Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

जैन संतो की निश्रा में नवकार अमृत अनुष्ठान एवं तपस्याओं का प्रारंभ

उपाध्यायद्वय अध्यात्मयोगी महेंद्रसागर जी मसा एवं युवा मनीषी मनीषसागर जी मसा के सुशिष्य पूज्य विवेकसागर जी मसा व पूज्य शासनरत्नसागर जी मसा की पावन निश्रा में रविवार 13 जुलाई को 51 दिवसीय नवकार अमृत अनुष्ठान का शुभारंभ हुआ ।


सर्वप्रथम मनोहर बहु मंडल ने मंगलगीत से कार्यक्रम का शुभारंभ किया । भक्ति गोलछा, मौली भंसाली, कृतिका लुनिया, ख़ुशी लूनिया और श्रुति लुनिया ने नृत्य के माध्यम से नवकार की महिमा का वर्णन किया । जैन श्री संघ द्वारा नवकार पट की स्थापना के लाभार्थी श्री नेमीचंद भंवरलाल सम्पतलाल कानमल चोपड़ा का बहुमान किया गया, तत्पश्चात नवकार पट की पालकी यात्रा गाजे बाजे के साथ जैन मंदिर से गांधी चौक होते हुए वल्लभ भवन पहुंची, जहाँ नवकार दरबार में नवकार पट की स्थापना की गई ।

साधकों को बेटका और माला श्री संघ की द्वारा गुप्त लाभार्थी के माध्यम से प्रदान किया गया । पूज्य विवेकसागर जी मसा ने इस अनुष्ठान का वर्णन करते हुए बताया कि 51 दिन में प्रत्येक आराधक को न्यूनतम 102 पक्की माला का जाप नवकार दरबार में करना है । अर्थात् एक आराधक 51 दिनों में कुल 11016 नवकार मंत्र का जाप करेगा । इस प्रकार 100 आराधक लगभग 11 लाख मंत्र का जाप इस दरबार में करेंगे । इतने मंत्रोच्चार से इस जगह की ऊर्जा में अपार वृद्धि होगी तथा सम्पूर्ण संघ का मंगल होगा । जैन धर्म में नवकार मंत्र की महिमा अपरंपार बतायी गई है । कार्यक्रम का संचालन सीए रितेश गोलछा द्वारा किया गया ।

आज से आत्म शोधन तप एवं कर्म विजय तप का भी प्रारंभ हुआ
आज से 30 दिनों के लिए दो विशेष तपस्या की आराधना का भी प्रारंभ हुआ । पूज्य शासनरत्न सागर जी ने फरमाया की अपनी आत्मा की पहचान, शुद्धि और विकास के लिए ये दोनों तप सहायक सिद्ध होंगे । कर्म विजय तप का उद्देश्य अज्ञानता के कारण बंधे कर्मों पर विजय पाना है , जिसमें 29 दिनों तक लगातार एकासना करना है और इसकी क्रिया करना है । इसके अलावा आत्म शोधन तप का उद्देश्य अपनी आत्मा को पहचानना है, जिसमें क्रिया के साथ 30 दिनों तक एक दिन उपवास और एक दिन बियासना का क्रम रहेगा । इसके साथ साथ तेले और आयंबिल की कड़ी भी गतिमान है ।

आराधकों के एकासना और बियासना की व्यवस्था श्री शांतिनाथ भवन गांधी चौक में रखी गई है । आगे जानकारी देते हुए संघ के अध्यक्ष राजेश लुनिया ने बताया की चातुर्मास जैन परम्परा के अनुसार तप और जप के लिए महत्वपूर्ण समय है । चातुर्मास के प्रारंभ से ही प्रात: प्रवचन, दोपहर को स्वाध्याय और फिर महावीर के सिद्धांतों की व्याख्या, शाम को प्रतिक्रमण, रात को पुरुषों का स्वाध्याय और भक्ति नियमित रूप से चालू है । सभी वर्ग और संप्रदाय के लोग इसका लाभ ले सकते हैं । यह जानकारी जैन श्री संघ से श्रीमति ललिता बरडिया ने दिया ।

Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.