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अंचल में गौरी गौरा पर्व की तैयारियां आज से प्रारंभ, प्रदेश भर में विशेष रूप से मनाया जाता है गौरी गौरा का पर्व

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आरंग। इन दिनों आरंग सहित अंचल में गौरी गौरा पर्व की तैयारियां जोरों पर है।धन तेरस के एक दिन पूर्व ही फूल कुचरने की रस्म की शुरुआत हो जाती है। वहीं शास्त्री चौक अकोली रोड आरंग में गौरी गौरा स्थापित कर विशेष रूप से मनाने मोहल्ले वासियों ने गत दिवस एकत्रित होकर फूल कुचरने की रश्म विधि विधान से संपन्न करने की रुपरेखा बना चुके हैं।


अकोली रोड निवासी संजय मेश्राम ने बताया गौरी गौरा स्थापित करने वाले स्थान पर एकादशी को गड्ढा खोदकर उसमें कपरी पान, सुपारी ,फूल, देसी अंडा, सांकड़, बेर की डाल इत्यादि रखकर पूजा अर्चना कर गढ्ढे में डालकर मूसर से कुचलकर जाता है। उसके बाद महिलाओं द्वारा गौरी गौरा की गीत गाते हुए चांवल फूल चढ़ाया जाएगा। ज्ञात हो कि गौरी गौरा का पर्व नगर सहित पूरे अंचल में प्रतिवर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।जिसमें गौरा अर्थात शिव एवं गौरी पार्वती का विवाह संपन्न कराया जाता है।


यह रश्म  5 दिनों तक चलता है। लक्ष्मी पूजा के रात्रि में एक निश्चित स्थान से गौरी गौरा निर्माण के लिए मिट्टी लाई जाती है। जिसे रात्रि में  चमकीली पेपर व आसन में विराजित कर सुंदर प्रतिमा बनाकर विशेष रुप से पूजा आराधना की जाती है। 

वही रात्रि में युवतियां व महिलाएं घरों में कलसा को सजा कर एकत्रित होती है।और गौरा गौरी का गीत गाती  हैं। उसमें पुरुष वर्ग के लोग नाचते झूमते कांशी से निर्मित सांकड़ से एक दूसरे के हाथ पैरों में मारते हैं। जिसे भगवान शंकर का प्रसाद माना जाता है।कहीं कहीं महिलाएं भी सांकड़ लेती है।उसी रात्रि में गौरी के घर गौरा का बारात लेकर पहुंचते हैं। इस प्रकार गौरी गौरा का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। 

वही इन प्रतिमाओं को बाजे गाजे के साथ गौरी गौरा गीत गाते नाचते झूमते गोवर्धन पूजा के दिन विसर्जित किया जाता है।

यह पर्व प्रमुख रूप से गोंड जनजातियों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। जहां गोंड जनजाति नहीं है वहां सभी जाति समुदाय के लोग मिल जुलकर मनाते हैं। इस तरह गौरी गौरा  का पर्व व परंपरा छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

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