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मनिहारी के बेटे ने चुनी कुर्बानी की राह, चौदहवीं पुण्यतिथि पर शहीद घनश्याम कन्नौजे का पुण्य स्मरण

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• नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हुआ था बिरकोनी का बहादुर नौजवान 

• गर्व से भरे गांव वालों ने मंदिर-देवालयों में भी उनकी तस्वीर लगा रखी है 

महासमुंद। "शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।" क्रांतिकारी अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का यह शेर शहीदों की अमरता का चित्र खींचता है। यह बताता है कि जब कोई सपूत अपने देश के लिए बलिदान देता है, तो उसकी शहादत व्यर्थ नहीं जाती। उसकी चिता केवल राख का ढेर नहीं होती, बल्कि वह एक तीर्थस्थल बन जाती है, जहां आने वाली पीढ़ियां हर बरस श्रद्धांजलि देने पहुंचती हैं। देश पर मरने वालों को भुलाया नहीं जा सकता, उनका बलिदान पीढ़ियों तक प्रेरणा देता है। महासमुंद जिले का बिरकोनी गांव भी एक ऐसा ही तीर्थ है, जहां के बेटे घनश्याम कन्नौजे ने बस्तर में माओवादी नक्सलियों से लोहा लेते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। 21 अगस्त को उनकी चौदहवीं पुण्यतिथि पर यह अंचल अपने उस वीर बहादुर लाल को याद कर रहा है। 

घनश्याम कन्नौजे
2011 की बात है, जब एएसएफ की दूसरी बटालियन सकरी बिलासपुर के आरक्षक क्रमांक 111 घनश्याम कन्नौजे नक्सलगढ़ बीजापुर के भद्राकाली में तैनात थे। 19 अगस्त 2011 को फोर्स की एक टुकड़ी कैंप के लिए रसद लाने को निकली थी। वाहन में सवार जवान आगे बढ़े जा रहे थे, इस बात से अंजान कि आगे इसी जंगल रास्ते पर नक्सली मौत का जाल बिछाए हुए हैं, घात लगाए हुए हैं। वे नक्सलियों के एंबुस में फंस गए। अचानक तेज धमाका हुआ। बारूदी सुरंग विस्फोट से उनके वाहन के परखच्चे उड़ गए। धमाके के साथ नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग भी शुरू कर दी। तीनों दिशाओं से नक्सली अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। धमाके में ही कई जवान घायल हो गए थे, फिर भी उन्होंने मोर्चा संभाला। हमलावर नक्सलियों की संख्या जवानों से कई गुना ज्यादा थी, फिर हमारे बहादुर जवानों ने जोरदार जवाबी कार्रवाई की। विस्फोट से तन झुलस चुका था, किसी का हाथ उखड़ गया था, किसी का पैर। पूरा शरीर जख्मी था, गोलियां धसी हुई थीं, घावों से लगातार खून बह रहा था, फिर भी जवानों ने नक्सलियों का वीरतापूर्वक डटकर सामना किया। अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे और जब सांस टूट गई, तो धरती मां की गोद में सो गए। 13 जवान शहीद हुए। उनमें से एक थे शहीद घनश्याम कनौजे। 20 अगस्त को उनका पार्थिव शरीर मिला और 21 अगस्त को बिरकोनी गांव के हाईस्कूल परिसर में जहां का वह छात्र था, उनका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया गया। शहीद घनश्याम को अंतिम विदाई देने पूरा गांव उमड़ पड़ा था। आज भी यह ग्राम्य अंचल इस गर्व भाव से भरा हुआ है कि, इस मिट्टी का एक लाल वतन में चैन-ओ-अमन खातिर कुर्बान हो गया। 

23 साल की उम्र में वीरगति : 

शहीद घनश्याम कनौजे का जन्म 6 अक्टूबर 1988 को जिला मुख्यालय महासमुंद से करीब 15 किमी. दूर एनएच 353 पर स्थित ग्राम बिरकोनी में हुआ था। इनके दादाजी पुरानिक कनौजे सीमांत कृषक थे। पिता गुलाब कन्नौजे कृषि कार्य के साथ गलियों में घूमकर मनिहारी सामान बेचते हैं। शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बिरकोनी और शासकीय आदर्श स्कूल महासमुंद में पढ़ाई करने के साथ-साथ बालक घनश्याम खेती और मनिहारी के धंधे में अपने पिता का भी हाथ बंटाता था। वह स्वयं भी मनिहारी का ठेला लेकर गांव में घूमता था। घनश्याम ने इसी बीच करीब 20 साल की उम्र में फोर्स जॉइन कर लिया, लेकिन 23 साल की उम्र पूरी होने के पहले वीरगति को प्राप्त हो गया। मनिहारी के बेटे ने वतन पर कुर्बानी की राह चुनी। 

अंचल का गौरव है वीर घनश्याम : 

 स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और 21 अक्टूबर पुलिस दिवस के मौके पर कार्यक्रम आयोजित कर पुलिस के जवान, नागरिक, शिक्षक-शिक्षिकाएं और बच्चे शहीद घनश्याम कन्नौजे को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। उनकी शहादत को याद करते हैं। हाईस्कूल परिसर में शहीद घनश्याम कन्नौजे की प्रतिमा स्थापित है, जहां विधिवत श्रद्धांजलि दी जाती है। यही नहीं बिरकोनी के श्रीराम-जानकी मंदिर सहित अनेक देवालयों में भी शहीद घनश्याम कन्नौजे के छाया चित्र लगे हुए हैं, जिससे लोगों को उनकी शहादत का स्मरण सदैव होता रहे और हृदय में देशभक्ति की अखंड ज्योति जलती रहे। अपना फर्ज निभाते हुए देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाला अमर शहीद घनश्याम कन्नौजे हमारे इस अंचल का गौरव है।


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