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Kisan School Baheradih : एक स्कूल ऐसा भी, जहाँ न शिक्षक हैं-न विद्यार्थी, दी जाती है खेती-किसानी संबंधी शिक्षा

 आनंदराम पत्रकारश्री.

किसान स्कूल पहुँचे अध्ययन दल के लोग

Kisan School Baheradih : छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी स्कूल है, जहाँ न तो विद्यार्थी हैं और न ही कोई शिक्षक है, न ही नियमित कक्षाएं ही लगती है। फिर भी होती है यहाँ खेती-किसानी की उत्तम पढ़ाई। एक नवाचारी किसान ने घर को ही किसानों के स्कूल में तब्दील करके वह कर दिखाया है, जो उच्च शिक्षित लोग नहीं कर पाते हैं। जांजगीर चाम्पा जिले के बहेराडीह गांव में स्थित इस किसान स्कूल को भारत का पहला किसान स्कूल होने का गौरव प्राप्त है। क्षेत्र के कर्मठ पत्रकार, किसान पुत्र दिवंगत कुंजबिहारी साहू की स्मृति में इस स्कूल का नामकरण किया गया है। कुंजबिहारी साहू स्मृति किसान स्कूल बहेराडीह ने तीन साल की अल्पावधि में ही देश-दुनिया में विशेष ख्याति अर्जित कर ली है।

किसान स्कूल की जानकारी देते हुए दीनदयाल, रामाधार



स्कूल के संचालक व नवाचारी किसान दीनदयाल यादव, पत्रकार राजकुमार साहू बताते हैं कि नित नवाचार, छत पर खेती-बागवानी, किसानों को प्रशिक्षण, जैविक खेती, खेती में उपयोगी प्राचीन धरोहरों के संग्रहालय और उत्कृष्ट खेती करने किसानों को प्रेरित करने की वजह से किसान स्कूल की ख्याति तेजी से बढ़ी है। न केवल छत्तीसगढ़ अपितु देश के कोने-कोने से किसान यहाँ अवलोकन करने, खेती में नवाचार का ज्ञानार्जन करने आते हैं। बीते वर्ष यहाँ सात समुंदर पार कनाडा से भी किसान आए थे। किसान स्कूल बहेराडीह देखते ही देखते किसानों और ग्रामीणों का रोल मॉडल बन गया है।

'छोटे गाँव में बड़ा काम ' आकर्षण का केंद्र

जिला मुख्यालय जांजगीर के निकटवर्ती रेलवे स्टेशन चांपा से महज 8 किमी की दूरी पर ग्राम पंचायत सिवनी का आश्रित गांव है बहेराडीह। भले ही गांव छोटा है, लेकिन यहाँ काम बड़ा हो रहा है। यही वजह है कि यहाँ स्थित किसान स्कूल की चर्चा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है। देश-दुनिया के लोग किसान स्कूल का भ्रमण कर उन्नत खेती के गुर सीख रहे हैं। भले ही यहाँ किसानों की नियमित क्लास नहीं लगती है। लेकिन, कृषि औजारों को देखने, जैविक खेती के गुर सीखने, स्वसहायता समूह के माध्यम से आजीविका के लिए उत्पाद तैयार करने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। देशी-विदेशी खेतिहर और खेती से जुड़े लोगों के लिए यह खास आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

सेवाभावी और त्यागी किसान हैं प्रशिक्षक

धरोहर संग्रहालय में जानकारी देते हुए रामाधार देवांगन


स्वर्गीय कुंजबिहारी साहू की स्मृति में संचालित किसान स्कूल बहेराडीह के संचालक दीनदयाल का कहना है कि उनके स्कूल से जुड़े ज्यादातर लोग सेवाभावी और त्यागी किसान हैं। जो लोगों को उन्नत खेती, कुटीर उद्योग, खेती पर आधारित व्यवसाय की शिक्षा निःशुल्क देते हैं। न यहाँ प्रशिक्षकों को कोई मानदेय अथवा वेतन भत्ता दिया जाता है। और न ही यहाँ अध्ययन यात्रा पर आने वाले किसानों से किसी प्रकार का कोई शुल्क या फीस लिया जाता है। सबकुछ निशुल्क है। राष्ट्रीय किसान दिवस पर 23 दिसम्बर 2021 को इस स्कूल की स्थापना की गई। तीन साल की अल्पावधि में यह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बना लिया है। इससे उत्साहित होकर स्कूल के संचालक हर साल 23 दिसम्बर राष्ट्रीय किसान दिवस पर यहाँ खास आयोजन भी करने लगे हैं। इस स्कूल को भारत का प्रथम किसान स्कूल होने का गौरव प्राप्त है। इस विद्यालय की खास बात यह है कि किसानों को ही पढ़ाया जाता है। यहां आकर किसान उन्नत खेती की तकनीक और गुर सीखते हैं।

'36गढ़ के 36 भाजी' का संग्रह और प्रदर्शनी

किसान स्कूल कार्यालय में चर्चा करते हुए संपादक आनंदराम पत्रकारश्री


इस किसान स्कूल में छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले ज्यादातर भाजियों का संकलन किया गया है। छत पर इसकी विशेष प्रदर्शनी भी लगाई गई है। 36 भाजियों के बीज का संग्रहण करके किसान दीनदयाल ने पेटेंट भी कराया है। इनमें चेंच भाजी, अमारी भाजी, लाल भाजी, पालक भाजी, सरसों भाजी, तिवरा भाजी, खेड़हा भाजी, कुरमा भाजी, भथुआ भाजी, नुनिया भाजी, चुंचुनिया भाजी, पीपल भाजी, करेला भाजी, मूली भाजी, चौलाई भाजी, मेथी भाजी, गोंदली (प्याज) भाजी, चरोटा भाजी, मूटी भाजी, पोइ भाजी, कांदा भाजी, करमता भाजी, गोभी भाजी, चना भाजी, रोपा भाजी, गांव भाजी, कोलियर भाजी, बोहार भाजी, केना भाजी, अकरी भाजी, मखना भाजी, मुसकेनी भाजी, कोचई भाजी, गुररू भाजी, बर्रे भाजी, मुनगा भाजी शामिल है। इन भांजियों के संकलन के लिए यहां इस वर्ष राज्य स्तरीय भाजी महोत्सव का आयोजन भी किया गया।
किसान स्कूल में प्रदर्शित 36 भाजी के नाम

इस स्कूल में धरोहर स्वरूप छत्तीसगढ़ से विलुप्त हो रही विभिन्न सामग्रियों का संकलन किया गया है। जो लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ आकर बुजुर्ग किसानों को भी बचपन की यादें ताजा हो जाती है। किसान स्कूल में सबकी सहभागिता है। जिनके पास जो पुरानी सामग्रियां है, वह यहाँ लाकर ग्रामीण धरोहर के लिए दान में देते हैं।

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