सहायक आयुक्त प्रियंवदा रामटेके ने बताया कि कलेक्टर सर्वेश्वर भुरे ने निर्देशित किया था कि स्पर्धा के बाद इन बच्चों की मनचाही चीज पूरी कर दी जाए। बच्चों ने बताया कि उन्हें ट्रेन देखनी है। कुछ बच्चों ने कहा कि ट्रेन में यात्रा करनी है। कलेक्टर ने कहा कि इन 40 बच्चों को स्टेशन घूमाएं, ट्रेन दिखाएं और दुर्ग से मरौदा तक का संक्षिप्त सफर कराएं। बच्चों के कोच जय सिंह ने बताया कि बच्चों ने जूडो प्रतियोगिता में शानदार करतब दिखाए और 17 गोल्ड स्पर्धा में जीते।
कई बच्चों के माता-पिता की हो चुकी है मौत
बच्चों की इच्छा थी कि ट्रेन देखें। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हें ट्रेन में यात्रा करा दी। रामटेके ने बताया कि बच्चों में ट्रेन पर चढ़ने को लेकर अद्भुत ललक दिखी जैसे वो चांद पर सफर के लिए राकेट से निकलें हों। उनकी उमंग देखकर बहुत अच्छा लगा। पूरे ट्रेन के सफर के दौरान बच्चे अपने लोकगीत जोर-जोर से गाते रहे। बच्चों के इस उमंग को देखकर पूरे कार्यक्रम की सार्थकता हो गई। कोच ने बताया कि इनमें से कई बच्चों ने अपने पेरेंट्स को खो दिया है। उनकी खुशी से भरे चेहरे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।
प्लेन को देखकर ताली बजाने लगे थे बच्चे
इन बच्चों को भिलाई के हुडको स्थित श्रीशंकराचार्य विद्यालय के नजदीक ठहराया गया था। जब ट्रेन जब हार्न बजाते हुए गुजरी तो बच्चे झट से रूम के बाहर दौड़ पड़े कि बस एक बार ट्रेन देखने मिल जाए पर ट्रेन तो वहां से बहुत दूर से गुजर रही थी। इसी बीच आस-मान पर प्लेन भी दिखाई दिया तो वे तालियां बजाकर उछलने लगे। शहरी बच्चों के लिए भले ही यह नई बात न हो पर हमारे बस्तर के गांव से आए, इन आदिवासी बच्चों के लिए आज भी शहर की जिंदगी उनके लिए नई दुनिया जैसी है।
कई बच्चों ने पहली बार किया ट्रेन में सफर
बता दें कि इन दिनों राज्य स्तरीय शालेय खेल प्रतियोगिता में शामिल होने बस्तर जोन से 100 से ज्यादा खिलाड़ी भिलाई पहुंचे हैं, लेकिन इनमें से 24 से ज्यादा ऐसे हैं जो पहली बार अपने गांव से निकलकर बस में सवार हो यहां तक पहुंचे, खासकर जूडो में शामिल होने आए कोंडागांव जिले के नक्सल प्रभावित गांवों के इन नन्हें बेटे और बेटियों ने न तो कभी ट्रेन देखी और न ही आसमान में प्लेन को उड़ते देखा था। पिछले तीन दिनों से वे बस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब उनके कोच उन्हें ट्रेन दिखाने ले जाएंगे और कब उन्हें ट्रेन में बैठने का मौका मिलेगा।