दंतेवाड़ा। "लोक साहित्य को लोक मन की सहज अभिव्यक्ति कहा जा सकता है।" उपरोक्त उद्गार शासकीय महेंद्र कर्मा कन्या महाविद्यालय दंतेश्वरी के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एकदिवसीय व्याख्यान कार्यक्रम में नगर की लोकसाहित्यविद् प्रो डॉ अनुसुइया अग्रवाल डी लिट् प्राचार्य शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय महासमुंद व्यक्त कर रही थी।
व्याख्यान माला कार्यक्रम का प्रारंभ मां शारदे की पूजा एवं वंदना से हुई। तत्पश्चात महाविद्यालय के प्राचार्य श्री हिरकाने के द्वारा अतिथि के लिए स्वागत भाषण प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि वनांचल क्षेत्र में बहुधा शहर के विषय विशेषज्ञ आकर व्याख्यान देने में आनाकानी करते हैं किंतु आज डॉ अनुसुइया के रूप में छत्तीसगढ़ की सर्वोच्च डी लिट् उपाधि धारक वक्ता को सुनना महाविद्यालय के लिए अत्यंत गौरवपूर्ण होगा। उन्होंने हमारे आग्रह को सहज स्वीकार किया इसके लिए महाविद्यालय परिवार उनके प्रति आभार व्यक्त करता है।
हिंदी विभाग की अध्यक्ष श्रीमती अर्चना झा के द्वारा हिंदी विभाग का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। अतिथि सहायक प्राध्यापक डॉ नियति अग्रवाल ने प्रमुख वक्ता का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया और बताया कि प्रमुख वक्ता के द्वारा लिखे गए साहित्य पर दुर्ग विश्वविद्यालय से पीएचडी भी हो रही है। तत्पश्चात अपने वक्तव्य में डॉ अनुसुइया ने कहा किलोक की सृष्टि बहुत ही लुभावन और सहज होती है। बहुत ही सहज, साधारण जीवन बिताने वाले मनुष्यों का वह समुदाय—जो प्रायः निरक्षर होता है तथा शास्त्रीय ज्ञान से परे होता है वही लोकसाहित्य के माध्यम से अपने सुख-दुख, हर्ष-विषाद और आचार-विचार को वाणी देता है। प्रकृति के रंग-बिरंगे वातावरण और परिवेश में ऋतुओं और मौसम के परिवर्तन के साथ लोक के हृदय में जो अनुभूतियाँ जागृत होती हैं, जो सहज भाव जागृत होता है उन्हें यह समाज अपने सहज रागबोधों द्वारा गीतों के रूप में व्यक्त करता है।
अपने निजी अथवा सामूहिक जीवन की हृदयस्पर्शी एवं प्रेरणापरक घटनाओं को भी वह गायी जाने सकने वाली कथाओं, गाथाओं में ढाल लेता है। समय बिताने के लिए, मनोरंजन अथवा पहले के लोगों और घटनाओं के स्मरण की दृष्टि से यह क़िस्से कहानियों की रचना करता है। बच्चों को बहलाने और उन्हें शिक्षा या उपदेश देने के लिए जो उद्धरण वो प्रस्तुत करते हैं उन्हें सामान्य लोगों के बोध को जगाने के लिए पहेलियों और कहावतों में ढ़ाल देते हैं। और इस तरह जिस सृष्टि की वे रचना करते हैं वह बहुत ही अद्भुत, बहुत ही सुंदर, बहुत ही सहज, आकर्षक और मनभावन होती है ;जहां छल- प्रपंच, कूटनीति का कोई स्थान नहीं होता। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामय: की उदात्त भावना से जो आपूरित होता है । वह लोक समाज है और वहां का साहित्य लोक साहित्य है।
आभार प्रदर्शन वाणिज्य संख्या प्रमुख विवेक शर्मा के द्वारा किया गया उक्त व्याख्यान कार्यक्रम में महाविद्यालय के अधिकारी कर्मचारी सहित बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित थी। सबने बहुत रुचि के साथ पहली बार महाविद्यालय में आयोजित इस व्याख्यान कार्यक्रम में शिरकत किया और विषय विशेषज्ञ से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया।