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नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की होती है पूजा, जानें मां की पूजा का महत्व, पूजा विधि और भोग

 शारदीय नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा के भिन्न रूप को समर्पित होता है. आज 9 अक्टूबर, बुधवार के दिन मां दुर्गा के सातवें रूप मां कालरात्रि (Ma Kalratri) का पूजन किया जाता है. मां कालरात्रि को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है. मां कालरात्रि साहस और वीरता का प्रतीक हैं और मां की पूजा करने पर व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त होती है. जानिए आज किस तरह मां कालरात्रि की पूजा संपन्न की जा सकती है, मां का प्रिय रंग कौनसा है, मां को किन चीजों का भोग लगाना शुभ माना जाता है और किन मंत्रों के उच्चारण से मां कालरात्रि की पूजा संपन्न की जा सकती है.


मां कालरात्रि की पूजा
मां कालरात्री की पूजा करने के लिए सुबह स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और मां का ध्यान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है. मां की प्रतिमा के समक्ष गंगाजल छिड़का जाता है और मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद पूजा के लिए पुष्प, रंगोली, कुमकुम, मिष्ठान, पंचमेवा, फल और शहद आदि मां कालरात्रि के समक्ष अर्पित किए जाते हैं और मां का पूजन होता है. आरती और मंत्रों (Mantra) का जाप करके मां कालरात्रि की पूजा संपन्न होती है.

मां कालरात्रि का स्वरूप
मान्यतानुसार मां कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला होता है. मां जब सांस लेती हैं तो उनके मुख और नाक से ज्वाला निकलती है. मां कालरात्रि के बाल लंबे और बिखरे हुए हैं. मां कालरात्रि के गले में बिजली की तरह चमकती हुई माला है, मां के तीन नेत्र हैं और मां हाथों में तलवार और लोहे के शस्त्र रखती हैं. वहीं, मां कालरात्रि के अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में रहते हैं.

मां कालरात्रि का प्रिय भोग
मां कालरात्रि को भोग (Bhog) में गुड़ अतिप्रिय माना जाता है और इसीलिए भोग में गुड़ ही चढ़ाया जाता है. माता को गुड़ से बनी मिठाइयां और पकवान अर्पित किए जा सकते हैं.

मां कालरात्रि का प्रिय रंग
मान्यानुसार मां कालरात्रि की पूजा में उनके प्रिय रंगों के वस्त्र पहनकर पूजा करना बेहद शुभ होता है. मां कालरात्रि का प्रिय रंग लाल माना जाना है. ऐसे में मां कालरात्रि की पूजा में लाल रंग के वस्त्र धारण किए जा सकते हैं.

मां कालरात्रि मंत्र

ॐ कालरात्र्यै नम:।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,
लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा,
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते॥

ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।

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