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कोरोना काल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने वाले मनरेगा के 16 साल पूरे

ग्रामीण अंचलों में हर परिवार को रोजगार की गारंटी देने वाले 'मनरेगा' के आज 16 साल पूरे हो गए हैं। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2 फरवरी 2006 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले से 'मनरेगा' यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) की शुरूआत की थी। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। साल 2007-08 में दूसरे चरण में इसमें 130 और जिलों को शामिल किया गया। तीसरे चरण में 1 अप्रैल 2008 को इसे देश के बाकी ग्रामीण जिलों तक विस्तारित किया गया। 'नरेगा' के नाम से शुरू इस योजना की व्यापकता और प्रभाव के मद्देनजर इसे ग्राम स्वराज के परिदृश्य में देखते हुए 2 अक्टूबर 2009 को इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया। 

छत्तीसगढ़ में मनरेगा का शुभारंभ 2 फरवरी 2006 को राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखंड के अर्जुनी ग्राम पंचायत से हुआ। राज्य में भी इस योजना का विस्तार तीन चरणों में हुआ। प्रथम चरण में 2 फरवरी 2006 को तत्कालीन 16 में से 11 जिलों में इसे लागू किया गया। इनमें बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, जशपुर, कांकेर, कवर्धा, कोरिया, रायगढ़, राजनांदगांव और सरगुजा जिले शामिल थे। द्वितीय चरण में 1 अप्रैल 2007 से चार और जिलों रायपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा और महासमुंद को योजना में शामिल किया गया। तीसरे चरण में 1 अप्रैल 2008 से दुर्ग जिले को भी इसमें शामिल किया गया। अभी प्रदेश के सभी 28 जिलों में मनरेगा प्रभावशील है।

छत्तीसगढ़ में बीते 16 सालों में मनरेगा का सफर शानदार रहा है। साल 2006-07 में 12 लाख 57 हजार परिवारों को रोजगार प्रदान करने से शुरू यह सफर बीते वित्तीय वर्ष 2020-21 में 30 लाख 60 हजार से ज्यादा परिवारों तक पहुंच चुका है। प्रदेश में बीते साल रिकॉर्ड 30 लाख 60 हजार परिवारों के 60 लाख 19 हजार श्रमिकों को मनरेगा के माध्यम से काम मिला था। इसके एवज में श्रमिकों को अब तक का सर्वाधिक 3493 करोड़ 34 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया था। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी अब तक दस महीनों में यानी अप्रैल-2021 से जनवरी-2022 तक 26 लाख 28 हजार परिवारों के 49 लाख 28 हजार श्रमिकों को रोजगार दिया गया है। 

कोरोना काल में मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी प्रदान की। कोरोना संक्रमण को रोकने लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौर में इसने ग्रामीणों को लगातार रोजगार मुहैया कराया और उनकी जेबों तक पैसे पहुंचाए। बीते दो सालों में मनरेगा श्रमिकों को 5721 करोड़ 50 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। साल 2020-21 में 3493 करोड़ 34 लाख रूपए और चालू वित्तीय साल में 2228 करोड़ 16 लाख रूपए मजदूरों के हाथों में पहुंचाए गए हैं। इसने कोरोना काल में ग्रामीणों को बड़ी राहत दी है। इसकी वजह से विपरीत परिस्थितियों में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही।

मनरेगा के अंतर्गत प्रदेश में बीते 4 सालों में 57 करोड़ 53 लाख मानव दिवस से ज्यादा का रोजगार सृजन किया गया है। इस दौरान साल 2018-19 में 13 करोड़ 86 लाख, 2019-20 में 13 करोड़ 62 लाख और 2020-21 में 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार ग्रामीणों को उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय साल 2021-22 में भी अब तक 11 करोड़ 65 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया जा चुका है। योजना की शुरूआत से लेकर अब तक साल 2020-21 में सर्वाधिक 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हुआ है, जो प्रदेश के लिए नया रिकॉर्ड है। छत्तीसगढ़ में 2020-21 में राष्ट्रीय औसत 52 दिनों के मुकाबले प्रति परिवार औसत 60 दिनों का रोजगार दिया गया। 

दो लाख 27 हजार 566 परिवारों को रोजगार

साल 2019-20 में प्रति परिवार औसत 56 दिनों का और 2018-19 में 57 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय वर्ष में जनवरी-2022 तक औसतन प्रति परिवार 44 दिनों का रोजगार दिया जा चुका है, जबकि वित्तीय वर्ष की समाप्ति में अभी दो महीने बाकी हैं। मनरेगा के तहत बीते 4 सालों में प्रदेश में कुल 16 लाख 86 हजार से ज्यादा परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराया गया है। इस दौरान 2018-19 में चार लाख 28 हजार 372, साल 2019-20 में चार लाख 18 हजार 159 और 2020-21 में 6 लाख 11 हजार 988 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार प्रदान किया गया। चालू वित्तीय साल में अब तक दो लाख 27 हजार 566 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।

जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी 

मनरेगा कानून ग्रामीण गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है, जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। ये कानून अपनी तरह का पहला कानून है, जिसके तहत जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। मनरेगा के अंतर्गत प्रत्येक परिवार जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम का कार्य करना चाहते हैं, उनके द्वारा मांग किए जाने पर एक वित्तीय साल में 100 दिनों का गारंटीयुक्त रोजगार देने का लक्ष्य है। इस योजना का दूसरा लक्ष्य ये है कि इसके माध्यम से टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखा, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है, ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।

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