Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुवाहाटी में भारत रत्न डॉ. भूपेन हज़ारिका राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए — महिलाओं और युवाओं को ‘विकसित भारत’ के निर्माता बनने का आह्वान

Document Thumbnail

 केंद्रीय संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज गुवाहाटी में सरहद पुणे द्वारा आयोजित एक समारोह में भारत रत्न डॉ. भूपेन हज़ारिका राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए और इसके बाद नन्ही छाँव 12वीं राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता को संबोधित किया। दोनों कार्यक्रमों ने भारत की सांस्कृतिक विविधता, पूर्वोत्तर की विरासत तथा राष्ट्र निर्माण में महिलाओं और युवाओं की भूमिका का उत्सव मनाया।

पुरस्कार वितरण समारोह में सिंधिया ने डॉ. भूपेन हज़ारिका को एक कवि, संगीतकार और राष्ट्र की आत्मा की आवाज़ के रूप में नमन किया। उन्होंने कहा कि भूपेन दा के नाम पर दिए जा रहे ये पुरस्कार न केवल एक कलाकार का सम्मान हैं, बल्कि सहानुभूति और सांस्कृतिक एकता के एक युग का सम्मान हैं। क्षेत्र के छह प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों — येशे दोरजी थोंगची (अरुणाचल प्रदेश), लैश्रम मेमा (मणिपुर), रजनी बसुमातारी (असम), एल. आर. सैलों (मिज़ोरम), डॉ. सूर्य कांत हज़ारिका (असम) और प्रो. डेविड आर. सिएमलिएह (मेघालय) — को साहित्य, संगीत, फिल्म, अकादमिक योगदान और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया।

पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ अपने गहरे व्यक्तिगत संबंधों को याद करते हुए सिंधिया ने कहा कि उनका यह जुड़ाव भूपेन दा की विरासत से भावनात्मक और ऐतिहासिक दोनों रूप से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि भूपेन दा “मेरी जन्मभूमि मुंबई और उनकी कर्मभूमि असम” के बीच एक सेतु हैं, जिनकी संगीत धारा आज भी भारत की सांस्कृतिक विरासत में बहती है।

सिंधिया ने बताया कि 1950 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद उनके दादा महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने असम राहत कोष की स्थापना की थी, जिससे असम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों को सहायता मिली। उन्होंने कहा, “भूपेन दा का संगीत हमें याद दिलाता है कि दुख में भी सुर होते हैं और मानव आत्मा, ब्रह्मपुत्र की तरह, अपना रास्ता फिर ढूंढ लेती है।”

उन्होंने भूपेन हज़ारिका सेतु को भूपेन दा की दूरदर्शिता, एकता और प्रगति के प्रतीक के रूप में उल्लेखित किया।

सिंधिया ने सरहद पुणे और इसके संस्थापक संजय नाहर की सराहना की, जिन्होंने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने, संघर्षग्रस्त क्षेत्रों के विद्यार्थियों को शिक्षित करने, ‘सरहद म्यूजिक’ और ‘भूपेन हज़ारिका म्यूजिक स्टूडियो’ जैसे सांस्कृतिक मंच स्थापित करने, तथा पूर्वोत्तर की छात्राओं के लिए छात्रावास चलाने जैसे कार्यों के माध्यम से सद्भावना और सहानुभूति की मिसाल कायम की है।

बाद में उन्होंने नन्ही छाँव राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता को संबोधित किया, जिसमें देशभर से 50,000 से अधिक विद्यार्थियों ने भाग लिया। विजेताओं से संवाद करते हुए उन्होंने उनके विचारों की स्पष्टता और देशभक्ति की भावना की प्रशंसा की।

उन्होंने नन्ही छाँव फाउंडेशन के महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और धार्मिक सद्भाव के कार्यों की सराहना की। “विकसित भारत की शक्ति” विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ये निबंध इस बात का प्रमाण हैं कि भारत का भविष्य उसके युवाओं के आत्मविश्वास, संवेदना और जिज्ञासा पर निर्भर है।

उन्होंने कहा कि वास्तविक ‘विकसित भारत’ तभी साकार होगा जब बेटियाँ स्वयं को दर्शक नहीं, परिवर्तन की निर्माता समझें। असम की स्वतंत्रता सेनानी कनकलता बरुआ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि साहस और संकल्प की कोई आयु या लिंग नहीं होता। उन्होंने कहा कि जब महिलाओं की संवेदना, दृढ़ता और नेतृत्व युवाओं के नवाचार और ऊर्जा से जुड़ते हैं, तब भारत का विकास अभियान अजेय हो जाता है।



Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.