व्यक्ति का जैसा संगत होता है उसका रंगत वैसा ही हो जाता है। धुंधली और आत्मदेव को कोई संतान नही था इससे आत्मदेव दुखी रहते थे। एक दिन वे संत के पास गए और अपनी व्यथा बताई। संत दूरदृष्टा थे, उन्होंने अपने तपोबल से यह जान लिया कि आत्मदेव का सात जन्मों तक पुत्र नही है। इस पर आत्मदेव दुखी होकर संत के चरणों में गिर गए, संत ने करूणा दिखाई और एक फल प्रदान करते हुए कहा कि मेरे पुण्यबल से यह फल अपनी पत्नी को खिला दो वह पुत्रवती हो जाएगी। इस पर आत्मदेव ने ऐसा ही किया किंतु धुंधली को पुत्र नही चाहिए था, उसने अपनी सहेली से बात की तो उसकी गर्भवती सहेली ने अपना संतान देने का वचन दिया। इधर संत से मिले फल को उन्होंने गौ को खिला दिया। समय बीतने पर धुंधली के सहेली पुत्र हुआ जिसे उसने धुंधली का सौप दिया। इधर समय बीतने पर गौ माता ने भी अपने पुत्र को जन्म दिया। नामकरण की बारी आई तो अच्छे-अच्छे नाम आत्मदेव ने सुझाया लेकिन धुंधली को पसंद नही आया और उन्होंने अपने पुत्र का धुंधकारी रख दिया। आत्मदेव ने गौ माता के पुत्र का सुंदर नामकरण करते हुए गौकर्ण नाम रखा। समय बीतता गया और मां के प्यार-दुलार से धुंधकारी बिगडऩे लगा। युवावस्ता में उन्होंने चोरी शुरू कर दी। अपने पुत्र के व्यवहार से दुखी होकर आत्मदेव घर छोड़कर चले गए। धुंधली ने भी आत्महत्या कर ली।
धुंधकारी प्रेत बनकर गांव वालों को सताने लगा
अब धुंधकारी को रोकने वाला कोई नही था तो उन्होंने परस्त्रीगमन करते हुए पांच-पांच महिलाएं रख ली, जिसके लिए वह चोरी करने लगा यह बात धीरे-धीरे राजा तक पहुंची तो वेश्यावृत्रि करने वाली महिलाओं ने इस भय से धुंधकारी की हत्या कर दी कि कही राजा ने उन्हे भी अपराधी मानकार सजा न दे दे। मृत्यु के बाद धुंधकारी प्रेत बनकर गांव वालों को सताने लगा। दूसरी ओर गौकर्ण महाराज अपने पिता के संगत के कारण उनकी चित साधु-संतों की हो गई और वह भ्रमण करते हुए जब अपने गांव पहुंचा तो देखा कि उनका घर खंडहर हो गया है। वही रात गुजारने के लिए रूका तो धुंधकारी उसे सताने लगा इस पर गौकर्ण महाराज समझ गया कि वह प्रेतबाधा है और वह मंत्र पाठ करने लगे तब धुंधकारी ने बताया कि वह उसका भाई है और प्रेतयोनी में है और मुक्ति के लिए अनुनन-विनय करने लगा इस पर दूसरे दिन से गौकर्ण महाराज ने भागवत कथा सुनाना शुरू किया जिससे धुंधकारी को प्रेतयोनी से मुक्ति मिली। उन्होंने भगवत प्रेमी जनता से आह््वान किया कि जो बच्चे अपने माता-पिता की सेवा नही करते वह घर भी धुंधकारी के घर की तरह खंडहर हो जाता है। इसलिए बच्चों को हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए।
पेन डायरी लेकर आएं भागवत कथा सुनने
भागवत श्रवण करने आने वाले लोगों को चाहिए कि वे अपने साथ कापी, पेन लेकर आए और प्रमुख अंशों को लिख लिया करे नही तो तेरा तुझको अर्पण की भावना से कथा श्रवण कर इसी स्थान पर छोड़कर चले गए। आजकल यही हो रहा है लोग कथा सुनते जरूरी है लेकिन अनुसरण नही करते। प्रथम दिवस भागवत पुरान के प्रथम श्लोक से कथा का शुभारंभ करते हुए हिमांशु कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि भक्त और भगवान के मिलन की कथा ही भागवत है। यहां भगवान विराजमान है और अपने भक्तों की अगुवानी के लिए पधारे हुए है। यहा प्रतिदिन दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक भागवत कथा का आयोजन 30 मार्च तक किया गया है। नगर की सुख समृद्धि, शांति और जन कल्याण की भावना से नगरवासियों द्वारा यह आयोजन किया गया है। मुख्य जजमान नपाध्यक्ष प्रकाश चंद्राकर व उनकी धर्मपत्नी ललिता चंद्राकर व समिति के सदस्यों ने मजराज जी का पुष्पहार से अभिनंदन कर भागवत भगवान की आरती की।