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साहित्यकारों के संगम से महासमुन्द में उमड़ा भावनाओं का समुंदर

अरूणाचल प्रदेश की जमुना बीनी को दिया गया सूत्र सम्मान, दूसरे सत्र में हुआ काव्य गान


आनंदराम पत्रकारश्री.
महासमुन्द । समकालीन सूत्र जगदलपुर और काव्यांश कला पथक संस्थान महासमुन्द के संयुक्त तत्वावधान में सूत्र सम्मान समारोह का आयोजन वन प्रशिक्षण सभागार महासमुन्द में हुआ। रविवार 18 फरवरी 2024 को आयोजित इस समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार और रायपुर संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग थे। अध्यक्षता डॉ भूपेंद्र कुलदीप कुलसचिव दुर्ग ने की। विशिष्ट अतिथि डॉ. त्रिलोक महावर, ईश्वर शर्मा, शरद कोकाश, अरुणाचल प्रदेश से खास तौर पर आमंत्रित युवा कवियत्री डॉ. जमुना बीनी, काव्यांश के संस्थापक अध्यक्ष भागवत जगत भूमिल मंचस्थ थे।

समारोह में स्वागत उदबोधन देते हुए भागवत जगत 'भूमिल' ने आयोजन की प्रस्तावना रखी। उन्होंने महासमुन्द के लिए प्रख्यात 'बड़े आयोजनों का छोटा शहर' को उदधृत करते हुए कहा कि काव्यांश नवोदित साहित्य साधकों का संरक्षक मंच है। उन्होंने श्रीपुर एक्सप्रेस मासिक पत्रिका द्वारा दो पृष्ठ काव्यांश के नवोदित रचनाकारों के लिए सुरक्षित रखे जाने को रेखांकित करते हुए संपादक आनंदराम पत्रकारश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया।

सम्मान समारोह की भूमिका प्रस्तुत करते हुए आमोद श्रीवास्तव ने कहा कि जन और जनपद से जुड़े लोक कवियों को ठाकुर पूरन सिंह स्मृति सूत्र सम्मान हर साल दिया जाता है। इसी कड़ी में ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) की युवा कवियत्री जमुना बिन्नी को 27वीं सूत्र सम्मान आज दिया जा रहा है। यह सम्मान हिंदी कविता में लोक चेतना के लिए दिया जाता है।

साहित्यकार शरद कोकाश ने डॉ. जमुना बीनी का परिचय पठन किया। साहित्यकार डॉ सुखनंदन ध्रुवे 'नंदन' ने डॉ जमुना बीनी की रचनाओं की समीक्षा करते हुए व्यक्तित्व और कृतित्व से उपस्थितजनों को परिचित कराया। वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम त्रिपाठी ने रजत कृष्ण बागबाहरा द्वारा लिखित आलेख का वाचन करते हुए जमुना बीनी की रचनाओं का मर्म रेखांकित किया।

जमुना के उदगार और विचित्र कुरीति के चित्रण से सभी हुए अचंभित

सूत्र सम्मान-2023 से विभूषित और समारोह की प्रमुख वक्ता डॉ जमुना बीनी ने अरुणाचल प्रदेश की आदिम संस्कृति और लोक परंपराओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि उनके पिता एसडीएम थे। तब उस क्षेत्र में वर द्वारा वधु को दहेज में मिथुन (बायसन) देने की परंपरा थी। माँ के गर्भ में होते ही गर्भावस्था में ही विवाह के लिए मिथुन देने का आपस में क़रार हो जाता था। इस कुरीति को दूर करने उनके पिता ने बीड़ा उठाया। परिणामस्वरूप उन्हें 20 युवतियों का पति और 45 बेटी और 33 बेटे अर्थात 78 संतानों का पिता बनना पड़ा। डॉ जमुना बिन्नी अपने पिता की 19वीं पत्नी से जन्म लेने वाली बेटी हैं। अरुणाचल प्रदेश में सूर्य को माता, चंद्रमा को पिता मानते हैं। यहाँ के जनजाति जीवन में प्रकृति का बड़ा महत्व है। उन्होंने बताया कि वर पक्ष से दहेज में मिथुन लेकर बेटी का विवाह करने की कुरीति को खत्म करने के लिए उनकी सभी 45 बहनों ने प्रेम विवाह किया है। उनके पिता की प्रेरणा से वधु मूल्य (दहेज) में मिथुन (बायसन) लेना बंद किया। इस तरह वर्षों से चली आ रही कुरीति को दूर करने के साथ ही जनजातियों में जागृति के लिए वह निरंतर साहित्य साधना कर रही हैं। उन्होंने सूत्र सम्मान को अरुणांचल को समर्पित करते हुए कहा कि यह उनका नहीं, अरुणाचल प्रदेश का सम्मान है। इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ का आभार जताया।

