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मनरेगा में होगी 11 नए लोकपालों की भर्ती, 22 अप्रैल तक कर सकते हैं आवेदन

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राज्य शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के अंतर्गत 11 नए लोकपालों की नियुक्ति की जाएगी। राज्य मनरेगा कार्यालय द्वारा प्रदेश के 11 जिलों बेमेतरा, कोंडागांव, बीजापुर, नारायणपुर, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, बालोद, बलौदाबाजार, गरियाबंद, सुकमा, सूरजपुर और मुंगेली में लोकपाल के एक-एक पद पर राज्य स्तरीय भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किया गया है। 

इच्छुक अभ्यर्थी इसके लिए 22 अप्रैल 2022 तक शाम पांच बजे तक अपना आवेदन कर सकते हैं। आवेदक की आयु नियुक्ति के समय 66 साल से कम होनी चाहिए। लोकपाल के पदों पर भर्ती के लिए आवेदन संबंधी प्रारूप, अर्हता और शर्तों की जानकारी वेबसाइट www.cgstate.gov.in और www.mgnrega.cg.nic.in पर अपलोड की गई है। 

आवेदक अपना आवेदन आयुक्त, महात्मा गांधी नरेगा, विकास आयुक्त कार्यालय, तृतीय तल, कक्ष क्रमांक-19, विकास भवन, नॉर्थ ब्लॉक, सेक्टर-19, नवा रायपुर अटल नगर, रायपुर छत्तीसगढ़ को भेज सकते हैं। सिर्फ स्पीड पोस्ट या पंजीकृत डाक द्वारा भेजा गया आवेदन ही स्वीकार किया जाएगा।  

मल्टी-यूटिलिटी सेंटर ने खोला स्वरोजगार का द्वार, महिलाओं ने अकुशल श्रम से व्यवसाय की ओर बढ़ाए कदम

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स्वरोजगार के लिए अच्छा माहौल और उपयुक्त स्थान पाकर सुदूर कोरिया जिले के आदिवासी बहुल चिरमी गांव की महिलाओं ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और DMF(जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से बने मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में वहां की गंगा माई स्वसहायता समूह की 12 महिलाएं खुद का उद्यम स्थापित कर फेंसिंग पोल बनाने का काम कर रही है। खेतों और मनरेगा कार्यों में मजदूरी करने वाली इन महिलाओं को अकुशल श्रम से स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते देखकर गांव की बांकी महिलाएं भी प्रेरित हो रही है। इनके काम शुरू करने के बाद से गांव में 12 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं। 

मनरेगा और DMF के अभिसरण से 12 लाख 15 हजार रु की लागत से वर्क-शेड के रूप में तैयार मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में चिरमी की गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाएं फेंसिंग पोल बनाकर खड़गंवा विकासखंड के कई गांवों में आपूर्ति कर रही है। इनके द्वारा निर्मित 300 से अधिक पोल्स (Poles) की बिक्री अब तक की जा चुकी है। ग्राम पंचायतें इनका उपयोग गौठान और ब्लॉक-प्लांटेशन की घेराबंदी में कर रही है। पोल्स की बिक्री से समूह को 80 हजार रूपए मिले हैं। इन महिलाओं को तीन लाख रूपए का वर्क-ऑर्डर मिला है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित इस समूह की महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की उड़ान को देखकर गांव में 12 नए महिला स्वसहायता समूह गठित हो गए हैं।

12 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं। गंगा माई स्वसहायता समूह की सदस्य उर्मिला सिंह और रामवती मनरेगा में पंजीकृत श्रमिक हैं। खेती-किसानी, वनोपज संग्रहण और मनरेगा में मजदूरी ही उनकी आजीविका का साधन हुआ करता था। उन्होंने कुछ साल पहले गांव की अन्य महिलाओं को जोड़कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गंगा माई स्वसहायता समूह बनाया। समूह में 12 सदस्य हैं। इन महिलाओं ने मनरेगा काम से मिली मजदूरी में से कुछ रकम बचाकर समूह की गतिविधियां शुरू की। इनके समूह को आजीविका मिशन से 15 हजार रूपए की आर्थिक सहायता भी मिली। इससे उत्साहित होकर इन्होंने वन-धन केंद्र के माध्यम से वनोपज संग्रहण का काम शुरू किया। इस काम के लिए समूह को वन प्रबंधन समिति के माध्यम से बतौर कमीशन 18 हजार रु मिले। 

