Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

विलुप्त होती नाट्य परंपरा को हम किसी तरह जिंदा रखे हुए हैं पर महासमुंद में नाटकों के लिए पर्याप्त मंच नहीं- अवनीश वाणी

महासमुंद। प्रेसवार्ता आहुत कर दिशा नाट्य कला मंच के प्रमुख एवं प्लास्टिक की गुडिय़ा नाटक के पटकथाकार अवनीश वाणी ने कहा कि अब नाट्य परंपरा विलुप्त होने की कगार पर है। महासमुंद में नाटकों के लिए पर्याप्त मंच नहीं हैं। लिहाजा कलाकारों को अभ्यास के लिए स्थान नहीं मिलता। बावजूद इसके अपने हिसाब से अभ्यास करते हुए महासमुंद के कलाकारों ने संभाग स्तरीय मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए नाम हासिल किया है।


उन्होंने कहा कि नाटक के जरिए सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई दसकों से जारी है। कई नाटकों ने देश भर में ख्याति हासिल किया है। नाटकों को देखने, सुनने और समझने वालों की तादात भले ही कम हैं लेकिन ये ऐसे लोग होते हैं जिनसे सामाजिक बदलाव संभव है। महासमुंद में कलाकारों की कमी नहीं हैं, नाटक कला के सम्मान करने वाले भी बहुत हैं। लिहाजा इस विलुप्त होती परंपरा को निभाते रहने के लिए नित नए नाटकों का लेखन जारी है। हमारी कोशिश है कि हमारे नाटकों को उत्तम स्थान मिले और इसे आगे तक ले जाने के लिए शहर के लोग हमसे जुड़ें। हमारे लिए कोई मंच की व्यवस्था करें। 

पत्रकार वार्त में उनके साथ निर्देशक शिक्षक डी बसंत राव भी प्लास्टिक की गुडिय़ा के तमाम पात्रों जिज्ञासा शर्मा, मोक्षा विदानी, जागति कुटारे, दुर्गा लटिया, पूजा साहू, रोहित सिंह, श्रेयांश दुबे, प्रखर साहू, वेदांत डडसेना, अक्षत रंजन, सिध्दार्थ मार्कंडेय के साथ उपस्थित थे। ये सभी इंग्लिश स्कूल बच्चे वेडनर मेमोरियल में पढऩे वाले बच्चे हैं। बच्चों ने बताया कि रायपुर में संभाग स्तरीय मंच पर सम्मान प्राप्त करने के बाद स्कूल के प्राचार्य फादर देवानंद वाघ ने भी सम्मान किया और स्कूल के शिक्षकों ने भी बधाईयां दी। बच्चों का कहना है कि हर घर में कोई न कोई कहानी होती है। हम इस बात ध्यान रखेंगे कि हमारे घर में, हमारे आसपास किसी महिला अथवा बच्ची पर अत्याचार तो नहीं हो रहा। हम बड़े मंच पर जाकर बहुत खुश हैं। यह हमारे शहर की शान बढ़ाता है कि हम बाहर जाकर भी अच्छा काम करें।

अवनीश वाणी कहते हैं कि मैं समाचार पत्रों के जरिए यह बात लोगों को बताना चाहता हूं कि अखबारों में छपी खबरों को कतई नजरअंदाज न करें। हर अखबार लोगों को जिम्मेदारियों का आभास दिलाने आता है। बड़ी-बड़ी फिल्में अखबारों की कर्तन के आधार बनती हैं। रोज के हादसे हमें वीभत्स सच से सामना कराते हैं। मैंने भी अखबार में छपी खबर के आधार पर प्लास्टिक की गुडिय़ा नाटक लिखा। इस खबर से मैंने एक बिन औलाद महिला की पीड़ा को समझा है। मैं चाहता हूं कि युवा वर्ग ऐसी धारणाओं को समाप्त करने के लिए आगे आएं। दिशा नाॉट्य कला मंच अपने नाटकों से हमेशा समाज को जागृत करने की कोशिश करता रहा है। अर्ध नारीश्वर और बिछुआ के पात्रों को आज भी लोग याद करते हैं।

Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.