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लोगों को बेसब्री से इंतजार है अगले बरस के बस्तर पंडुम का

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 मुख्यमंत्री  विष्णु देव साय के डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में बस्तर में तेजी से शांति लौटी है। नक्सलवादी हिंसा के चलते बस्तर की असल पहचान गुम हो गई थी, यह पहचान इसके सुंदर प्राकृतिक परिवेश के साथ ही अनुपम सांस्कृतिक जनजातीय धरोहर को लेकर भी है यह सुंदर संस्कृति अपने को उत्सव अर्थात पंडुम के माध्यम से प्रकट करती है। साय सरकार ने बस्तर की असल पहचान को देश-दुनिया में भव्यता से सामने लाने बस्तर पंडुम के आयोजन का निर्णय लिया।


 
बस्तर पंडुम 2025 बस्तर की जनजातीय परंपराओं, कला और जीवनशैली को दुनिया के सामने लाने वाला एक भव्य उत्सव है। यह आयोजन बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर पूरी प्रखरता से ले जाने में सफल रहा। राज्य सरकार की प्रतिबद्धता और बस्तर के लोगों की भागीदारी ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। इस आयोजन के समापन समारोह में दंतेवाड़ा में केंद्रीय गृह मंत्री  अमित शाह ने घोषणा की कि अगले वर्ष से बस्तर पंडुम 12 श्रेणियों में आयोजित होगा, जिसमें देशभर के आदिवासी जिलों से कलाकार भाग लेंगे।
 
बस्तर पंडुम 2025 न केवल बस्तर बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। इस आयोजन से बस्तर के स्थानीय लोगों को अपनी परंपराओं और कला को दिखाने का मंच मिला और साथ ही देश-विदेश से आए पर्यटकों, शोधकर्ताओं और संस्कृति प्रेमियों को बस्तर की अनूठी संस्कृति को करीब से जानने का अवसर मिला। आयोजन के वृहत स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बस्तर संभाग के कोने-कोने से आये कलाकारों  ने इसमें हिस्सा लिया और अपनी अनूठी कला से देश दुनिया का परिचय कराया। इस आयोजन में बस्तर संभाग के 7 जिलों के 32 जनपद पंचायतों के अंतर्गत 1,885 ग्राम पंचायत शामिल हुए। बस्तर की संस्कृृति के सात विधाओं में लगभग 27,000 प्रतिभागियों ने अपनी कला और कौशल का प्रदर्शन किया। बस्तर के शहरी क्षेत्र के अंतर्गत एक नगरनिगम, 8 नगर पालिका, 12 नगर पंचायत भी इस आयोजन मंे सम्मिलित हुए।
 
बस्तर संभाग के सात जिलों सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर में यह आयोजन भव्य रूप से हुआ। इस आयोजन ने बस्तर के जनजातीय समाज की पहचान, गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रूप में सामने रखा। इस उत्सव में बस्तर की संस्कृति की सात प्रमुख विधाओं जनजातीय नृत्य, गीत, नाट्य, वेशभूषा-आभूषण, शिल्प और चित्रकला, पेय पदार्थ और पारंपरिक व्यंजनों का भव्य प्रदर्शन किया गया। समापन के अवसर पर ओडिशा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, असम और मध्यप्रदेश के कलाकारों ने भी अपने नृत्य-संगीत का प्रदर्शन किया।
 
यह सातों विधाएं बस्तर को जानने के लिए एक पर्दा खोलती हैं और इसके माध्यम से आप बस्तर की अनूठी जनजातीय संस्कृति के विस्मय लोक में प्रवेश करते हैं। जनजातीय नृत्य को लें, यह सामूहिकता का परिचय देने वाले नृत्य हैं। चाहे मिलजुलकर शिकार करना हो अथवा देवी-देवताओं को प्रसन्न करने सुंदर आंगिक अभिव्यक्ति करनी हो, जनजातीय नृत्य अपने अनूठे रूप में सामूहिकता के बोध के साथ बस्तर के लोक विश्वासों से परिचित कराते हैं।
 
बस्तर का संसार शांति प्रिय है। अद्भुत सौंदर्य दृष्टि रखता है इसके चलते आभूषणों और वेशभूषा की समृद्ध परंपरा यहां नजर आती है। बस्तर पंडुम के माध्यम से यह अनोखा संसार भी सामने आया। बस्तर की सांस्कृतिक यात्रा इसके हाट-बाजारों का अवलोकन किये बिना पूरी नहीं होती। इन हाट बाजारों में बस्तर के खानपान और महुआ, लांदा-सल्फी जैसे पेय पदार्थ भी होते हैं। चापड़ा चटनी से लेकर बोड़ा जैसे खाद्य सामग्री बस्तर की खानपान परंपरा को विशिष्ट बनाती है। इन खानपान की परंपराओं का सुंदर नजारा भी बस्तर पंडुम में दिखा।
 
बस्तर पंडुम 2025 का आयोजन जनपद, जिला और संभाग स्तर पर तीन चरणों में हुआ । संस्कृति विभाग द्वारा इस आयोजन के लिए बस्तर के सात जिलों में जनपद व जिला स्तरीय आयोजनों और कलाकारों को प्रोत्साहन देने हेतु कुल 5 करोड़ रुपये की राशि दी गई। ग्राम पंचायत स्तर पर 1,885 ग्राम पंचायतों को 10 हजार रुपये प्रति पंचायत की दर से 1 करोड़ 85 लाख रुपये दिए गए। नगर पंचायतों को 25 हजार रुपये, नगर पालिकाओं को 50 हजार रुपये और नगर निगम को 1 लाख रुपये की राशि दी गई। जनपद स्तर पर सात विधाओं के प्रत्येक विजेता दल को 10 हजार रुपये एवं संभाग स्तर पर प्रथम पुरस्कार 50 हजार, द्वितीय 30 हजार, तृतीय 20 हजार और सांत्वना पुरस्कार 10 हजार रुपये दिए गए। जिला स्तरीय प्रतियोगिता में प्रत्येक दल को 20 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि और 5 हजार रुपये यात्रा भत्ता दिया गया।
 
इस आयोजन ने न केवल जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त किया बल्कि स्थानीय कलाकारों को मंच और सम्मान भी प्रदान किया। बस्तर पंडुम अब बस्तर की बोली, वाद्ययंत्र, व्यंजन और संस्कृति की तरह भारत की समृद्ध विरासत का हिस्सा बन गया है। अब हर साल बस्तर की जनजातीय संस्कृति से अभिभूत होने वाले लाखों लोगों को इस आयोजन का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
 
 हीरा देवांगन, संयुक्त संचालक
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