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महाकुंभ: भगवा कपड़ों में भूटान नरेश ने संगम में लगाई आस्था की डुबकी

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 Mahakumbh: भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक मंगलवार को उत्तर प्रदेश में आयोजित महाकुंभ मेला क्षेत्र में पहुंचे और त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई। वांगचुक के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी स्वतंत्र देव सिंह और नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने भी संगम में डुबकी लगाई।


सूचना विभाग द्वारा जारी बयान के मुताबिक, ‘‘भूटान नरेश ने अपने पारंपरिक पोशाक में संगम में स्नान किया, जबकि मुख्यमंत्री अपने भगवा वस्त्र में थे। स्नान करते समय उनके साथ स्वतंत्र देव ने भी भगवा वस्त्र धारण किए हुए थे। स्नान करने वालों में हाल ही में महामंडलेश्वर बनाए गए संतोष दास सतुआ बाबा भी शामिल थे।'

इससे पहले पूर्वाह्न करीब 11 बजे सीएम योगी आदित्यनाथ और भूटान नरेश विमान के जरिए लखनऊ से प्रयागराज पहुंचे। भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक सोमवार को लखनऊ पहुंचे थे जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संगम में साधु-संतों संग लगाई डुबकी, किया गंगा पूजन

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 Mahakumbh : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने महाकुंभ में संगम स्नान किया है। मंत्रोच्चारण के बीच अमित शाह ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई है। गृह मंत्री का परिवार भी महाकुंभ में आया है और उन्होंने भी संगम स्नान किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने संत महात्माओं के साथ संगम में डुबकी लगाई और इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे।


तस्वीरों में देखा गया कि अमित शाह कुछ संतों के साथ त्रिवेणी संगम में स्नान करने के लिए उतरे। वो आगे रहे और उनके साथ में संत महात्मा थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां अमित शाह के पीछे रहे। सीएम योगी जब पीछे थे, तो अमित शाह ने इशारा करके उन्हें आगे बुलाया। उसके बाद सभी ने मिलकर संगम में डुबकी लगाई। त्रिवेणी संगम पर पवित्र स्नान करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के माथे पर संतों ने तिलक लगाया।

अमित शाह ने किया गंगा पूजन

पवित्र स्नान के बाद अमित शाह ने गंगा पूजन में भी हिस्सा लिया. साधु संतों ने उन्हें गंगा पूजन करवाया. अमित शाह के साथ उनका पूरा परिवार भी इस कार्यक्रम में मौजूद है.

इस दौरान उन्होंने मछलियों को दाना भी डाला. अमित शाह पूरे परिवार के साथ महाकुंभ में पहुंचे हैं. इस दौरान उन्होंने अपने पोते को साधु संतों से आशीर्वाद भी दिलवाया.

क्यों महीनों-सालों नहीं नहाते ये साधू, नागा बनने के लिए देते हैं कौन सी कठोर परीक्षाएं, पढ़े पूरी खबर

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 Mahakumbh : महाकुंभ में नागा साधुओं का महत्व बहुत ज्यादा होता है. उनके बिना महाकुंभ शुरू नहीं हो पाता. परंपरा के मुताबिक, सबसे पहले नागा साधुही अमृत स्नान करते हैं. उसी के बाद बाकी के श्रद्धालु स्नान करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं, कई नागा साधु महीनों या सालों तक नहीं नहाते. इसके पीछे एक खास वजह है. नागा साधुओं का मानना है कि राख (भस्म) का लेप और ध्यान-योग से ही शुद्धि होती है. इसलिए वो सिर्फ भस्म या धुनि ही बदन पर लगाए रखते हैं. नागा साधू अपनी साधना में शरीर की बाहरी शुद्धता से अधिक आंतरिक शुद्धता पर ध्यान केंद्रित करते हैं.


वहीं, कुछ साधू नियमित अंतराल पर स्नान करते हैं, विशेषकर अगर उनकी साधना की परंपरा इसकी अनुमति देती हो. नागा साधूओं के स्नान का कोई सटीक नियम या समय निर्धारण नहीं होता है, क्योंकि यह उनकी साधना, परंपराओं और व्यक्तिगत तपस्या पर निर्भर करता है.

नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं और कन्दराओं में कठोर तप करते हैं. नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों में ये भी शामिल है कि इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं. इस प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है. इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है.

इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं. इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है. यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है.

अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है. उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं. ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं. इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं. यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं.

ऐसे बनते हैं नागा अवधूत

महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है. इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं. इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है. अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है. ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं. ये संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं. इनका एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा.

बाल नहीं कटवाते नागा साधु

नागा साधु आमतौर पर अपने बाल नहीं कटाते. यह उनके संन्यास और साधना के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जाता है. बाल नहीं कटाना इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने सांसारिक बंधनों, इच्छाओं और भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग दिया है. यह उनकी साधना और तपस्या का हिस्सा है.

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, बालों को बढ़ने देना और जटाएं बनाना आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करने में सहायक होता है. इसे ध्यान और योग में लाभकारी माना जाता है. बाल और दाढ़ी को बढ़ने देना उनके प्रकृति से जुड़ाव और जीवन की सरलता का प्रतीक है. नागा साधु अपने बालों को जटाओं (मैले और उलझे हुए बालों) में रखते हैं. यह शिव के प्रति उनकी भक्ति और साधना का संकेत है, क्योंकि भगवान शिव को “जटाधारी” (जटाएं धारण करने वाला) कहा जाता है.

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