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पिता की चिता को मुखाग्नि, अर्थी को कन्धा दे रहीं हैं बेटियां, वाकई बदल रहा है हमारा देश-समाज

आनंदराम पत्रकारश्री @ महासमुंद. युवा पत्रकार और नवोदित साहित्यकार 'साहस साव' असमय ही काल के गाल में समा गए। नशे की लत और दुःसाहस ने हमसे हमारा 'साहस' छीन लिया। मन बहुत व्यथित है, जीवन यात्रा में अनेक अवसरों पर साथ निभाने वाला 'साहस' इतनी जल्दी हमें अलविदा कहने की दुःसाहस भला कैसे कर सकते हैं? लंबी सांस लेकर मन को इस तरह समझा रहे हैं- 'विधि के विधान के समक्ष नतमस्तक होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।' 

साहस साव की अर्थी को कंधा देती हुई बेटियां हर्षा और लीली

दुःख की इस बेला में सीना गर्व से तब चौड़ा हो गया, जब 'साहस' की दो बेटियों ने अर्थी को कंधा देकर अदम्य साहस का परिचय दिया। ऐसा भी नहीं है कि 'साहस' के परिवार में कोई नहीं है। भरा पूरा, लंबा-चौड़ा परिवार है। बहुत से रिश्तेदार हैं। 



मुखाग्नि देने का अधिकार क्या केवल बेटे को है?
पिता की चिता को मुखाग्नि देने का अधिकार क्या केवल बेटे को ही है? नहीं न। बेटे और बेटियों में हमारा पुरूष प्रधान समाज भेद करता रहा है। महिलाओं का शमशान घाट तक जाना भी वर्जित मान रखे हैं। इन परिस्थितियों में पिता की चिता को मुखाग्नि देकर, अर्थी को कन्धा देकर 'साहस' की बेटियों ने यह साबित कर दिखाया है कि वे वास्तव में 'साहस' की बहादुर बेटियां हैं। वाकई हमारा देश और समाज अब बदल रहा है। 'साहस' की इन साहसी बेटियों को हम सलाम करते हैं। 
पिता की चिता को मुखाग्नि देती हुई बेटियां 




सामाजिक सरोकार की चहुँओर चर्चा

तीज पर्व (30.8.2022) के दिन 'साहस' के नहीं रहने की सूचना मिली। मीडिया24मीडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म पर खबर प्रकाशन के साथ ही 'साहस' के सामाजिक सरोकार और कुशल व्यवहार की चहुँओर चर्चा होने लगी। तीज त्यौहार में दूर गांव  गईं 'साहस' की माँ और बेटी-बहनों को देहावसान की सूचना दी गई। उनके झलप वापस आने पर दोपहर बाद बंगला पारा झलप से अंतिम यात्रा निकाली गई। यात्रा में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन और नामी हस्तियां शरीक हुए। शोक संतप्त परिवार में 'साहस' की अर्थी उठाने और मुखाग्नि देने को लेकर चर्चा होने लगी। 


'साहस' की बेटियों का साहसिक निर्णय
पिता की अर्थी को दुःखी मन से कंधा देना किसी के लिए भी कम बड़ा साहस नहीं है। 'साहस' की बड़ी बेटी हर्षा ने जब कंधा और मुखाग्नि देने का सहसा प्रस्ताव रखा। तो वहां उपस्थित परिजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओ के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हर्षा के प्रस्ताव पर छोटी बेटी तोयनिधि भी सहर्ष सहमति जताई। देखते ही देखते सभी के बीच इसकी चर्चा होने लगी। मौके पर उपस्थित साहू समाज के जिलाध्यक्ष धरम साहू ने इस प्रस्ताव पर सहमति जताई। फिर दोनों बेटियों हर्षा (18 वर्ष) और 16 वर्षीय तोयनिधि (लिली) ने अपने पिता 'साहस' के अर्थी को कंधा देने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने अपने घर से निजी भूमि पर बने अंतिम संस्कार स्थल तक अर्थी को कंधा दी।


बेटियों पर सभी को है गर्व
यह नजारा जिसने भी देखा बेटियों पर गर्व किया। "बेटियां, मां-बाप पर बोझ नहीं होती हैं, अब तो वह पिता की अर्थी का भार भी उठाने लगी हैं।" इसकी ही चर्चा होती रही। अंतिम यात्रा में पूर्व विधायक डॉ विमल चोपड़ा, वरिष्ठ भाजपा नेता मोती साहू, साहू समाज के जिला अध्यक्ष व भाजपा मंत्री धरम दास साहू, देवा नायक, सरपंच किशन कोसरिया, उपसरपंच सीटू सलूजा के अलावा पत्रकारिता, स्वास्थ्य, शिक्षा, साहित्य जगत से जुड़े अनेक गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए। होनहार युवा पत्रकार को नम आंखों से विदाई दी गई। बेटियों के द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देते देखकर सबकी आंखें भर आयी। 


सामाजिक परिवर्तन का सूत्रधार साहू समाज
अंतरराष्ट्रीय तेली दिवस की पूर्व संध्या पर जब भाव भरे इन पंक्तियों को लिख रहा था। तब सामाजिक परिवर्तन में तेली (साहू) समाज की भूमिका का ख्याल आने लगा। अदम्य साहस का परिचय देने वाली ये बेटियां तेली (साहू) समाज की हैं। उल्लेखनीय है कि साहू समाज ने मृत्यु भोज की अनिवार्यता समाप्त कर दिया है। देहावसान पर कफ़न कपड़ा ओढ़ाने की परंपरा को बदलकर शोक संतप्त परिवार के घर दान पेटी रखने की परंपरा में तब्दील किया है। इसके लिए सामाजिक जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है। करीब 50 साल पहले मुनगासेर (बागबाहरा) में आदर्श सामूहिक विवाह का प्रथम आयोजन करने का नवाचार साहू समाज ने ही किया था। यह ऐतिहासिक परिवर्तन खर्चीली शादी रोकने का विकल्प बना। गरीब बेटियों के हाथ पीले करने का आधार बना। अब तो सरकार ने इसे 'मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' सामूहिक आदर्श विवाह के रूप में अंगीकार कर लिया है। 






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