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शिशु सुरक्षा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित हो रहे जागरूकता कार्यक्रम

रायपुर। नवजात शिशु के बेहतर स्वास्थ्य को लेकर सरकार द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में शिशु सुरक्षा दिवस के अवसर पर कई जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।  शिशु सुरक्षा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित हो रहे जागरूकता कार्यक्रम की जानकारी देते हुए महिला एवं बाल विकास की विभाग की पर्यवेक्षक, पंखुड़ी मिश्रा ने बताया: ‘’आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा लगातार गृहभेंट कर शिशुओं को स्वस्थ जीवन देने का  प्रयास किए जा रहे हैं।


         गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम से शिशुओं को मिल रहा स्वस्थ जीवन

इसके अतिरिक्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व मितानिन के माध्यम से शिशुओं, गर्भवती महिलाओं व शिशुवती माताओं की देखभाल भी की जा रही है। शिशु संरक्षण दिवस के अवसर पर आंगनवाड़ी केंद्रों में सुपोषण पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसमें नवजात शिशुओं एवं गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच भी की गयी। लोगों को पोषण आहार की सलाह के साथ नियमित टीकाकरण भी किया गया तथा पात्र शिशुओं को विटामिन और आईएफए का सिरप पिलाया गया।

शुरूआती 42 दिन हैं शिशु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.रश्मि अग्रवाल जैन कहती है: नवजात के लिए शुरूआती 42 दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं ऐसे समय में नवजात शिशु में खतरों के लक्षण की शीघ्र पहचान कर समय से चिकित्सीय जांच और इलाज कराना चाहिए ताकि किसी भी अनहोनी से शिशु को बचाया जा सके । जीवन के प्रथम छह सप्ताह अर्थात 42 दिन शिशु के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं, इस दौरान नवजात शिशु की विशेष देखभाल और समुचित निगरानी की जरूरत होती है।

शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य को गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम है अहम

शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा संचालित गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम काफी अहम है। इसके तहत मितानिन और कार्यकर्ता बच्चे के जन्म के बाद 42 दिन के भीतर छह/सात बार गृह भ्रमण करती हैं। मितानिन  के पास एचबीएनसी किट होती है जिसमें वजन मशीन, डिजिटल थर्मामीटर, डिजिटल  घड़ी और कंबल सहित कुछ दवाएं भी होती हैं। जिससे नवजात शिशु के स्वास्थ्य की जांच में आसानी होती है।



एचबीएनसी कार्यक्रम का उद्देश्य नवजात को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधायेँ उपलब्ध कराना, समय पूर्व पैदा होने वाले और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी देखभाल करना, नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल एवं रेफ़र करना, परिवार को आदर्श व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित एवं सहयोग करना तथा माँ के अंदर अपने नवजात शिशु के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता का विकास करना है।

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