आदिवासियों को एकत्र कर जल, जंगल और जमीन के लिए आंदोलन करने वाले जनक की आज पुण्यतिथि है। आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा का आज ही के दिन साल 1900 में रांची की जेल में निधन हो गया था। बिरसा मुंडा की उम्र भले ही छोटी थी, लेकिन कम उम्र में ही वे आदिवासियों के भगवान बन गए थे। 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गई जमींदारी और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ी। बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी बगावत की। ये महाजन कर्ज के बदले आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर लेते थे। बिरसा मुंडा के निधन तक चला ये विद्रोह 'उलगुलान' नाम से जाना जाता है।
15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा ने एक अक्टूबर 1894 को सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन छेड़ दिया। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। हड़िया का नशा मत करो। जीव जंतु, जल, जंगल, जमीन की सेवा करो। समाज पर मुसीबत आने वाली है, संघर्ष के लिए तैयार हो जाओ। काले गोरे सभी दुश्मनों की पहचान कर उनका मुकाबला करो। छोटी सी उम्र में पहाड़ सा संकल्प लेकर आगे बढ़े। युवाओं को संगठित किया। नशे से दूर रहने का संकल्प और अपने दुश्मनों की सही पहचान की। नया धर्म बिरसाइत चलाया, जिसके अनुयायी आज भी हैं।
उस समय भी उनके जादुई नेतृत्व के मुरीद सभी थे। उलिहातु से लेकर चाईबासा तक। जल, जंगल, जमीन की लड़ाई में जंगल सुलगने लगे थे। पहाड़ों पर बैठकों का दौर शुरू था। जंगल की आग नगरों तक फैली और उलगुलान शुरू हो गया। बिरसा के पास कोई आधुनिक हथियार नहीं थे। बस, तीर-धनुष जैसे पारंपरिक हथियार थे। कई तो गुलेल से भी लड़ रहे थे। इन्हीं हथियारों से वह दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यवादी सत्ता से लोहा ले रहे थे। इस युद्ध में वीरता के साथ बिरसा के साथी भी शहीद हुए, लेकिन उनकी कुर्बानियां बेकार नहीं गईं। अंग्रेजों को अंतत: सीएनटी एक्ट बनाना पड़ा।
नौ जून यानी बुधवार को बिरसा मुंडा झारखंड के भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। बिरसा मुंडा को नौ जून 1900 को रांची के जेल मोड़ स्थित कारागार में शहीद हुए थे। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1897 से 1900 के बीच मुंडा समाज के लोग अंग्रेजों से लोहा लेते रहे थे। बिरसा मुंडा और उनके साथियों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे। अगस्त 1897 में बिरसा और उनके सिपाहियों ने तीर कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोल दिया था।
बिरसा पर अंग्रेजों ने 500 रुपए का इनाम रखा था। उस समय के हिसाब से ये रकम काफी ज्यादा थी। कहा जाता है कि बिरसा की ही पहचान के लोगों ने 500 रुपए के लालच में उनके छिपे होने की सूचना पुलिस को दे दी। आखिरकार बिरसा चक्रधरपुर से गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों ने उन्हें रांची की जेल में कैद कर दिया। कहा जाता है कि यहां उनको धीमा जहर दिया गया। इसके चलते 9 जून 1900 को वे शहीद हो गए।
केंद्रीय गृहमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
वहीं उनकी पुण्यतिथि पर छत्तीसगढ़ के CM, राज्यपाल सहित केंद्रीय नेताओं और मंत्रियों उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। राज्यपाल अनुसुइया उइके ने महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लोकनायक बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन किया है। राज्यपाल उइके ने कहा है कि बिरसा मुंडा ने महाविद्रोह चलाकर तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी। उन्होंने अंग्रेजों से न केवल देश की आजादी के लिए संघर्ष किया, बल्कि आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लोक नायक के साथ-साथ महान समाज सुधारक भी थे।
CM ने पुण्यतिथि पर किया उन्हें नमन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारी जननायक बिरसा मुंडा को उनकी पुण्यतिथि पर नमन किया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि बिरसा मुण्डा आदिवासी चेतना के प्रणेताओं में से एक थे। उन्होंने आदिवासियों को एकत्र कर जल, जंगल और जमीन के लिए आंदोलन किया। अकाल पीड़ितों की मदद की। उनके शौर्य और बलिदान की गाथा आज भी लोगों को प्रेरित करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बिरसा मुण्डा ने हमें सिखाया कि प्रेरणादायी नेतृत्व होने पर सामूहिक इच्छाशक्ति, हथियारों की शक्ति पर भी भारी पड़ती है। उनका अदम्य साहस हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है। बघेल ने कहा कि आदिवासियों के स्वाभिमान की रक्षा करना और उन्हें अधिकार संपन्न बनाना ही बिरसा मुंडा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।