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पर्व विशेष: दीपावली और देव दीवाली के बाद इस महीने मनाएं नाग दीवाली

(श्री पंचमी - मार्गशीर्ष अर्थात अघ्घन मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 8/12/2021)

धार्मिक सदभाव में भारत की खास पहचान है। वैश्विक स्तर पर यहां की विविधता में एकता की चर्चा होती है।भारत को त्यौहारों का देश भी कहा जाता है। यहां के रीति-रिवाज भी अलग-अलग हैं। कुछ बड़े त्यौहारों को राष्ट्रीय पर्व का दर्जा प्राप्त है। इसके अलावा सभी राज्यों में अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाज भी हैं। इनमें से कुछ पर्व और परंपराएं इतनी अजीब हैं, जिसे सुनकर आश्चर्य भी होता है। इनमें से ही एक अनोखा त्यौहार है नाग दिवाली। अभी तक तो आपने दीपावली और देव दिवाली का नाम ही सुना होगा। लेकिन नाग दिवाली त्यौहार के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यहां विस्तार से जानते हैं इस त्यौहार के बारे। नाग दिवाली कब और कहां मनाई जाती है? इसे मनाने के पीछे पौराणिक कथा क्या है? इस पर्व को मनाने को लेकर क्या किवदंतियां हैं?

उत्तराखंड के चमोली जिले में नाग दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मनाते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में भी यह पर्व अनेक स्थानों पर मनाया जाता है। नाग दिवाली मार्गशीर्ष (अघ्घन) माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। हिन्दू कैलेंडर का नौवां माह मार्गशीर्ष है। इस दिन नागों की विशेष पूजा की जाती है। वर्ष 2021 में यह तिथि देव दिवाली से बीस दिन बाद यानी 8 दिसंबर बुधवार को पड़ रही है। 

क्या है पौराणिक मान्यता ?

नाग दीपावली रंगोली सजाकर मनाई जाती है। रंगोली से उकेरी गई नागों के प्रतिरूप पूजन का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागों को पाताललोक का स्वामी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मौके पर घरों में रंगोली बनाकर नाग के प्रतीक के सामने दीपक जलाने से मनचाहा फल मिलता है। इसलिए ही नाग दिवाली मनाया जाता है। चमोली (देवभूमि उत्तराखंड) जिले के लोगों का मानना है कि इस दिन नाग देवता के पूजन से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है। इनकी पूजा करने से कुंडली के कालसर्प दोष का पूरी तरह से निवारण हो जाता है। साथ ही जीवन में आ रही दुविधाओं से मुक्ति मिलती है। इस तरह आस्था और प्राकृतिक संतुलन के प्रमुख जीव नाग की पूजा से जुड़ा यह पर्व है।

बांण गांव में है नाग देवता का रहस्यमयी मंदिर

चमोली जिले के बांण गांव में नाग देवता का एक रहस्यमयी मंदिर भी है। ऐसी किवदंती है कि यहां मणिधारी नागराज मौजूद हैं । जो अपनी मणि की खुद रक्षा करते हैं। नागराज , नागमणि की रक्षा करते हुए निरंतर फुककार से विष छोड़ते रहते हैं। जिसकी वजह से लोग करीब 80 फीट की दूरी से ही इनकी पूजा करते हैं। वहीं मंदिर के पुजारी भी नाक-मुंह में पट्टी बांधकर पूजा करने मंदिर के पास जाते हैं। आंख पर भी पारदर्शी पट्टी बांधकर ही मंदिर में प्रवेश करते हैं।

पुजारी के अलावा प्रवेश नहीं

लोगों का ऐसा मानना है कि मणि की तेज रोशनी इंसान को अंधा बना देती है। नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए। इसलिए वे नाक-मुंह पर पट्टी लगाते हैं। इस मंदिर में पुजारी के अलावा और कोई प्रवेश नहीं करता है। इस मंदिर का कपाट भी साल में केवल एक बार वैशाख पूर्णिमा पर खोला जाता है। इस दिन यहां विशाल मेला भरता है।

देवदार के बड़े वृक्षों के बीच छोटा मंदिर

मेला के दौरान यहां विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ होता है। स्थानीय लोग यहां लाटू देवता को ही अपना आराध्य मानते हैं।  यहां पर देवदार के बड़े बड़े वृक्ष लगे हुए हैं। वहीं पर इन वृक्षों के बीच लाटू देवता का एक छोटा सा मंदिर है। लाटू देवता का यह मन्दिर चमोली जिले के वाँण गाँव में स्थित है। जो चारों ओर से सुराई (देवदार) के वृक्षों से आच्छादित है। मन्दिर परिसर 150 मीटर के दायरे में फैला है। मन्दिर के ठीक ऊपर एक विशाल देवदार का वृक्ष है, जिसका व्यास करीब 05 मीटर है। मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धालु यहां सच्चे मन से अगर कोई मनोकामना मांगे, तो वह अवश्य पूरी होती है।

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