चिरमी में बीते साल गौठान बनने के बाद इन महिलाओं ने वहां जैविक खाद बनाने का काम किया। इससे उन्हें साढ़े आठ हजार रु की अतिरिक्त कमाई हुई। उर्मिला सिंह ने बताया कि ग्राम पंचायत से उनके समूह को जून-2021 में यह मल्टी-यूटिलिटी सेंटर मिला था, लेकिन इसके तुरंत बाद खेती-किसानी का काम आ जाने से उन लोगों ने सितंबर-2021 से फेंसिंग पोल बनाने का काम शुरू किया। आजीविका मिशन से मिले संसाधनों, वहां बने समान रखने का स्टोर और पोल्स की तराई के लिए पानी की व्यवस्था होने के बाद काम में तेजी आई। वो बताती है कि समूह को आसपास के ग्राम पंचायतों से अब तक करीब एक हजार पोल का ऑर्डर मिल चुका है। वे इनमें से 300 पोल्स की आपूर्ति भी कर चुके हैं।

समूह को स्वरोजगार के लिए मिला ठौर

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से 28 किलोमीटर दूर चिरमी में गौठान के पास ही वर्क-शेड का निर्माण कराया गया है। इसके लिए 12 लाख 15 हजार रु की प्रशासकीय स्वीकृति जारी हुई थी। मनरेगा से मजदूरी भुगतान के लिए मिले एक लाख 54 हजार रु और DMF से सामग्री के लिए प्राप्त दस लाख 61 हजार रु के अभिसरण से इसका निर्माण हुआ है। गांव में मल्टी-यूटिलिटी सेंटर के निर्माण से जहां एक ओर 39 मनरेगा श्रमिकों को 798 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला। वहीं स्थानीय समूह को स्वरोजगार के लिए ठौर भी मिल गया।

महिलाओं के परिवार ने 612 दिनों का रोजगार

मनरेगा के तहत साल 2020-21 में गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाओं के परिवार ने 612 दिनों का रोजगार प्राप्त किया था। जबकि इस साल 2021-22 में उन्होंने सिर्फ 306 दिनों का रोजगार प्राप्त किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि ये महिलाएं अब अकुशल श्रम के स्थान पर रोजगार के स्थाई साधन अपने व्यवसाय को तरजीह दे रही हैं। कल तक खेतों और  मनरेगा कार्यों में मजदूरी ढूंढने वाली ये महिलाएं अब राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), मनरेगा और DMF से संबल और संसाधन पाकर आर्थिक स्वावलंबन के नए आयाम गढ़ रही है।

मनरेगा से 3 सालों में 43.67 करोड़ मानव दिवस का रोजगार

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कोरोना काल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संजीवनी बनी मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) ने 2 फरवरी को अपने क्रियान्वयन के 16 साल पूरे कर लिए हैं। इस योजना के माध्यम से बीते 16 सालों में प्रदेश के श्रमिकों के हाथों में 25 हजार 463 करोड़ 66 लाख रूपए पहुंचाए गए हैं। इस दौरान राज्य में कुल 185 करोड़ 26 लाख मानव दिवस से ज्यादा का रोजगार सृजित किया गया है। छत्तीसगढ़ में कोरोना काल के दौरान पिछले 2 सालों में ही 30 करोड़ 6 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन किया गया है। 

मनरेगा में बीते साल रिकॉर्ड 30 लाख छह हजार परिवारों के 60 लाख 19 हजार श्रमिकों को काम मिला था। इसके एवज में श्रमिकों को अब तक का सर्वाधिक 3493 करोड़ 34 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया था। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी अब तक दस महीनों में (अप्रैल-2021 से जनवरी-2022 तक) 26 लाख 28 हजार परिवारों के 49 लाख 28 हजार श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर 2228 करोड़ 16 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है।

