रायपुर : छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला अस्पताल में हुई बच्चों की अदला-बदली का मामला आखिरकार सुलझ गया। डीएनए जांच रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दोनों बच्चों को उनके वास्तविक माता-पिता को सौंप दिया। इस निर्णय से दोनों परिवारों में खुशी का माहौल बन गया और उन्होंने जिला प्रशासन का आभार व्यक्त किया।
पिछले आठ दिनों से कुरैशी और सिंह परिवार अपने असली बच्चों की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे। अस्पताल की लापरवाही के कारण उनके बच्चों की अदला-बदली हो गई थी, जिससे परिवारों में तनाव व्याप्त था। न्याय की गुहार लगाने के बाद जिला प्रशासन ने इस गंभीर मामले को संज्ञान में लिया और डीएनए परीक्षण कराने का निर्णय लिया।
जांच के तहत नवजात शिशुओं और उनके संभावित माता-पिता के सैंपल एकत्रित किए गए। इन सैंपलों की डीएनए जांच करवाई गई, जिसकी रिपोर्ट बाल कल्याण समिति को सीलबंद लिफाफे में प्राप्त हुई। दोनों परिवारों की उपस्थिति में जब यह रिपोर्ट खोली गई, तो स्पष्ट हो गया कि बच्चों की अदला-बदली वास्तव में हुई थी।
सही माता-पिता को अपने बच्चे मिलने के बाद दोनों परिवारों ने राहत महसूस की। साधना सिंह ने इस पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "हमारे बच्चे से अलग होने का जो दर्द हमने सहा, वह अब समाप्त हो गया है। हम प्रशासन के आभारी हैं।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनोज दानी ने पुष्टि की कि डीएनए रिपोर्ट आने के बाद बच्चों को उनके असली माता-पिता को सौंप दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रशासन की प्राथमिकता परिवारों को उनके वास्तविक बच्चे सौंपना था, और यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ संपन्न की गई। साथ ही, उन्होंने आश्वासन दिया कि इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार डॉक्टर और नर्सों पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
कैसे हुआ यह चौंकाने वाला खुलासा?
यह पूरा मामला 23 तारीख को शुरू हुआ, जब दुर्ग जिला अस्पताल में दो महिलाओं शबाना कुरैशी और साधना सिंह ने सिजेरियन डिलीवरी के जरिए बेटे को जन्म दिया. शबाना कुरैशी का बेटा सुबह 1:25 बजे पैदा हुआ. साधना सिंह का बेटा 1:34 बजे जन्मा. अस्पताल की प्रोटोकॉल के अनुसार, नवजात की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उसकी कलाई पर एक टैग लगाया जाता है. लेकिन इसी प्रक्रिया में अस्पताल प्रशासन ने गंभीर लापरवाही बरती.