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जीवन दर्शन: दशरथ या दशमुख बनना अपने हाथों में

महासमुंद में संगीतमय कथा के आचार्य पंडित ध्रुव नारायण शुक्ला ने कहा मानव जीवन बड़े सौभाग्य से मिलता है। इस देव दुर्लभ मानव जीवन को पाकर हमें विचार करना चाहिए कि हम इसका सदुपयोग कैसे करें। हम इस तन को पाकर दशरथ या दशमुख दोनों बन सकते हैं।




 राम चरित मानस में पूरा चिंतन दशरथ या दशमुख के आधार पर किया गया है। दशमुख का अर्थ है भोगवादी बनना। हमारे इस शरीर में दश ईन्द्रिया है, इनका काम निरंतर अपने भोगों में लगाए रखकर दशमुख बनाना है या जितेन्द्रिय बनकर विवेक पूर्वक ईन्द्रियों को भगवान में लगाना हमारे उपर है।

अपने शरीर रूपी रथ को परमात्मा रूपी लक्ष्य की ओर ले जाना दशरथ बनना है। ये हम पर है कि अपने आपको क्या बनाते हैं। राम दशरथ और दशानन दोनों के पास गये। दशरथ के पास बाल लीला करते हैं, आनंद प्रदान करते हैं। दशमुख के यहां रणांगना है वहां राम संहार करते हैं। हमें तय करना है राम को किस रूप में बुलाना है। राम राज्य की स्थापना तभी होगी जब हमारे समाज के हनुमान, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सुमित्रा, कौशिल्या आदि मानस के पात्र होंगे।

धर्मपथ पर बढ़ते हुए संघर्ष करना सिखाती है श्री कृष्ण की बाल लीला
महासमुन्द के परसकोल रोड में स्थित अटल आवास सामुदायिक परिसर में आयोजक  रत्नसागर अग्रवाल के द्वारा कथा आयोजित है। जिसमें कथा व्यास आचार्य पं. ध्रुवनारायण शुक्ला (आरंग वाले) संगीतमय भागवत कथा सुना रहे हैं। आज उन्होने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर रूखमणी विवाह प्रसंग की कथा का बहुत ही रोचक अंदाज में वर्णन किया।

उन्होेने कहा कि भगवान की बाल लीला जीवन के धर्मपथ पर बढ़ते हुए सत्य के लिए संघर्ष करना और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की सीख देती है। प्रभु की लीलाओं में छिपे सार को समझना होगा।

चुनौतियों का सामना करना चाहिए
पं. ध्रुव नारायण शुक्ला ने कहा कि वो इन लीलाओं से ये समझना चाहते हैं कि हमे जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए न कि घबराकर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाएं। आज के युवाओं को संदेश देते हुए आचार्य ने कहा कि बच्चों को शिकायत होती है कि माता पिता पैसे नहीं देते, घर की माली हालत के लिये वो अपने माता-पिता को जिम्मेदार मानते हैं और कई बार उन्हे जवाब भी दे देते हैं। ऐसे बच्चों को प्रभु की लीलाएं बचपन से दिखाकर अच्छी बातें सिखानी चाहिए।

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