महासमुंद। दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण की दिशा में एक उल्लेखनीय पहल के तहत वेटनरी पॉलिटेक्निक महासमुंद, दाऊ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय तथा साइटसेवर्स इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में “पशुपालन संवर्धन, संरक्षण एवं प्राथमिक उपचार” विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण में महासमुंद जिले के 35 दिव्यांग प्रशिक्षणार्थियों (एकल दिव्यांग समूह एवं दिव्यांग व्यक्तियों) ने भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की वंदना एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, जिससे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत वेटनरी पॉलिटेक्निक महासमुंद के प्रभारी प्राचार्य डॉ. देवेश कुमार गिरी ने की। उन्होंने भारतीय गौवंशीय नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन पर विस्तृत व्याख्यान देते हुए बताया कि स्थानीय नस्लों के संवर्धन से पशुधन की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है। उन्होंने यह भी बताया कि गौवंशीय पशु न केवल ग्रामीण आजीविका का स्रोत हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग भी हैं।
इसके पश्चात संस्था की सहायक प्राध्यापक डॉ. गोविना देवांगन ने पशुओं के आवास प्रबंधन पर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि स्वच्छ, हवादार व सुरक्षित पशुशाला न केवल पशुओं की सेहत के लिए जरूरी है, बल्कि इससे दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि होती है। प्रशिक्षणार्थियों को समझाया गया कि मौसम के अनुसार किस प्रकार पशु आवास में बदलाव लाकर पशुओं को रोगों से सुरक्षित रखा जा सकता है।
पशुपालन विभाग महासमुंद से उपस्थित विशेषज्ञ डॉ. आर. जी. यादव एवं डॉ. खुशबू चंद्राकर (पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ) ने राज्य तथा केंद्र शासन द्वारा संचालित विभागीय योजनाओं की जानकारी दिया। साथ ही, उन्होंने स्वरोजगार के दृष्टिकोण से बकरी पालन, मुर्गी पालन, सुअर पालन जैसे वैकल्पिक पशुधन व्यवसायों की व्यवहारिक जानकारी दी।
वेटनरी पॉलिटेक्निक के ही वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. शैलेश विशाल ने गर्भवती एवं दुधारू पशुओं की देखभाल, संतुलित आहार, साफ-सफाई और नियमित टीकाकरण की महत्ता को रेखांकित किया। इसके बाद डॉ. काशिफ रज़ा ने पशुओं के आहार प्रबंधन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि उचित पोषण न केवल उत्पादन को बढ़ाता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी सुदृढ़ करता है।
प्राचार्य डॉ. देवेश कुमार गिरी ने पुनः मंच पर आकर पशुओं के प्राथमिक उपचार, घरेलू उपाय, प्राथमिक चिकित्सा किट का महत्व तथा पशु चिकित्सा सेवाओं तक कैसे पहुंच बनाई जाए – इन विषयों पर उपयोगी जानकारी साझा की। उन्होंने दिव्यांग प्रशिक्षणार्थियों को यह प्रेरणा दी कि वे आत्मनिर्भर बनने हेतु पशुपालन को एक सशक्त आजीविका विकल्प के रूप में अपनाएं।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के सफल संचालन की जिम्मेदारी डॉ. गोविना देवांगन ने कुशलतापूर्वक निभाई, जबकि आभार प्रदर्शन डॉ. देवेश कुमार गिरी द्वारा किया गया।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल तकनीकी जानकारी का आदान-प्रदान था, बल्कि सामाजिक समावेशन, दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी था। यह पहल यह दर्शाती है कि यदि संस्थाएं एकजुट होकर कार्य करें, तो दिव्यांगजन भी समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।