शब्दों को साधने की कला बड़ी बात और है कठिन साधना

विशिष्ट अतिथि की आसंदी से बोलते हुए त्रिलोक महावर ने कहा कि शब्द ब्रम्ह है। शब्दों की साधना और शब्दों को साधने की कला बड़ी बात है। शब्द में नाद है। जब तक शब्द सार्थक नहीं होंगे, साहित्यकार जन-मन को नहीं छू सकता है। उन्होंने डॉ जमुना बीनी के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी काव्य सृजन में पानी जैसी तरलता है। कविता मन की गहराईयों को छू लेने वाली है।

कार्यक्रम की अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए डॉ. भूपेंद्र कुलदीप ने कहा कि पूरे देश में छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहाँ राज्य को हम माँ पुकारते हैं। 'छत्तीसगढ़ महतारी' हमारे दिल में है। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भी 'भारत माता' है। इसके अलावा कोई प्रांत नहीं है, जिन्हें माँ का दर्जा प्राप्त हो। उन्होंने किताबों की व्याख्या करते हुए कहा कि किताबें हमारे जीवन में बड़ा प्रभाव डालती हैं। इसलिए अध्ययनशील रहें। उन्होंने कहा कि डॉ जमुना बीनी जैसे व्यक्तित्व को सम्मानित कर हमारी संस्था स्वयं सम्मानित हो रही है।

महासमुन्द : दिलों की गहराई और विशालता को सबने किया महसूस

मुख्य अतिथि की आसंदी से संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग ने कहा कि कि हर कला का प्रारंभ मिथक के आसपास होता है। जनता के लिए लिखने वाला जनपदीय साहित्यकार का इस मंच से सम्मान अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि महासमुन्द का मंच बहुत समृद्ध है। उन्होंने महासमुन्द नगर के नामकरण को रेखांकित करते हुए कहा कि समुद्र गुप्त ओडिशा जाते समय यहाँ रुके। यहाँ के लोगों के दिलों की गहराई और विशालता को सबने महसूस किया। जन सुविधा के क्रम में एक विशाल तालाब का यहां निर्माण हुआ था। और यह महासमुन्द के नाम से विख्यात हो गया।
सूत्र सम्मान के सूत्रधार विजय सिंह के संयोजन में सरिता सिंह के आभार ज्ञापन के साथ ही प्रथम सत्र में सम्मान समारोह का समापन हुआ। द्वितीय सोपान में साहित्यिक गोष्ठी हुई, जिसमें प्रदेशभर से आमंत्रित साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ी। संचालन सुरेंद्र मानिकपुरी, पुष्पलता भार्गव ने किया।

इस अवसर पर महासमुन्द के अलावा बसना, बागबाहरा, राजिम, अभनपुर, रायपुर, मांढर, कुम्हारी, राजनांदगांव, भिलाई, आरंग, पिथौरा, मनेन्द्रगढ़, बिलासपुर, जगदलपुर से बड़ी संख्या में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

उपस्थित लोगों में शरद कोकास, नासिर अहमद सिकंदर, घनश्याम त्रिपाठी (भिलाई), विजय सिंह, सरिता सिंह (जगदलपुर), विरेन्द्र श्रीवास्तव, गौरव(मनेन्दगढ़), रजत कृष्ण, हबीब समर, भोजराज साहू (बागबाहरा), निर्मल आनंद (कोमा), छगनलाल सोनी, सुरेश वाहनै (कुम्हारी), दलजीत सिंह कालरा (बिलासपुर), आमोद श्रीवास्तव (राजनांदगांव), डॉ.अखिलेश त्रिपाठी,ऊषा किरण त्रिपाठी,नागेन्द्र (रायपुर), बद्री प्रसाद पुरोहित (बसना), डोलामणी साहू सौमित्र , जितेश्वरी साहू सचेता,डा.सरोज साव ,(पिथौरा) प्रदेश के अनेक स्थानों  और महासमुंद के दाऊलाल चन्द्राकर,येत राम साहू,लक्ष्मण पटेल, महेन्द्र जैन, आनंदराम पत्रकारश्री, अभय पींचा, अनिल मालू, संजीव कर्माकर, अशोक शर्मा, प्रलय थिटे, बंधु राजेश्वर खरे,  डॉ.अनुसुईया अग्रवाल, एस.चन्द्रसेन, साधना कसार, द्रौपती साहू ,धर्मेन्द्र डड़सेना, अशोक चौरड़िया, उमेश भारती गोस्वामी, भगोली राम साहू,डां. देवेन्द्र साहू,सुरेश चन्द्राकर स्वप्निल, वृन्दावन पटेल, श्लेष चन्द्राकर,हेम लाल  चक्रधारी, आर एस परिहार, मनीष श्रीवास्तव, डी. बसंत साव, जयराम पटेल, धर्मेन्द्र डड़सेना, श्रीमती निर्मला पटेल,मनु स्मृति जगत, स्वाति, अनंदिता भूमिल, जसोमति पटेल, सुनिता पटेल,नवीन पटेल, अनुष्का पटेल,सुधांशी पटेल एवं फागू लाल पटेल सहित बड़ी संख्या में स्थानीय साहित्यकार, कलाकार और प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

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