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नहीं रहे पद्मश्री पुरातत्वविद डॉ अरुण कुमार शर्मा, अयोध्या राममंदिर खुदाई और गवाही के लिए थे इतिहास पुरूष

रायपुर । पुरातत्वविद पद्मश्री डॉ. अरुण कुमार शर्मा नहीं रहे। उन्होंने बुधवार 28 फरवरी की रात 11:30 बजे अंतिम सांस ली।  देवलोक गमन की खबर से शोक की लहर है। छत्तीसगढ़ ने एक विद्वान सपूत खो दिया है। अरुण शर्मा को अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि स्थल की खोदाई और न्यायालय में सबूत पेश करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। सिरपुर की खोदाई में भी श्री शर्मा का योगदान अतुलनीय है।


डॉ अरुण शर्मा का जन्म 1933 में हुआ था। वे भारत के प्रख्यात पुरातत्त्वविद हुए। जनवरी 2017 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। वे छत्तीसगढ़ शासन के पुरातात्विक सलाहकार के रूप में लंबे अर्से तक कार्य किए। उन्होने छत्तीसगढ़ के अलावा भारत के अन्य स्थानों पर भी खुदाई करायी है। डॉ. अरुण शर्मा ने सिरपुर तथा राजिम में काफी काम किया है। उन्होंने सिरपुर में मिले प्राचीन मूर्तियों तथा मुखौटों के आधार पर कहा था कि हजारों वर्ष पहले यहाँ एलियंस आते रहे हैं। सिरपुर में मिले कई मूर्तियों में पश्चिमी देशों में मिले मूर्तियों से समानता के आधार पर उन्होंने यह बात की थी। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में पुरावैभव का भंडार है और इस बात की जरूरत है कि इस विषय पर और अधिक खोज की जाये और खासकर छत्तीसगढ़ के दो-तीन ऐतिहासिक पुरास्थलों में खुदाई की जाये, ताकि छत्तीसगढ़ का पुरावैभव प्रकाश में आ सके। उन्होंने आरंग में भी पुरातात्विक उत्खनन पर जोर दिया।

डॉ. शर्मा ने करियर का आरम्भ भिलाई इस्पात संयंत्र से की थी। उन्हें इस काम में कुछ नयापन नहीं लगा, इसलिए नौकरी छोड़ दी। इसके पश्चात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) नागपुर में तकनीकी सहायक पद पर भर्ती हुए। इसके बाद सीखने का जुनून शुरू हुआ, जो आज 90 वर्ष की उम्र में भी बरकरार रहा। 91 वर्ष की आयु में उन्होंने सुदीर्घ अनुभव के साथ देह त्याग कर परलोक गमन कर गए। अंतिम यात्रा 29 फरवरी 2024 को सुबह 10 बजे निज निवास करण नगर, चंगोराभाठा रायपुर से महादेव घाट मुक्तिधाम के लिए प्रस्थान करेगी।

जीवन वृत्त: एक नजर में

पद्मश्री डॉ. अरुण कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ सरकार के मानद पुरातत्व सलाहकार रहे हैं। वे 1992 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नागपुर से अधीक्षण पुरातत्वविद् के पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में विशेष कर्तव्य अधिकारी के रूप में काम किया और मध्य प्रदेश के झिरी में फ्रांसीसी टीम के सहयोग से चित्रित शैलाश्रयों की खुदाई की। बाद में उन्होंने गुरुदेव सिद्धपीठ, गणेशपुरी की ओर से मुंबई के पास तमसा घाटी का सर्वेक्षण किया और पुस्तक प्रकाशित की। उन्हें भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद द्वारा छत्तीसगढ़ के मेगालिथ पर सर्वेक्षण और रिपोर्ट लिखने के लिए वरिष्ठ फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। बोधिसत्व नागार्जुन स्मारक संस्थान और अनुसंधान केंद्र, नागपुर की ओर से, श्री शर्मा ने 1990 से 1998 तक पूर्वी वाकाटक की राजधानी मानसर में और 2000 से 2004 तक छत्तीसगढ़ के सिरपुर में और बाद में 2005 से 2012 तक छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अपने करियर के दौरान उन्होंने पूरे भारत में, विशेषकर गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू, महाराष्ट्र, लक्षद्वीप, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में स्थलों की खुदाई की और रिपोर्ट प्रकाशित की। श्री शर्मा ने 1990 में सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत फ्रांस का दौरा किया। वह केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड और सदस्य स्थायी समिति के सदस्य रहे।

12-11-1933 को जन्मे श्री शर्मा ने 1958 में सागर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में मास्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की और 1959 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में शामिल हो गए। 1968 में उन्होंने नई दिल्ली से पुरातत्व में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया जहां टॉप करने पर उन्होंने मौलाना आज़ाद मेमोरियल गोल्ड मेडल और कई पुरस्कार प्राप्त की। अपने करियर के दौरान उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उन्होंने पुरातत्व पर 35 पुस्तकें प्रकाशित की हैं।

लोथल और कालीबंगा के पशु कंकाल अवशेषों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने साबित किया कि भारत में घोड़े को पालतू बनाया गया था और सिंधु घाटी के लोग स्वदेशी थे और बाहर से नहीं आए थे।

श्री शर्मा इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में बाबरी-मस्जिद-राम-जन्म-भूमि, अयोध्या मामले में मुख्य गवाह हैं और उन्होंने अदालत की संतुष्टि के लिए साबित किया कि वहां एक श्री राम मंदिर था जिसे ध्वस्त कर दिया गया था। मंदिर तथाकथित अधूरी मस्जिद का मलबा उठाया गया और वही श्री राम का जन्म स्थान था।

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