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छत्तीसगढ़ में 1174 आयुष संस्थाओं के माध्यम से मुफ्त इलाज

छत्तीसगढ़ में लोगों को सेहतमंद बनाए रखने और उन्हें इलाज उपलब्ध कराने में आयुष संस्थाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। राज्य में 1174 आयुष संस्थाओं के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल और इलाज किया जा रहा है। इन संस्थाओं में चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 22 लाख 48 हजार मरीजों को इलाज उपलब्ध कराया गया है। 

आयुर्वेद पांच हजार साल पुरानी चिकित्सा पद्धति है। ये हमारी आधुनिक जीवन शैली को सही दिशा देने और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी आदतें विकसित करने में मदद करती है। इसमें जड़ी-बूटी और वनस्पतियों से स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद, दवा और रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ तैयार किए जाते हैं। इनके इस्तेमाल से जीवन सुखी, तनाव मुक्त और रोग मुक्त बनता है। राज्य शासन के आयुष संचालनालय के सहायक संचालक विजय साहू ने बताया कि प्रदेश में 1174 आयुष संस्थाएं लोगों को निशुल्क सेवाएं प्रदान कर रही है। 

22 लाख 48 हजार मरीजों का इलाज

इनमें रायपुर और बिलासपुर स्थित दो आयुर्वेद महाविद्यालय चिकित्सालय, पांच जिला आयुष चिकित्सालय, 12 आयुष पॉलीक्लिनिक, 637 आयुर्वेदिक औषधालय, 52 होम्योपैथी औषधालय, छह यूनानी औषधालय  और एलोपैथिक केंद्रों में संचालित 460 आयुष संस्थाएं शामिल हैं। इन सभी संस्थाओं में आयुष पद्धति के माध्यम से मरीज़ों की निशुल्क जांच और इलाज किया जा रहा है। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 22 लाख 48 हजार मरीजों ने यहां इलाज कराया है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेद कारगर 

डॉ. साहू ने बताया कि आयु्र्वेद के जरिए हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा सकते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता के बढ़ने से न केवल कोरोना वायरस जैसी महामारी से खुद को बचाया जा सकता है, बल्कि कई अन्य तरह के घातक वायरस से भी बचाव होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में कई तरह की जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का उपयोग होता है। ये हमारे आसपास आसानी से उपलब्ध भी हैं।

गिलोय- गिलोय आजकल दवा और जूस के रूप में उपलब्ध है। इसे पानी में उबालकर भी पिया जा सकता है। इसे दैनिक आहार में शामिल कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

आंवला- आंवला की चटनी या रस का भी सेवन किया जा सकता है। यह च्यवनप्राश का प्रमुख घटक है। इसमें बड़ी मात्रा में विटामिन 'सी' मिलता है।

तुलसी- इसके सेवन से ऊपरी और निचले श्वसन तंत्र की बीमारियां जैसे खांसी, सर्दी या श्वास संबंधित कष्ट को दूर कर सकते हैं। तुलसी के पत्तों का भी सेवन किया जा सकता है या इसे हर्बल टी के तौर पर पिया जा सकता है।

हल्दी- आयुर्वेद में हल्दी को काफी गुणकारी माना गया है। यह हमारी रसोई में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती है। इससे सूजन, श्वास, सर्दी-खांसी आदि रोग में मदद मिलती है। रोज खाने में डालने के अलावा हल्दी का पाउडर दूध में डालकर उसका सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

काली मिर्च- इसे भी आयुर्वेद में अहम स्थान दिया गया है। काली मिर्च को हल्दी में मिलाकर खा सकते हैं। यह सर्दी को जड़ से खत्म करने में काफी गुणकारी है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और आजकल गोलियों के रूप में भी उपलब्ध है।

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