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आरंग में स्थापित हैं श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमाएं, यहाँ गणेशोत्सव की ऐतिहासिक धूम

पीपला फाउंडेशन कर रहा प्राचीन प्रतिमाओं पर शोध अध्ययन, मूर्तियों की जानकारी संग्रहित।



      आनंदराम पत्रकारश्री
आरंग । छत्तीसगढ़ के प्राचीन नगरों में से एक आरंग में जगह-जगह श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित है। यहाँ गणेशोत्सव की ऐतिहासिक धूम हर साल होता है। राजधानी रायपुर की तरह ही आरंग में विशाल प्रतिमाओं की स्थापना, झांकी प्रदर्शन और भक्ति भाव से 11 दिनों तक गणेशोत्सव की धूम मची रहती है। प्राचीन काल से ही आरंग धार्मिक और मंदिरों की नगरी के नाम से प्रख्यात है। यहां के मंदिरों में जगह-जगह श्रीगणेश की स्थापित प्राचीन प्रतिमाएं वर्तमान में भी पूज्यनीय हैं। इन मूर्तियों की पुरातात्विक महत्व को प्रतिपादित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।




वैदिक काल से गणपति की देव स्थापना

तामासिवनी निवासी पुराविद् और प्राचीन कला विधा की प्रांत सहसंयोजक डॉ. शुभ्रा रजक तिवारी बताती हैं कि भारतीय धार्मिक परंपरा में गाणपत्य सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान माना गया है। वैदिक काल से ही देव के रूप में गणपति की प्रतिष्ठा हो गई थी। ऋग्वेद में रूद्र के गण मस्तों का वर्णन किया गया है। इन गणों के नायक को गणपति कहा गया है। ऋग्वेद में "गणानां त्वा गणपतिम्" मंत्र गणेशजी के लिए ही प्रचलित माना जाता है।




गणपति का शाब्दिक अर्थ है गण नायक अर्थात् समुदायों का नायक। ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेखित गणपति शब्द का विश्लेषण करने पर "ग" शब्द से ज्ञान, "ण" शब्द से मोक्ष और "पति" शब्द का अर्थ परब्रह्म से माना गया है।



पूजा विधान प्राचीनकाल से विद्यमान

गाणपत्य पूजा का विधान अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। जिसका प्रभाव भारतवर्ष के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी सभी जगह दिखाई देता है। गुप्तोत्तर काल में गणेश की प्रतिमाएं सम्पूर्ण भारतवर्ष में अंकित की जाने लगी थी। श्रीगणेश का अंकन शैव परिवारों में तथा नवग्रहों के साथ मंदिरों के सिरदल में बनाई जाने लगी। गणेश की प्रतिमा का निर्माण एकमुखी, द्विमुखी तथा पंचमुखी रूप में भी निर्मित किया गया है तथा प्रतिमा शास्त्रों में भुजाओं को द्विभुजी से षोडसभुजी तक निर्मित किये जाने का विधान बताया गया है। छत्तीसगढ़ में गणेश की प्रतिमाएं आसनस्थ, स्थानक, नृत्यरत, दम्पत्ति (सपत्निक) एवं अन्य देवी-देवताओं के साथ प्राप्त होती है। छत्तीसगढ़ में पांचवी शताब्दी ईसवी से पंद्रहवी शताब्दी ईसवी तक गणेश प्रतिमा का निर्माण तथा गाणपत्य धर्म के विकास का अनवरत क्रम दिखाई देता है।छत्तीसगढ़ के अनेक कलचुरी कालीन अभिलेखों में गणेशजी की वंदना एवं मंदिर निर्माण से संबंधित जानकारी प्राप्त होती है।




पीपला फाउंडेशन का शोध अध्ययन

स्वयंसेवी संगठन पीपला वेलफेयर फाउंडेशन के सदस्यगण इन प्राचीन प्रतिमाओं की जानकारी संकलित कर पुराविदों से अध्ययन करा रहे हैं। फांऊडेशन के संयोजक व समाजसेवी महेन्द्र पटेल बताते हैं श्रीगणेश की एक प्राचीन प्रतिमा आरंग नगर के लोधी पारा निवासी लक्ष्मीनारायण लोधी के निवास में स्थापित है, जो एक ही पत्थर से निर्मित करीब ढाई फीट ऊंची और डेढ़ फुट चौड़ी सुंदर प्रतिमा है। जिसकी पूजा आराधना लोधी परिवार के लोग ही करते हैं।
नगर के अन्य स्थानों पर भी श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमाएं खुले में कुछ खंडित अवस्था में हैं जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।





इन स्थानों पर है श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमाएं

आरंग नगर के सिद्ध शक्तिपीठ बाबा बागेश्वरनाथ मंदिर, बरमबावा मंदिर, नारायण बन हनुमान मंदिर, महामाया मंदिर, नकटी तालाब किनारे स्थित जागेश्वर महादेव मंदिर परिसर, भुनेश्वर महादेव मंदिर, समियामाता मंदिर, कंकाली मंदिर सहित नगर में अन्य मंदिरों में भी श्रीगणेश की प्राचीन प्रतिमाएं देखी जा सकती है। इससे प्रतीत होता है कि आरंग में सदियों से ही श्रीगणेश की पूजा - आराधना विशेष रूप से होती रही है। आज भी आरंग नगरवासी गणेशोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

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