कोरोना काल में अर्थव्यवस्था की संजीवनी बनी मनरेगा 

ग्रामीण अंचलों में प्रत्येक परिवार को रोजगार की गारंटी देने वाले मनरेगा की प्रदेश में शुरूआत 2 फरवरी 2006 को राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखण्ड के अर्जुनी ग्राम पंचायत से हुई थी। प्रदेश भर में 3 चरणों में इस योजना का विस्तार किया गया। प्रथम चरण में 2 फरवरी 2006 को तत्कालीन 16 में से 11 जिलों में इसे लागू किया गया था। इनमें बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, जशपुर, कांकेर, कबीरधाम, कोरिया, रायगढ़, राजनांदगांव और सरगुजा जिले शामिल थे। द्वितीय चरण में 1 अप्रैल 2007 से चार और जिलों रायपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा और महासमुंद को योजना में शामिल किया गया। तृतीय चरण में 1 अप्रैल 2008 से दुर्ग जिले को भी इसमें शामिल किया गया। अभी प्रदेश के सभी 28 जिलों में मनरेगा प्रभावशील है।

छत्तीसगढ़ में 16 सालों में मनरेगा का सफर शानदार रहा है। साल 2006-07 में 12 लाख 57 हजार परिवारों को रोजगार प्रदान करने से शुरू यह सफर बीते वित्तीय वर्ष 2020-21 में 30 लाख 60 हजार से ज्यादा परिवारों तक पहुंच चुका है। कोरोना काल में मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी प्रदान की। कोरोना संक्रमण को रोकने लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौर में इसने ग्रामीणों को लगातार रोजगार मुहैया कराया और उनकी जेबों तक पैसे पहुंचाए। बीते तीन सालों में मनरेगा श्रमिकों को 7920 करोड़ 81 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। 

साल 2019-20 में 2199 करोड़ 31 लाख रूपए, 2020-21 में 3493 करोड़ 34 लाख रूपए और चालू वित्तीय वर्ष में 2228 करोड़ 16 लाख रूपए मजदूरों के हाथों में पहुंचाए गए हैं। इसने कोरोना काल में ग्रामीणों को बड़ी राहत दी है। इसकी वजह से विपरीत परिस्थितियों में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही। लॉकडाउन के दौर में बड़ी संख्या में प्रदेश लौटे प्रवासी श्रमिकों को भी मनरेगा से तत्काल रोजगार मिला। गांव लौटते ही उनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था हुई।


मनरेगा के अंतर्गत प्रदेश में पिछले तीन सालों में 43 करोड़ 67 लाख मानव दिवस से ज्यादा का रोजगार सृजन किया गया है। साल 2019-20 में 13 करोड़ 62 लाख और 2020-21 में 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार ग्रामीणों को उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी अब तक 11 करोड़ 65 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया जा चुका है। योजना की शुरूआत से लेकर अब तक वर्ष 2020-21 में सर्वाधिक 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हुआ है, जो प्रदेश के लिए नया रिकॉर्ड है। 

छत्तीसगढ़ में 2020-21 में राष्ट्रीय औसत 52 दिनों के मुकाबले प्रति परिवार औसत 60 दिनों का रोजगार दिया गया। साल 2019-20 में प्रति परिवार औसत 56 दिनों का और 2018-19 में 57 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय वर्ष में जनवरी-2022 तक औसतन प्रति परिवार 44 दिनों का रोजगार दिया जा चुका है, जबकि वित्तीय वर्ष की समाप्ति में अभी दो महीने बाकी है।

मनरेगा से सीधा रोजगार मिलने के साथ ही आजीविका संवर्धन और सार्वजनिक परिसंपत्तियों के निर्माण के भी काम हो रहे हैं। मनरेगा ग्रामीण गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। यह कानून अपनी तरह का पहला कानून है जिसके तहत जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। 

