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अमेरिका की नाराजगी के बीच रूस पहुंचे अजीत डोभाल, पुतिन ने किया गर्मजोशी से स्वागत

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नई दिल्ली/मॉस्को। अमेरिका की ओर से भारत पर 50% टैरिफ लगाए जाने के फैसले के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने गुरुवार, 7 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। क्रेमलिन में हुई इस अहम मुलाकात के दौरान पुतिन ने डोभाल का मुस्कुराते हुए गर्मजोशी से स्वागत किया और दोनों नेताओं के बीच रणनीतिक सहयोग के कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।


डोभाल की यह यात्रा ऐसे समय हुई है जब अमेरिका, भारत और रूस के बीच बढ़ते संबंधों को लेकर खुले तौर पर असहजता जता चुका है। यह मुलाकात न केवल द्विपक्षीय सहयोग को बल देती है, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का भी संकेत देती है।

पुतिन-डोभाल बैठक का रणनीतिक महत्व

क्रेमलिन में हुई यह बैठक दोनों देशों के बीच सुरक्षा, रक्षा, ऊर्जा और वैश्विक भू-राजनीतिक हालात को लेकर महत्वपूर्ण मानी जा रही है। डोभाल के पहुंचते ही पुतिन ने निजी तौर पर आगे आकर उनका स्वागत किया, जो दोनों देशों के संबंधों की गहराई को दर्शाता है।

बैठक में संभावित रूप से भारत-रूस के बीच चल रहे ऊर्जा समझौते, सैन्य तकनीकी सहयोग और वैश्विक मंचों पर समन्वय जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ।

अमेरिका क्यों है चिंतित?

इस बैठक से ठीक पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने का एलान किया। ट्रंप का आरोप है कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे मुनाफे के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहा है, जिससे रूस को आर्थिक लाभ मिल रहा है — और यही पैसा यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल हो सकता है।

ट्रंप ने पहले 25% टैरिफ लगाया था जिसे बाद में डबल कर 50% कर दिया गया, जिससे भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया है।

ट्रेड डील भी विवाद की वजह

ट्रंप की नाराजगी का एक अन्य कारण भारत-अमेरिका के बीच अटकी हुई व्यापार समझौता बातचीत भी मानी जा रही है। अमेरिका चाहता है कि भारत कृषि और डेयरी सेक्टर में बाजार खोले, जबकि भारत घरेलू किसानों और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए इस पर सहमत नहीं है।

भारत की स्पष्ट नीति: दबाव में नहीं झुकेगा

भारत सरकार ने अमेरिका के टैरिफ फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही ट्रंप का नाम न लिया हो, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि

"हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।"

भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि वह साझेदारी के लिए तैयार है, लेकिन संप्रभु हितों से समझौता नहीं करेगा।

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