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सीएसआईआर–एनआईएससीपीआर ने शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित कर भारतीय पारंपरिक ज्ञान प्रणाली का प्रसार बढ़ाने पर जोर दिया

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सीएसआईआर–राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (CSIR-NIScPR) ने “भारतीय ज्ञान प्रणाली के संचार और प्रसार” विषय पर शिक्षकों के लिए एक राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यशाला एसवीएएसटीआईके (SVASTIK – Scientifically Validated Societal Traditional Knowledge) के अंतर्गत आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित पारंपरिक ज्ञान को समाज तक पहुँचाना है। यह आयोजन भारतीय राष्ट्रीय युवा विज्ञान अकादमी (INYAS) के प्रमुख कार्यक्रम RuSETUp (Rural Science Education Training Utility Programme) और महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू), रोहतक के सहयोग से 16 अक्टूबर 2025 को एमडीयू, रोहतक में संपन्न हुआ।

इस कार्यशाला में देशभर के 75 संस्थानों से 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. सुरेंद्र यादव (एमडीयू) के स्वागत भाषण से हुआ, इसके बाद सीएसआईआर–एनआईएससीपीआर की निदेशक डॉ. गीता वाणी रायसम ने ऑनलाइन जुड़कर SVASTIK पहल का परिचय दिया और सभी संस्थानों के सहयोग की सराहना की।

मुख्य अतिथि पद्म भूषण डॉ. अनिल पी. जोशी, संस्थापक – हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज़ एंड कंज़र्वेशन ऑर्गनाइजेशन (HESCO), देहरादून ने प्रेरक उद्बोधन दिया। उन्होंने अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के आपसी संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत का पारंपरिक ज्ञान सदैव सततता और आत्मनिर्भरता पर आधारित रहा है। उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे पारंपरिक ज्ञान के संदर्भ में वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा दें।

एमडीयू के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने कहा कि ज्ञान का वास्तविक प्रसार शिक्षकों से शुरू होता है, जो समाज में परिवर्तन के वाहक हैं।

पहले तकनीकी सत्र में “भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विरासत: संरक्षण से संवर्धन तक” विषय पर चर्चा हुई। सीएसआईआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. रंजना अग्रवाल ने कहा कि भारत की वैज्ञानिक विरासत प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विज्ञानों के समन्वय पर आधारित है। उन्होंने बताया कि डिजिटल युग में पारंपरिक ज्ञान की गलत व्याख्याओं से बचने के लिए वैज्ञानिक सत्यापन और स्पष्ट संचार आवश्यक है।

जेएनयू के डॉ. अश्वनी तिवारी ने पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणालियों के महत्व पर व्याख्यान दिया, वहीं डॉ. चारुलता (सीएसआईआर–एनआईएससीपीआर) ने भारत की पारंपरिक खाद्य बुद्धिमत्ता पर प्रकाश डाला और SVASTIK की कार्यप्रणाली – पारंपरिक प्रथाओं की पहचान, सत्यापन और डिजिटल माध्यम से प्रसार – समझाई।

दूसरे सत्र में डॉ. परमानंद बर्मन और SVASTIK टीम ने हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग आयोजित की, जिसमें प्रतिभागियों को पारंपरिक ज्ञान से जुड़ी जानकारी को इन्फोग्राफिक्स, पोस्टर और वीडियो के रूप में प्रस्तुत करने का प्रशिक्षण दिया गया।

अंत में डॉ. राज मुखोपाध्याय (आईसीएआर–केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल) ने पारंपरिक मृदा प्रबंधन तकनीकों पर व्याख्यान दिया।

कार्यशाला का समापन फीडबैक एवं धन्यवाद ज्ञापन सत्र से हुआ, जहाँ प्रतिभागियों ने इस अनुभव को अत्यंत उपयोगी बताया।अंतिम धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संध्या लक्ष्मणन (सीएसआईआर–एनआईएससीपीआर) ने दिया और सभी प्रतिभागियों, वक्ताओं एवं आयोजकों का आभार व्यक्त किया।


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