मनरेगा के अंतर्गत हर परिवार जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम का काम करना चाहते हैं, उनके द्वारा मांग किए जाने पर एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का गारंटीयुक्त रोजगार देने का लक्ष्य है। इस योजना का दूसरा लक्ष्य यह है कि इसके माध्यम से टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखा, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है, ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।

कोरोना काल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने वाले मनरेगा के 16 साल पूरे

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ग्रामीण अंचलों में हर परिवार को रोजगार की गारंटी देने वाले 'मनरेगा' के आज 16 साल पूरे हो गए हैं। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2 फरवरी 2006 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले से 'मनरेगा' यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) की शुरूआत की थी। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। साल 2007-08 में दूसरे चरण में इसमें 130 और जिलों को शामिल किया गया। तीसरे चरण में 1 अप्रैल 2008 को इसे देश के बाकी ग्रामीण जिलों तक विस्तारित किया गया। 'नरेगा' के नाम से शुरू इस योजना की व्यापकता और प्रभाव के मद्देनजर इसे ग्राम स्वराज के परिदृश्य में देखते हुए 2 अक्टूबर 2009 को इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम जोड़ा गया। 

छत्तीसगढ़ में मनरेगा का शुभारंभ 2 फरवरी 2006 को राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव विकासखंड के अर्जुनी ग्राम पंचायत से हुआ। राज्य में भी इस योजना का विस्तार तीन चरणों में हुआ। प्रथम चरण में 2 फरवरी 2006 को तत्कालीन 16 में से 11 जिलों में इसे लागू किया गया। इनमें बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, जशपुर, कांकेर, कवर्धा, कोरिया, रायगढ़, राजनांदगांव और सरगुजा जिले शामिल थे। द्वितीय चरण में 1 अप्रैल 2007 से चार और जिलों रायपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा और महासमुंद को योजना में शामिल किया गया। तीसरे चरण में 1 अप्रैल 2008 से दुर्ग जिले को भी इसमें शामिल किया गया। अभी प्रदेश के सभी 28 जिलों में मनरेगा प्रभावशील है।

छत्तीसगढ़ में बीते 16 सालों में मनरेगा का सफर शानदार रहा है। साल 2006-07 में 12 लाख 57 हजार परिवारों को रोजगार प्रदान करने से शुरू यह सफर बीते वित्तीय वर्ष 2020-21 में 30 लाख 60 हजार से ज्यादा परिवारों तक पहुंच चुका है। प्रदेश में बीते साल रिकॉर्ड 30 लाख 60 हजार परिवारों के 60 लाख 19 हजार श्रमिकों को मनरेगा के माध्यम से काम मिला था। इसके एवज में श्रमिकों को अब तक का सर्वाधिक 3493 करोड़ 34 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया था। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में भी अब तक दस महीनों में यानी अप्रैल-2021 से जनवरी-2022 तक 26 लाख 28 हजार परिवारों के 49 लाख 28 हजार श्रमिकों को रोजगार दिया गया है। 

कोरोना काल में मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी प्रदान की। कोरोना संक्रमण को रोकने लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौर में इसने ग्रामीणों को लगातार रोजगार मुहैया कराया और उनकी जेबों तक पैसे पहुंचाए। बीते दो सालों में मनरेगा श्रमिकों को 5721 करोड़ 50 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। साल 2020-21 में 3493 करोड़ 34 लाख रूपए और चालू वित्तीय साल में 2228 करोड़ 16 लाख रूपए मजदूरों के हाथों में पहुंचाए गए हैं। इसने कोरोना काल में ग्रामीणों को बड़ी राहत दी है। इसकी वजह से विपरीत परिस्थितियों में भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था अप्रभावित रही।

मनरेगा के अंतर्गत प्रदेश में बीते 4 सालों में 57 करोड़ 53 लाख मानव दिवस से ज्यादा का रोजगार सृजन किया गया है। इस दौरान साल 2018-19 में 13 करोड़ 86 लाख, 2019-20 में 13 करोड़ 62 लाख और 2020-21 में 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार ग्रामीणों को उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय साल 2021-22 में भी अब तक 11 करोड़ 65 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया जा चुका है। योजना की शुरूआत से लेकर अब तक साल 2020-21 में सर्वाधिक 18 करोड़ 41 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हुआ है, जो प्रदेश के लिए नया रिकॉर्ड है। छत्तीसगढ़ में 2020-21 में राष्ट्रीय औसत 52 दिनों के मुकाबले प्रति परिवार औसत 60 दिनों का रोजगार दिया गया। 

