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Charcha Chaurahe Par : छग में किसकी बनेगी सरकार, राजा गुरू और राजनीति में गुरू, महासमुन्द का मायाजाल, धान से धनवान बनने का चक्कर

चर्चा चौराहे पर-09

# छग में किसकी बनेगी सरकार

छत्तीसगढ़ विधानसभा निर्वाचन के लिए मतदान हो गया है। उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में कैद है। कौन-कौन बनेंगे विधायक? यह तो भाग्य विधाता जानें। खुद को खुदा समझने वाले अफसरों की धड़कनें ज्यादा तेज हो गई। पूर्वानुमान लगाकर भविष्य तय करने वाले 'गिरगिट प्रजाति' के जीव रात-दिन एक ही सर्वे करा रहे हैं। 



       "कौन किस पर भारी हैं?  
           हम तो किसी के नहीं आभारी हैं। 
               जिसका पलड़ा दिखे भारी,
            हम तो उनसे बढ़ाएंगे अपनी यारी।।"

का राग अलापते हुए नौकरशाह बड़ी चिंता में हैं। छत्तीसगढ़ छोटा राज्य है। राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते देर नहीं लगती है। बीते निर्वाचन में चुनाव परिणाम अप्रत्याशित आया था। जितनी सीटें मिली थी, वह वर्तमान सत्तारूढ़ दल की उम्मीद से कहीं ज्यादा थी। विपक्षी दल ने तो सपने में नहीं सोचा था कि उनकी 'दुर्गति पराजय' होगी। "इस बार-75 पार" का नारा देने वाले आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं। "अउ नई सहिबो-बदल के रहिबो" वाले उलट फेर करने में माहिर बताए जाते हैं। तब सबके जुबां पर बस एक ही सवाल है- 

        किसकी बनेगी सरकार? 
             कौन होंगे अगले मुख्यमंत्री? 
               कोई तो बताओ यार,
                      जिया है इनका बेकरार, 
                       75 न सही, 50 ही हो जाए पार।

# राजा गुरू और राजनीति में गुरू


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में तरह-तरह के मुकाबले हुए। कहीं चाचा-भतीजा, कहीं गुरू- चेला, कहीं खाटी-नवेला आमने-सामने नजर आ रहे हैं। इस बीच कुछ सीटों पर हार-जीत के अपने-अपने दावे हैं। राजनीतिक पंडित तो रोज किसी को हरा-जीता रहे हैं। इस बीच 'विकास के रंग' में रंगे एक विधानसभा सीट पर 'एक-पांच' का दांव चल रहा है। इस क्षेत्र से एक वर्ग विशेष के 'राजा गुरू' का मुकाबला राजनीति में गुरूओं के गुरू कहे जाने वाले नेता से है। जो सड़क से सदन तक बड़े-बड़े लोगों को पानी पिलाते रहे हैं। क्षेत्र विशेष में विकास की गंगा बहाते रहे हैं। यहाँ हार-जीत को लेकर ऐसा जोर चल रहा है कि शिवालयों की नगरी में 'महादेव' का शोर मचा है। दाँव खेलने वाले 'राजनीतिक गुरू' की हार पर एक का पाँच देने को तैयार हैं। 'राजा गुरू' के लिए लोग दाँव लगाने से कतरा रहे हैं। राजनीति में तीन-पांच होने की चर्चा तो खूब सुने थे। चौराहे पर 'एक-पांच' की चर्चा, इस समय खूब चर्चा में है। लोग चुटकी ले रहे हैं- 

  " शिवालयों की नगरी में 'शिव' छा गया, 
   राजनीति के मैदान में 'राजा गुरू' आ गया।
   कौन कहता है कि शिकस्त मिलेगी यहाँ, 
    बाबा बागेश्वर की असीम कृपा है जहाँ ।
   जिनकी चरण वंदना करते थे यहाँ सभी, 
वह हाथ जोड़े खड़े होंगे, सोचे नहीं थे कभी।" 

# महासमुन्द का मायाजाल


महासमुन्द को राजनीति का अखाड़ा कहा जाता है। यहाँ की राजनीतिक जागरूकता की चर्चा दिल्ली तक होती है। यहाँ एक चुनाव ऐसा भी हुआ है। जब एक कलेक्टर नामांकन कराए, दूसरा कलेक्टर मतदान और तीसरे ने कराई मतगणना। यह प्रशासनिक फेरबदल का बहुत बड़ा काला अध्याय है। जिसकी कालिख अब तक नहीं धुल पायी है। 

सोच सकते हैं कि कितना चर्चित जगह है-महासमुन्द। यहाँ का राजनीतिक मायाजाल और पक्ष-विपक्ष की मकड़जाल को अच्छे-अच्छे अफसर समझ नहीं पाए। चुनाव का नया-नया अनुभव ले रहे नौजवान अफसर ने सख्ती से काम लिया। मतदान शान्ति से निपट गया। हाथी निकल गया , बस अब पूंछ बाकी रह गया है। बड़ी राहत महसूस की। नौजवान हैं, प्रेमभाव भी उमड़ना स्वाभाविक है। गलती पर सजा, तो अच्छे काम पर सम्मान क्यों नहीं? जायज है। मतदान कराकर थके-हारे लौटे लोगों की थकान तब मिट गई, जब स्नेह भाव से उनके हाथों में 'जिले के मालिक' ने लाल गुलाब का फूल थमाया। बेहतरीन नवाचार है। जिन्होंने इसकी परिकल्पना की हो, उन्हें चर्चा चौराहे की टीम का सलाम है। उम्मीद की जा सकती है कि 'प्रभात काल' नया सबेरा लेकर आएगा।

# धान से धनवान बनने का चक्कर


छत्तीसगढ़ से सटा हुआ है ओडिशा। वहाँ मंडी में अभी धान 1800 से 2000 रुपये के बीच बिक रहा है। छत्तीसगढ़ में धान समर्थन मूल्य पर 3100 से 3200 रुपये में खरीदी की तैयारी है। एक नवम्बर से धान खरीदी प्रारंभ हो चुकी है। चुनाव के चक्कर में धान खरीदी की गति धीमी है। पूरा प्रशासनिक अमला चुनाव में व्यस्त है। इसका फायदा उठाकर बिचौलिए और कोचिए ओडिशा का धान सीमावर्ती क्षेत्र में डंप कर रहे हैं। निगरानी समिति की नजर गांधी जी की तस्वीरों पर टिकी है। धान से धनवान बनने का एकाधिकार क्या किसानों के पास सुरक्षित है? भारी-भरकम समर्थन मूल्य वालों को व्यापारियों का भी तो समर्थन है ? उन्हें धान से धनवान बनने का सपना देखने का हक नहीं है? रात-दिन बॉर्डर पर चौकसी करने वालों को भी तो कुछ कमाने का अवसर मिलना चाहिए? यह सवाल चौराहे पर चर्चा का विषय बन गया है। धान से धनवान बनने के चक्कर में कौन-कौन लोग हैं ? कैसे बनेंगे? हमें भी अवश्य बताएं।

-: Disclaimer :- 

इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व 'श्रीपुर एक्सप्रेस' और 'मीडिया24मीडिया' समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ध्यान रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। 

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