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मत्स्य पालन विभाग (DoF) – FAO सहयोग से "ब्लू पोर्ट्स" के लिए पहल

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नई दिल्ली मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य पालन विभाग (DoF) ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के साथ तकनीकी सहयोग कार्यक्रम (TCP) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके अंतर्गत भारत में ब्लू पोर्ट अवसंरचना को मजबूत किया जाएगा।

इस क्रम में आज पहला वेबिनार आयोजित किया गया, जिसका विषय था “Foundations of a Blue Port: Generating Value in Fishing Ports”।

  • उद्घाटन संबोधन: डॉ. अभिलक्ष लिखी, सचिव (DoF)

  • विशिष्ट अतिथि: ताकायुकी हागिवारा, FAO प्रतिनिधि (भारत)

मुख्य बिंदु

  • मत्स्य बंदरगाह = आर्थिक समृद्धि, पारिस्थितिकीय स्थिरता और सामाजिक समावेशन के द्वार।

  • नई तकनीकों (5G, AI, ऑटोमेशन, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म) से दक्षता और सेवा वितरण में सुधार।

  • PMMSY और FIDF योजनाएँ बंदरगाह आधुनिकीकरण और हितधारक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण।

  • FAO समर्थन के तहत वानकबारा (दमन एवं दीव) और जखाऊ (गुजरात) में पायलट अपग्रेड की शुरुआत।

  • PMMSY के तहत तीन स्मार्ट और एकीकृत मत्स्य बंदरगाह (गुजरात, दमन एवं दीव, पुदुचेरी) ₹369.80 करोड़ की लागत से विकसित किए जा रहे हैं।

वेबिनार की विशेषताएँ

  • FAO विशेषज्ञों के प्रस्तुतिकरण: ब्लू पोर्ट्स की अवधारणा, सतत एवं नवाचार-आधारित पद्धतियाँ, वैश्विक श्रेष्ठ प्रथाएँ।

  • विगो पोर्ट (स्पेन) का केस स्टडी साझा किया गया।

  • हितधारकों के साथ भागीदारीपूर्ण चर्चा – चुनौतियाँ व समाधान।

  • प्रतिभागी: FAO मुख्यालय अधिकारी, विगो पोर्ट प्रतिनिधि, तटीय राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के अधिकारी, समुद्री बोर्ड, प्रमुख पोर्ट प्राधिकरण, मछुआरा सहकारी संस्थाएँ।

ब्लू पोर्ट फ्रेमवर्क
  • स्मार्ट और एकीकृत मत्स्य बंदरगाहों का विकास – वानकबारा (दीव), कराईकल (पुदुचेरी), जखाऊ (गुजरात)।

  • कुल निवेश: ₹369.8 करोड़।

  • प्रमुख तकनीकें: IoT, सेंसर नेटवर्क, सैटेलाइट संचार, डेटा एनालिटिक्स।

  • पर्यावरण अनुकूल पहल: वर्षा जल संचयन, ऊर्जा-कुशल रोशनी, इलेक्ट्रिक उपकरण, ठोस/तरल अपशिष्ट प्रबंधन, समुद्री मलबा सफाई।

  • उद्देश्य: सुरक्षित, स्वच्छ और कुशल संचालन + आर्थिक प्रदर्शन, सामाजिक समावेशन और पारिस्थितिकी संरक्षण।

निष्कर्ष

यह वेबिनार भारत में सतत, प्रौद्योगिकी-आधारित और समावेशी ब्लू पोर्ट्स के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे मत्स्य समुदायों की आजीविका मजबूत होगी, निर्यात बढ़ेगा और भारतीय मत्स्य क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी।


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