दो लाख 27 हजार 566 परिवारों को रोजगार

साल 2019-20 में प्रति परिवार औसत 56 दिनों का और 2018-19 में 57 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया। चालू वित्तीय वर्ष में जनवरी-2022 तक औसतन प्रति परिवार 44 दिनों का रोजगार दिया जा चुका है, जबकि वित्तीय वर्ष की समाप्ति में अभी दो महीने बाकी हैं। मनरेगा के तहत बीते 4 सालों में प्रदेश में कुल 16 लाख 86 हजार से ज्यादा परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराया गया है। इस दौरान 2018-19 में चार लाख 28 हजार 372, साल 2019-20 में चार लाख 18 हजार 159 और 2020-21 में 6 लाख 11 हजार 988 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार प्रदान किया गया। चालू वित्तीय साल में अब तक दो लाख 27 हजार 566 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।

जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी 

मनरेगा कानून ग्रामीण गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है, जो व्यापक विकास को प्रोत्साहन देता है। ये कानून अपनी तरह का पहला कानून है, जिसके तहत जरूरतमंदों को रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। मनरेगा के अंतर्गत प्रत्येक परिवार जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम का कार्य करना चाहते हैं, उनके द्वारा मांग किए जाने पर एक वित्तीय साल में 100 दिनों का गारंटीयुक्त रोजगार देने का लक्ष्य है। इस योजना का दूसरा लक्ष्य ये है कि इसके माध्यम से टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखा, जंगलों के कटान, मृदा क्षरण जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है, ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें।

मनरेगा के तहत श्रमिकों को रोजगार देने में राजनांदगांव जिला प्रदेश में अव्वल नंबर

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत प्रदेश में राजनांदगांव जिले में सर्वाधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया गया है। श्रमिकों को रोजगार देने में राजनांदगांव जिला प्रदेश में अव्वल नंबर पर है। श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलने से उनके जीवन में सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा के मार्गदर्शन और जिला पंचायत CEO लोकेश चंद्राकर के निर्देशन में श्रमिकों को रोजगार देने की दिशा में प्रभावी काम किए जा रहे हैं। 

जिले में डबरी निर्माण, कुंआ निर्माण, नरवा बंधान, शेड निर्माण, तालाब गहरीकरण और नया तालाब निर्माण जैसे कार्य मनरेगा के तहत किए जा रहे हैं। राजनांदगांव जिले के 813 ग्राम पंचायतों में 780 कार्य प्रगति पर है, जिनमें 1 लाख 50 हजार 690 श्रमिक कार्यरत हैं। जिले के डोंगरगांव विकासखंड के 72 कार्य चल रहे हैं, जिससे 9606 श्रमिकों को रोजगार मिला है। वहीं अंबागढ़ चौकी विकासखंड में 67 कार्य जारी है, जहां 12772 श्रमिक,  राजनांदगांव विकासखंड में 112 कार्य प्रारंभ, जहां 13942 श्रमिक काम कर रहे हैं।

इतने मजदूर कर रहे काम

मोहला विकासखंड में 57 कार्य प्रारंभ, जहां 16356 श्रमिक, छुईखदान विकासखंड में 90 कार्य प्रारंभ, जहां 17598 श्रमिक, डोंगरगढ़ विकासखंड में 101 कार्य प्रारंभ, जहां 18197 श्रमिक, मानपुर विकासखंड में 59 कार्य प्रारंभ, जहां 18415 श्रमिक, खैरागढ़ विकासखंड में 109 कार्य प्रारंभ, जहां 20630 श्रमिक, छुरिया विकासखंड में 113 कार्य प्रारंभ, जहां 23174 श्रमिक कार्यरत हैं।

