शक्तियों के साथ हुआ था। घासीदास ने समाज में व्याप्त बुराइयों को जब देखा तब उनके मन में बहुत पीड़ा हुई तब उन्होंने समाज से छुआछूत मिटाने के लिए 'मनखे-मनखे एक समान' का संदेश दिया था।

सतनामी समाज के जनक है गुरु घासीदास (baba guru ghasidass)
बाबा गुरु घासीदास को सतनामी समाज का जनक कहा जाता है। उन्होंने समाज को सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने मांस और मदिरा सेवन को समाज में पूरी तरह से बंद करवा दिया था। उनके द्वारा दिए गए उपदेश को जिसने आत्मसात कर जीवन में उतारा उसी समाज को आगे चलकर सतनामी समाज के रूप में जाना जाने लगा।

पूरी होती है मन्नत
मान्यता है कि गिरौदपुरी धाम (Giroudpuri Dham) में बुधारू नामक व्यक्ति को जब जहरीले सांप ने काटा था, तब बाबा ने उसके ऊपर जल छिड़ककर उसको दोबारा जिंदा कर दिया था। इस चमत्कार के बाद समाज बाबा को भगवान की तरह पूजने लगा। मान्यता है कि बाबा को स्मरण कर जो मन्नत मांगी जाती है, उसे वे पूरा करते हैं। मन्नत पूरा होने पर श्रद्धालु जमीन में लोटते हुए उनके द्वार तक पहुंचते हैं।

सत्य और अहिंसा का संदेश
घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी धाम (Giroudpuri Dham birthplace of Ghasidas) में हर साल उनके वंशज और धर्म गुरु मुख्य मंदिर में पालो चढ़ावा करते हैं। बाबा की वंदना पंथी नृत्य के माध्यम से होता है। बता दें कि गिरौदपुरी धाम में सत्य और अहिंसा का संदेश देने के लिए दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ऊंचा स्वेत जैतखाम का निर्माण (Construction of jaitkham) किया गया है। इस खूबसूरत जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर है।
