Lok Sabha Elections 2024 : भारत में लोकसभा चुनाव में दो हफ्ते से भी कम का वक्त बचा है. चुनाव में कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं. वहीं, चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही की भी सप्लाई सभी राज्यों को कर दी गई. आज बात करेंगे इसी स्याही की. क्यों होता है चुनाव में इस स्याही का इस्तेमाल. भारत में पहली बार कब किया गया था इसका इस्तेमाल और क्या है इसकी कीमत और खासियत. जानें सब कुछ यहां
स्याही को बनाने वाली मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) ने देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसकी आपूर्ति कर दी है। एमपीवीएल, कर्नाटक सरकार का उपक्रम है और वर्ष 1962 से ही चुनाव आयोग के लिए इस स्याही का निर्माण कर रहा है। देश में सर्वाधिक 80 संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश में हैं, स्याही की सबसे बड़ी खेप की आपूर्ति उत्तर प्रदेश को ही की गई है। गहरा बैंगनी निशान छोड़ने वाली स्याही बाएं हाथ की तर्जनी पर इसलिए लगाई जाती है ताकि एक मतदाता द्वारा एक से अधिक मतदान को रोका जा सके। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 19 अप्रेल से लेकर 1 जून तक सात चरणों में होना है।
97 करोड़ हैं भारत में मतदाता देश में (जनवरी तक)
राज्य शीशियों की आपूर्ति
मार्कर पैन लाने का प्रयास
कंपनी पारंपरिक शीशी के स्थान पर विकल्प के तौर पर मार्कर पैन विकसित करने के लिए प्रयासरत है।
पिछले चुनाव में बढ़ी थी कीमत
अमिट स्याही बनाने में इस्तेमाल होने वाले महत्त्वपूर्ण घटक सिल्वर नाइट्रेट की कीमत में उतार-चढ़ाव के चलते पिछले चुनाव में ही एक शीशी पर आने वाली लागत 160 रुपए से बढ़कर 174 रुपए हो गई थी।