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हनुमान जयंती विशेष : आरंग के गली-गली में विराजमान है बजरंगबली

 आरंग। मंदिरों की नगरी के नाम से विख्यात आरंग को हनुमानजी की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। नगर के चारों दिशाओं में हनुमान जी की प्रतिमाएं बड़ी संख्या में स्थापित हैं। जिनका श्रद्धालुओं द्वारा वर्षभर पूजा-आराधना की जाती है। मंगलवार को हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर जगह-जगह पूजा-अर्चना, भंडारा, हनुमान चालीसा, सुंदर काण्ड पाठ, भजन कीर्तन का आयोजन किया जाएगा।


मोहल्ले में हनुमान की प्रतिमाएं विराजित हैं। नगर के चारों दिशाओं में छोटे-बड़े मिलाकर सैकड़ों हनुमान प्रतिमाएं देखने को मिलती है। जिनमें महामाया पारा में विराजमान उत्तरमुखी नारायणबन हनुमान, जगन्नाथ मंदिर में स्थापित दक्षिणमुखी हनुमान, गुप्ता पारा, बागेश्वर मंदिर, पुराने सब्जी बाजार में स्थित रेणुक देव हनुमान, बरगुडी पारा, बस स्टैण्ड में स्थापित प्राचीन हनुमान प्रतिमाएं प्रमुख हैं। यहां जगह-जगह हनुमान मंदिर स्थापित होने के पीछे सबके अपने-अपने तर्क हैं। लोक मान्यताओ के अनुसार भगवान राम वनवास काल में आरंग होते हुए आगे बढ़े थे।



यहां भगवान राम के आगमन होने के कारण भक्त हनुमान की प्रतिमाएं जगह-जगह स्थापित है। कुछ लोगों का कहना है पहले के लोग मंत्र-तंत्र में अधिक विश्वास करते थे। इसलिए हनुमान स्थापित करने से तांत्रिक शक्ति परेशान नहीं करती ऐसी मान्यता के कारण भी जगह-जगह हनुमान स्थापित किया जाता था। मंगल व शनिवार को इन मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस दिन प्रायः सभी हनुमान प्रतिमाओं में लोग सिंदूर का लेप कर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। नगर में जगह-जगह विराजित हनुमान प्रतिमाओं को देखते हुए नगर को हनुमानों की नगरी भी कहा जा सकता है।

आरंग नगर का सबसे बड़ा हनुमान है नारायणबन हनुमान

धर्म नगरी के नाम से सुविख्यात नगर आरंग में महामाया तालाब के किनारे विराजमान उत्तरमुखी नारायणबन हनुमान जो एक ही पत्थर से निर्मित नगर का सबसे बड़ा हनुमान है। स्थानीय लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह प्रतिमा नारायणबन तालाब से प्राप्त हुआ है। यह पाषाण प्रतिमा काफी प्राचीन है। नारायणबन तालाब से प्रकट होने के कारण ही इस प्रतिमा व मंदिर का नाम नारायणबन पड़ा। कहा जाता है लोगों ने पहले इस प्रतिमा को तालाब से निकालकर बैलगाड़ी से अन्य जगह ले जाने का काफी प्रयास किया लेकिन प्रतिमा रखते ही गाड़ी टूट जाता था या कोई न कोई व्यवधान आ जाता था। तब बड़ी मुश्किल से यह प्रतिमा महामाया तालाब के किनारे लाया गया और इस प्रतिमा को यही स्थापित कर दिया। यह मंदिर का गर्भगृह पत्थर से निर्मित है जो काफी प्राचीन है। बाद में मंदिर के मण्डपद्वार को महामाया पारा निवासी अशोक चंद्राकर ने जीर्णोद्धार कराया। प्रतिमा कितनी पुरानी इसकी जानकारी किसी को नही है। वहीं मंदिर के पुजारी नरसिंग तिवारी ने बताया इस प्रतिमा की ऊंचाई लगभग छः फिट से अधिक है। दाहिने ओर भगवान नरसिंह व बाएं ओर छोटी हनुमान प्रतिमा स्थापित है। प्रवेश द्वार में जय-विजय व गणेश, गरूड़ की प्रतिमा विराजमान हैं। यहां हर मंगलवार व शनिवार को श्रद्धालु चोला चढ़ाते व पूजा अर्चना करते है।

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