किसानों से 21 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदी का निर्णय अव्यवहारिक और राइस मिल कारोबार के लिए खतरा बन गया है। अनेक राइस मिलों में तालाबंदी की स्थिति निर्मित हो सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो 15 क्विंटल धान खरीदी कर किसानों की आय मे वृद्धि कर राइस मिलर्स व्यवसाय को भी चौपट होने से बचा सकती है।
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मोहन चंद्राकर, प्रगतिशील किसान |
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ की भूमि में लगभग 20 हजार से अधिक किस्मों की धान की खेती की जाती है। सन 2000 मे जब मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ पृथक राज्य का निर्माण किया गया। तब प्रदेश की बागडोर श्री अजीत जोगी के हाथों मे सौंपी गई। उस समय छत्तीसगढ़ मे धान की खेती और उत्पादन बहुत कम होती थी। प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार द्वारा सबसे पहले किसानों से समर्थन मूल्य पर सोसायटी के माध्यम से धान खरीदी की पहल की गई। जिससे प्रदेश के गरीबों के लिए पर्याप्त मात्र मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) मे बांटने के लिए चावल उपलब्ध हो सके। तत्कालीन प्रदेश सरकार की यह एक अच्छी पहल थी। इससे एक तीर से दो निशाना साधा गया। एक ओर सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सीधा धान खरीदकर किसानों को आर्थिक लाभ पहुच रही थी। तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश के सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को चावल (खाद्यान्न) बांट रही थी।
कृषि आधारित उद्योग से रोजगार
प्रदेश सरकार किसानों से धान खरीद कर उसे राज्य में स्थापित राइस मिलों से धान की मिलिंग करा रही थी। इससे प्रदेश मे राइस मिल उद्योग को प्रोत्साहित कर नई ऊर्जा प्रदान की गई। इससे राज्य में साल दर साल नए राइस मिल की स्थापना होती गई और प्रदेश के इस कृषि आधारित उद्योग से हजारों-लाखों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है ।
प्रदेश के पहली विधानसभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी की चुनावी घोषणा हुई। और बीजेपी की सरकार बनी तो किसानों को केंद्र सरकार के MSP के अलावा राज्य सरकार बोनस भी दी। बीजेपी की यह घोषणा प्रदेश के किसानों को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया। और प्रदेश सरकार द्वारा धान खरीदी को प्रदेश ही नहीं पूरे देश के लिए एक मजबूत चुनावी एजेंडा मिल गया। इसके बाद किसान या खेती का कार्य करने वालों को देश की सभी राजनीतिक पार्टियां तावज्जो देने लगी।
खेती को मिला बढ़ावा
बीजेपी की प्रदेश सरकार के इस प्रभावशाली महत्वपूर्ण कार्य से प्रदेश के किसान, जो खेती किसानी से विमुख हो रहे थे। वे अब वापस खेती किसानी की तरफ मुड़ने लगे। गावों के पढे-लिखे युवा, जो रोजगार की तलाश मे शहरों मे भटक रहे थे, वे भी गाँव लौट कर खेती किसानी करने लगे।
प्रदेश मे साल दर साल धान की बम्पर उत्पादन होने लगी। और धान की बढ़ती उपज से प्रभावित होकर प्रदेश के राइस मिल उद्योग मे भी जबरदस्त ग्रोथ होने लगा। जहाँ सन 1999 मे प्रदेश में केवल कुछ गिने चुने राइस मिलें थीं, वहीं अब सैकड़ों की संख्या मे राइस मिलें लग चुकी है। इससे रोजगार मे भी बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश के कुछ प्रमुख जिले जहाँ धान उत्पादन के अलावा कोई और फसल नहीं होता है और वहाँ कोई भी अन्य उद्योग नहीं स्थापित है, वहाँ राइस मिलें लगने से किसान, ग्रामीण मजदूर एवं राइस मिल उद्योग का स्वर्णिम काल शुरू हो गया।
प्रदेश की तात्कालिक बीजेपी सरकार के इस कदम का देश की कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अनुशरण किया। छत्तीसगढ़ मे अपनी-अपनी सरकार बनाने के लिए किसानों से धान खरीदी को अपना राजनीतक केंद्र बिन्दु बनाया । 1970 के दशक के हरित क्रांति के कुछ -कुछ प्रतिफल यह छत्तीसगढ़ के किसानों और धान उत्पादन मे दिखने लगा। प्रदेश के दूसरे विधानसभा चुनाव और तीसरे विधानसभा चुनाव मे राजनीतिक पार्टीयां न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा राज्य सरकार की किसानों को बोनस राशि देने का खेल शुरू हुआ। राजनीतिक पार्टियां बोनस की राशि की बोलिया लगाने लगे । हमारी सरकार आने से न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर इतना बोनस देंगे, आदि आदि। नतीजन, प्रदेश के किसानों ने भी राजनीतिक पार्टियों के घोषणाओं को हाथों -हाथ लिया और धान उत्पादन की क्षमता मे जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। साल 2024-25 में 149 लाख मीट्रिक टन समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का नया रिकार्ड बना।
धान का औसत उत्पादन 20 से 21 क्विंटल
प्रदेश के मेहनतकश किसानों ने अपना किसान धर्म का पालन किया और प्रदेश ही नहीं किन्तु अन्य प्रदेशों के गरीबों का पेट भरने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को सक्षम बनाया। वहीं, दूसरी तरफ प्रदेश मे 3100 से अधिक राइस मिलर्स हैं, जिनकी बर्बादी की शुरुआत होने की सुगबुगाहट होने लगी। इसके कुछ प्रमुख कारण है–प्रदेश सरकार द्वारा किसानों से पूरा 21 क्विंटल धान की खरीदी करना, प्रदेश सरकार द्वारा 3100 रुपये में प्रति क्विंटल धान की खरीदी करना। प्रदेश के किसानों के खेती से औसत मे 20-21 क्विंटल ही धान का उत्पादन होता है। कहीं-कहीं, किसी क्षेत्र विशेष मे 25 क्विंटल तक भी उत्पादन होता है। किन्तु प्रदेश का औसत उत्पादन 20-21 क्विंटल प्रति एकड ही है।
राइस मिलर्स के लिए धान उपलब्ध नहीं
पिछले विधानसभा चुनाव से प्रदेश सरकार किसानों से उनका सम्पूर्ण धान की खरीदी कर रही है, तो बाजार मे राइस मिलर्स के लिए धान उपलब्ध नहीं होती है। जिस कारण से मिलर्स को मजबूरी में सरकार का ही कस्टम मिल का काम करना पड़ता है। प्रदेश सरकार के पास वर्तमान मे अपने धान की रख रखाव के लिए पूरी अधोसंरचना नहीं है।
प्रदेश के उपार्जन केंद्रों और संग्रहण केंद्रों में कोई भी गोडाउन नहीं है, जिससे धान रखने में अव्यवस्था होती है। प्रदेश मे नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) और भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास भी राज्य पूल और केन्द्रीय पूल के चावल रखने के लिए पर्याप्त गोडाउन नहीं होने के कारण मिलर्स से समय पर चावल नहीं ले पा रही है। केंद्र सरकार के लाख कोशिश के बाद भी खाद्य पदार्थों, विशेष कर चावल का बाजार मूल्य काम नहीं हो रही है। इसका कारण है बाजार मे पर्याप्त मात्र मे धान की उपलब्धता नहीं होने से चावल की सुगम पूर्ति बाधित होना।
किसान और मिलर्स दोनों का भला
अगर सरकार मे बैठे लोग चाहेंगे तो इसको सुगम कर सकते हैं। प्रदेश सरकार चाहे तो किसानों की प्रति एकड़ आय मे बढ़ोतरी करते हुए लगभग 25% - 27% तक धान बाजार मांगों के अनुरूप किसानों के बेचने के लिए किसानों के पास छोड़ सकती है। आज प्रदेश के किसानों से सरकार 21 क्विंटल धान 3100/- प्रति क्विंटल मे खरीदी करती है। जिसका मूल्य होता है 65100 रुपये। प्रदेश सरकार के पास इस 21 क्विंटल धान या इससे मिलिंग कर प्राप्त चावल को रखने की कोई अधोसंरचना नहीं होना, तो धान में सूखत , चावल रखने के लिए पर्याप्त गोडाउन नहीं है, इन सब अव्यवस्था में मिलर्स बिना वजह आर्थिक नुकसान उठा रहे हैं और कई मिलर्स राइस मिल व्यसाय को बंद कर रहे हैं। एक महत्वपूर्ण सुझाव है कि अगर सरकार चाहे तो किसानों को 21 क्विंटल धान का प्रतिफल 65100 रुपये दे, किन्तु केवल 15 क्विंटल धान ही उपार्जन समितियों के माध्यम से खरीदी करे, इससे किसानों को अतरिक्त आय होगी।
कैसे व्यवस्था होगी, समझें
21 क्विंटल धान 3100/- में मतलब किसानों को मिलता है 65100 रुपये सरकारी खरीदी से। अब अगर सरकार 15 क्विंटल खरीदी कर पूरा भुगतान 65100 रुपये करती है तो किसानों को मिलता है 4340/- प्रति क्विंटल मूल्य और किसान बचत धान 6 क्विंटल को बाजार मे बेचता है मान लो 2000/- प्रति क्विंटल मे तो ये होता है 12000/-। तो इसका मतलब हुआ कि किसान को अपनी एक एकड़ मे उत्पादित 21 क्विंटल धान का मूल्य होता है- 77100 रुपये। इस तरह किसानों की आय मे भी वृद्धि होती है और बाजार मे भी लगभग 25-26% धान आने से राइस मिलर्स भी अपना अस्तित्व बचा सकते हैं।