मनरेगा से बने तालाब ने दिया आजीविका का नया साधन, बेटी की बीमारी में साबित हुई संजीवनी

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मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कई रूपों में लोगों का जीवन बदल रहा है। जरूरत के समय सीधा रोजगार देने के साथ ही आजीविका के साधनों को भी मजबूत कर रहा है। ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रोजगार के वैकल्पिक साधन भी निर्मित कर रहा है। कोरिया जिले के किसान धर्मपाल सिंह के जीवन में मनरेगा हवा का सुखद झोंका लेकर आया है। खेत में मनरेगा से बने तालाब में मछलीपालन कर वे अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। सिंचाई का साधन मिलने से खेती में अब जोखिम कम हो गया है। पैदावार बढ़ गई है और मुनाफा भी। बेहतर हुई माली हालत के कारण बेटी के थैलेसीमिया से पीड़ित होने पर अच्छा इलाज करा पाए। इलाज के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ा। मुश्किल वक्त में मनरेगा से बना तालाब संजीवनी बना।


मनेंद्रगढ़ विकासखंड के मुसरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव बाही के साढ़े तीन एकड़ जोत के छोटे किसान हैं  धर्मपाल सिंह। मनरेगा से खेत में तालाब खुदाई के पहले उनकी कृषि बारिश के भरोसे थी। धान की खेती के बाद आजीविका के लिए वे मनरेगा के अंतर्गत होने वाले कार्यों और गांव के दूसरे बड़े किसानों के यहां मिलने वाले कामों पर निर्भर थे। अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे। पांच सदस्यों के परिवार में जब उनकी तीसरी संतान दस साल की पूर्णिमा को थैलेसीमिया नामक रक्त न बनने की बीमारी हुई, तो परिवार परेशानी में आ गया।  धर्मपाल सिंह के सामने परिवार के भरण-पोषण के साथ बेटी के लगातार चलने वाले इलाज के लिए पैसों के इंतजाम की भी चुनौती थी।


84 मानव दिवस का सीधा रोजगार 

इस कठिन समय में सहायक मत्स्य अधिकारी हिमांचल नाथ वर्मा की सलाह उम्मीद की किरण लेकर आई। उन्होंने आजीविका संवर्धन और आमदनी बढ़ाने के लिए धर्मपाल सिंह को मछलीपालन की सलाह दी। मनरेगा के तहत खेत में तालाब निर्माण के लिए धर्मपाल सिंह के आवेदन के ग्रामसभा में अनुमोदन के बाद साल 2019-20 में इसके लिए तीन लाख रूपए मंजूर किए गए। तालाब खुदाई के लिए मछलीपालन विभाग को निर्माण एजेंसी बनाया गया। तालाब निर्माण के दौरान  धर्मपाल सिंह के परिवार को भी 84 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 15 हजार रूपए की मजदूरी मिली।


खेत में तालाब के निर्माण से जहां कम बारिश की स्थिति में फसलों को बचाने का साधन मिल गया, तो वहीं इससे खेतों में नमी भी बनी रहने लगी। तालाब खुदाई के बाद पिछले साल से धर्मपाल सिंह के खेतों में धान की अच्छी उपज होने लगी है। वे धान के बाद अब सब्जी की भी खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त कमाई होने लगी है। पिछले साल रबी सीजन में उन्होंने उड़द लगाकर एक क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया था। तालाब में मछलीपालन का धंधा भी अच्छा चल रहा है। 


खर्च की चुनौतियों का मजबूती से सामना

बीते एक साल से बेटी के लगातार चल रहे इलाज में मछलीपालन से हो रही कमाई ने अच्छा संबल दिया है। थैलेसीमिया के कारण उसे हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। धर्मपाल सिंह के मुश्किल समय में मनरेगा से निर्मित तालाब ने बड़ा सहारा दिया है।  बीते छह महीनों में उन्होंने मछली बेचकर 50 हजार रूपए कमाए हैं। इसकी बदौलत उन्होंने परिवार के भरण-पोषण और बेटी के इलाज के खर्च की चुनौतियों का मजबूती से सामना किया है।

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