तुमगांव : राम मंदिर के पास निर्मलकर परिवार के संयोजन में चल रही भागवत कथा का प्रसंग सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। कथाव्यास पंडित विकास मिश्रा जी जगन्नाथ मंदिर द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए। पंडित शरद मिश्रा महाराज ने भजन सुनाए। कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया।
कथा के दौरान आचार्य मिश्रा जी ने श्रोताओं को भागवत को अपने जीवन में उतारने की अपील की। साथ ही सुदामा चरित्र के माध्यम से श्रोताओं को श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिसाल पेश की। समाज को समानता का संदेश दिया। इस कड़ी में महाराज ने बताया श्रीमद् भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है, वहीं इस कथा को कराने वाले भी पुण्य के भागी होते हैं। अंतिम दिन सुखदेव द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई श्रीमद् भागवत भागवत कथा का पूर्णता प्रदान करते हुए विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने सात दिन की कथा का सारांश बताते हुए कहा कि जीवन कई योनियों के बाद मिलता है और इसे कैसे जीना चाहिए के बारे में भी उपस्थित भक्तों को समझाया। सुदामा चरित्र को विस्तार से सुनाते हुए श्रीकृष्ण सुदामा की निश्छल मित्रता का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे बिना याचना के कृष्ण ने गरीब सुदामा की स्थिति को सुधारा। आचार्य ने गौ सेवा कार्य करने पर जोर दिया। सुदामा की मनमोहक झांकियो का चित्रण किया गया जिसे देखकर हर कोई भाव विभोर हो उठा। अंत में कृष्ण के दिव्य लोक पहुंचने का वर्णन किया। महाआरती के बाद भोग वितरण किया गया।
उल्लेखनीय है कि 19 मई से 26 मई तक श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन निर्मलकर परिवार की ओर से किया गया। इस पवित्र अवसर को सफल बनाने में सभी नगर के भक्तों एवं समस्त परिवार ने अहम भूमिका निभाई। यह भागवत कथा का आयोजन राम मंदिर के पास डॉ पवन निर्मलकर निवास स्थान पर किया गया।