Election Commision Electoral Bonds List: चुनाव आयोग (EC) की तरफ से गुरुवार देर शाम जारी आंकड़ों के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) के जरिए सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मिला है। भगवा पार्टी 12 अप्रैल, 2019 से 24 जनवरी, 2024 के बीच 6,060.5 करोड़ रुपए के बॉन्ड कैश करा कर चुनावी बॉन्ड के लाभार्थियों में टॉप पर है। दूसरे राजनीतिक दलों के मुकाबले इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा BJP को मिला है। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने चुनावी बॉन्ड के जरिए 1,609.50 करोड़ रुपए हासिल करके दूसरा नंबर रही, तो 1,421.9 करोड़ रुपए जुटाकर कांग्रेस (Congress) तीसरे स्थान पर रही।
भारत राष्ट्र समिति (BRS), बीजू जनता दल (BJD) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने भी इस दौरान 500 करोड़ रुपए से ज्यादा के इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए। आंकड़ों के मुताबिक चुनावी बांड भुनाने वाली दूसरी पार्टियों में AIADMK, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस, JDS, NCP, JDU, RJD, AAP और समाजवादी पार्टी शामिल हैं।
चुनाव आयोग को डेटा प्रकाशित करने के लिए 15 मार्च की समय सीमा दी गई थी। चुनाव आयोग ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से मिले चुनावी बॉन्ड डेटा का जानकारी अपनी वेबसाइट पर पब्लिश कर दी है।
दो सेट में आया EC का इलेक्टोरल बॉन्ड डेटा
चुनाव आयोग के मुताबिक, डेटा को दो सेट में जारी किया गया है। डेटा के पहले सेट में बॉन्ड खरीदने वाले का नाम और उसकी कीमत बताई गई है, जबकि डेटा के दूसरे सेट में राजनीतिक दलों और उनके की तरफ से कैश कराए गए बॉन्ड की कीमत शामिल है।
हालांकि, डेटा में दान देने वाले और चंदा लेने वाली पार्टियों के बीच कोई संबंध नहीं दिखाया गया। इसलिए मालूम नहीं चल पा रहा है कि किसने किसी पार्टी को बॉन्ड के जरिए दान दिया है।
एक बयान में, चुनाव आयोग ने कहा कि उसने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद SBI से मिलने वाले डेटा को "ज्यों का त्यों" ही अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है।
EC ने सुप्रीम कोर्ट से वापस मांगा डेटा
इस बीच, चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में संशोधन के लिए एक आवेदन दायर किया है, जिसमें मांग की गई है कि अदालत में जमा किया गया डेटा चुनाव निकाय को वापस कर दिया जाए, क्योंकि चुनाव आयोग ने इसकी कोई कॉपी अपने पास नहीं रखी है।
15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फैसले में, पांच-जजों की संविधान पीठ ने केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जिसने गुमनाम राजनीतिक फंडिंग का रास्ता खोला था। शीर्ष अदालत ने इसे "असंवैधानिक" कहा था और चुनाव आयोग को दानदाताओं, उनके द्वारा दान की गई रकम और उसे लेने वाली पार्टियों का खुलासा करने का आदेश दिया था।