Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

चित्रकोट जलप्रपात के नजारे को देखकर मुग्ध हुईं राज्यपाल, नवाखाई रस्म में भी हुईं शामिल

भारत का नियाग्रा कहे जाने वाले चित्रकोट जलप्रपात के सुंदर दृश्य को देखकर राज्यपाल अनुसूईया उइके मुग्ध हो गईं। उन्होंने इस जलप्रपात के सौंदर्य को निहारा और जमकर प्रशंसा करते हुए इसे पूरे राज्य का गौरव बताया। उन्होंने जल प्रपात के कारण उत्पन्न कलरव के बीच जल प्रपात के अद्भूत सौंदर्य को काफी देर तक निहारा। 


बता दें कि 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए राज्यपाल उइके अपने तीन दिवसीय बस्तर प्रवास पर पहुंची हैं। शुक्रवार को जगदलपुर पहुंची राज्यपाल उइके ने माता दंतेश्वरी की पूजा अर्चना के साथ ही राजपरिवार द्वारा निभाई जाने वाली अश्वपूजा रस्म में शामिल हुईं। उन्होंने राज परिवार के सदस्यों से भेंटकर बस्तर दहशरा के दौरान निभाई जाने वाली रस्मों के संबंध में भी चर्चाएं की। राज्यपाल उइके शुक्रवार को ही चित्रकोट पहुंची, जहां विभिन्न लोक नर्तक दलों द्वारा बस्तर की पारम्परिक लोक नृत्यों के साथ उनका स्वागत किया गया। बस्तर की इन लोक नृत्यों को देखकर राज्यपाल उइके ने जमकर सराहना करते हुए लोक नर्तक के  साथ कदम से कदम भी मिलाया। 



कुम्हड़ाकोट में नवाखाई पर्व में शामिल हुई राज्यपाल  

राज्यपाल बस्तर दशहरा पर्व के बाहर रैनी रस्म के अंतर्गत कुम्हड़ाकोट में आयोजित नवाखाई पर्व में शामिल हुईं। उन्होंने कुम्हडाकोट जगदलपुर में बस्तर के माटी पुजारी  कमलचंद भंजदेव और उनके परिजनों के साथ देवी-देवताओं की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना के बाद सिंगार लाड़ी में बैठकर  दोना में नये चावल से बने अन्न खा कर नवाखाई रस्म  में सहभागिता निभाई। इस दौरान राजमाता कृष्णा  कुमारी देवी और उनके परिजनों के अलावा बस्तर सांसद और बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज, संसदीय सचिव रेखचंद जैन, दंतेवाड़ा विधायक देवती कर्मा, संभाग आयुक्त जीआर चुरेंद्र,  IG सुंदरराज पी., मुख्य वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद, कलेक्टर रजत बंसल, SP जितेंद्र मीणा समेत जनप्रतिनिधियों और दशहरा समिति से जुड़े लोग उपस्थित रहे। 


नवाखाई की रस्म

75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा पर्व सामाजिक समसरता के अनुपम उदाहरणों में से एक है। इस महापर्व को बस्तर के विभिन्न समुदायों की सहभागिता से निभाया जाता रहा है। किलेपाल क्षेत्र के माड़िया जनजाति द्वारा परंपरा के मुताबिक हर साल विजय रथ को चुराकर कुम्हड़ाकोट में रखा जाता है। रथ को खोजे जाने के बाद राजपरिवार पूरे लाव-लश्कर के साथ कुम्हड़ाकोट पहुंचता है। यहां राजपरिवार द्वारा रथ की वापसी के लिए मान-मनौव्वल किया जाता है। माड़िया समुदाय द्वारा इसके लिए साथ मिलकर नवाखाई की शर्त रखी जाती है, जिसे राजपरिवार द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता है। फिर यहां नवाखाई की रस्म धूमधाम के साथ पूरी करने पर माड़िया समुदाय द्वारा रथ को वापस राजमहल पहुंचा दिया जाता है।


Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.