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Charcha Chaurahe Par : दागी-बागी बिगाड़ रहे समीकरण, हमें तो अपनों ने लूटा, सरल और चतुर में मुकाबला, खुला घात-भीतरघात, सब पर भारी बकरा-भात

चर्चा चौराहे पर-07

# दागी-बागी बिगाड़ रहे समीकरण

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए द्वितीय चरण में आज 17 नवम्बर को 70 सीटों के लिए मतदान हो रहा है। सोलह-सत्रह आना ( करीब 75 प्रतिशत से अधिक) वोटिंग होने की उम्मीद की जा रही है। इस बीच चौराहे पर चर्चा चल रही है। मुख्य मुकाबला तो दो राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है।

 कुछ सीटों पर दागी और बागी समीकरण बिगाड़ रहे हैं। दागी वे हैं, जिन्हें पार्टी ने किसी न किसी वजह से दरकिनार कर दिया। बागी वे हैं, जो जिस थाली में खाये-उसी में छेद करके चुनाव मैदान में उतर गए। इनसे इतर कुछ दागी-बागी ऐसे भी हैं, जो अभी तो नहीं , इसके पहले के चुनावों में अपनी रंगत दिखा चुके हैं। इतिहास गवाह है, ऐसे लोगों को जनता नकार देती है। बावजूद, "हम तो डूब रहे हैं सनम, तुम्हें भी साथ ले डूबेंगे" के तर्ज पर ये नेता चुनाव के समय सक्रिय भूमिका में आ जाते हैं। किस सीट पर कितने दागी और कितने बागी हैं? इसकी व्याख्या हमारे सुधि पाठक स्वयं करने में सक्षम हैं। 

जागो मतदाता जागो : अपने मताधिकार का प्रयोग करें। बेचें नही।            

 @ Media24Media द्वारा जनहित में जारी.
जागो मतदाता जागो : अपने मताधिकार का प्रयोग करें। बेचें नही।                                @ Media24Media द्वारा जनहित में जारी.

# हमें तो अपनों ने लूटा

इस विधानसभा चुनाव में टिकट की उम्मीद लगाए बैठे रहे लोगों की सूची लंबी है। टिकट चाहने वाले लोग, न चाहते हुए भी औपचारिक रूप से पार्टी उम्मीदवार के साथ होने का दिखावा कर रहे हैं। इस पर छत्तीसगढ़ी साहित्यकार ने क्या खूब कही है-
     " जेकर देखे जर मरय,
             तेकर जाय बरात ।" 
(अर्थात जिसे देखकर ही जलन होती है, उसी के बारात में शामिल होने की विवशता है।) 
ऐसे लोग पार्टी कार्यालय के इर्द-गिर्द ही घुमकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। हद तो तब हो गई जब उम्मीदवार को सांस लेने की फुर्सत नहीं है, तब ये लोग इत्मीनान से गुपचुप खा रहे हैं। गुप-चुप और क्या-क्या खा रहे हैं। कितना चूना लगा रहे हैं। यह तो प्रत्याशी भी नहीं जानते। यह भी कहते फिर रहे हैं कि इन्हें तो पड़ोसी वोट नहीं दे रहे हैं। किस्मत के मारे 'बेचारे' राग अलाप रहे हैं-

" हमें तो अपनों ने लूटा,
        गैरों में कहाँ दम था।
             हमारी कस्ती वहाँ डूब रही, 
                 जहाँ गढ्ढा कम था।।" 
मैंने मताधिकार का प्रयोग किया, आपने वोट डाला क्या? मतदान अवश्य करें। यह आपका अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है। 



# खुला घात-भीतरघात, सब पर भारी बकरा-भात


इस विधानसभा चुनाव में खुला घात और भीतरघात जमकर हो रहा है। उम्मीदवार सकते में हैं- क्या होगा परिणाम? होगा बड़ा नाम या हो जाएंगे बदनाम। घात-प्रतिघात के बीच बकरा भात की जमकर चर्चा है। चौराहे पर चर्चा है कि सभी घातों पर 'बकरा भात' भारी पड़ रहा है। बकरा खाने के शौकीन लोगों को चुन-चुनकर पार्टी दिया जा रहा है। जिससे उनका चुनाव सुनिश्चित हो सके। चुनई तिहार में असंख्य बकरों की बलि हो चुकी है। बलि देने 'बदना' बदने का सिलसिला भी जारी है। यह समझ में नहीं आ रहा है कि बकरे की बलि हो रही है या उम्मीदवार को ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है। बकरे के शौकीन, बकरा खाने के बाद डकार लेते हुए कहते सुने गए हैं-" बेचारे सीधे-सरल हैं, तभी तो लोग इन्हें राजनीति में बलि का बकरा बनाकर बर्बाद कर रहे हैं।"

# सरल और चतुर में मुकाबला


कहा जाता है कि राजनीति में चतुराई जितना मायने रखता है। सरलता उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। ज्यादा चतुराई करने वाले 'एक नेताजी' का हश्र सबके सामने है। हाईकमान के "नजर में खटकना और दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकना" राजनीति में कोई नई बात नहीं है। चौराहे पर चर्चा चल रही थी कि एक सहज-सरल और एक चतुर कूटनीतिक के बीच इस बार मुकाबला है। यह समय के गर्भ में है कि ताजपोशी किसकी होती है। एक कलमकार ने चुटकी ली। इन दो शब्दों से मिलते-जुलते नाम की दो महिलाएं महासमुंद जिले की एक सीट पर आमने-सामने हैं। कहीं उनकी ओर इशारा तो नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के अनेक सीटों पर आप देखेंगे। तो यह फार्मूला फीट बैठता है। चतुर-सयाने-खाटी उम्मीदवार के सामने सीधे-सहज-सरल उम्मीदवारों को ऐसे उतारा गया है, जैसे शेर के समक्ष बकरी को बांध दिया गया हो। यही भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है। चुनाव परिणाम बताएगा कि इसके मायने क्या हैं ?

-: Disclaimer :- 

इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व 'श्रीपुर एक्सप्रेस' और 'मीडिया24मीडिया' समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। 

( हमारा ध्येय स्वस्थ पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना है। तथापि यदि संयोगवश किसी विषयवस्तु से किसी की भावना को ठेस पहुंचती है, तो अपनी अभिव्यक्ति सीधे प्रधान संपादक तक मोबाइल नंबर- 9669140004 पर व्हाट्सएप्प करके अथवा anand.media24media@gmail.com पर ई-मेल संदेश भेज सकते हैं। हम सुधि पाठकों के भावनाओं का विशेष ध्यान रखेंगे। )
नोट:- इस नियमित कॉलम का उपयोग विभिन्न समाचार पत्रों और वेबपोर्टल संपादकों द्वारा भी किया जा रहा है।कृपया कंटेंट से छेड़छाड़ कर प्रकाशित न करें। ऐसा करने पर स्वयं जिम्मेदार रहेंगे।

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