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Charcha Chaurahe Par : राजनीति में ये रिश्ता क्या कहलाता है, सरकार हमर हो- विधायक नहीं, बकरा भात में किसका हाथ?

चर्चा चौराहे पर 06

# राजनीति में ये रिश्ता क्या कहलाता है?


'चर्चा चौराहे पर' नियमित कॉलम पांच दिन में ही जिस तेजी से लोकप्रिय हुआ, वह अकल्पनीय है।  एक दिन इसके प्रकाशन में थोड़ा विलम्ब क्या हुआ, 5 लोगों ने लिंक भेजने के लिए फोन घनघना दिया। अनेक व्हाट्सएप्प संदेश भी मिले। इतने स्नेह के लिए हम सुधि पाठकों का हृदय से आभारी हैं।

 

इस बीच अब कानाफूसी से संबंधित और राजनीति में मायने रखने वाले कन्टेंट भी लोग हमें भेजने लगे हैं। ऐसी ही एक तस्वीर हमारे एक पाठक ने हमें इस टिप्पणी के साथ भेजी है कि "राजनीति में ये रिश्ता क्या कहलाता है ?" वह तस्वीर हम मूलतः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। हमारे विद्वान पाठकगण खुद तय करें कि इसके मायने क्या है? 

हम इस तस्वीर के संबंध में कोई भी टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हैं। वह इसलिए कि हमें पता नहीं है कि यह किस अवसर की तस्वीर है। बहरहाल, लोकप्रिय टीवी सीरियल "ये रिश्ता क्या कहलाता है" की तर्ज पर लोग इस तस्वीर के मायने अपने-अपने ढंग से निकाल रहे हैं। 

# सरकार हमर हो, विधायक नहीं


छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में जनता बहुत जागरूक है। बीते तीन विधानसभा चुनावों के परिणाम पर गौर फरमाएं। जिले की चारों सीट एक ही दल के उम्मीदवार जीतते आए हैं। यह गजब संयोग नहीं, जागरूक जनता की पहचान है। क्षेत्र की जागरूक जनता बहुत मंथन कर अपना प्रतिनिधि चुनती है। चौराहे पर चर्चा चल रही थी। "इस बार किसकी सरकार? " एक नेताजी ने डींगे हाँकते हुए कहा- "सरकार तो हमारी ही बनेगी।" जब उनसे पूछा गया कि विधायक किसे चुन रहे हैं? कान में धीरे से फुसफुसाहट भरे स्वर में कहा- विधायक हमारे नहीं बन रहे हैं। ऐसा क्यों? इसके जवाब में नेताजी ने कहा-कमजोर प्रत्याशी दिए हैं। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे दल का हो। विधायक प्रतिद्वंदी पार्टी का हो। तभी तो हमारी पूछ परख और राजनीति सफल है। वरना, हमें पूछेगा कौन? 

# ....तेकर धन ला, खाय मरार


चौराहे पर राजनीतिक चर्चा हो रही थी। एक छत्तीसगढ़ी कहावत पर आकर बात अटक गई। कहावत है-
" चिक्कट तेली, सूम कलार।
     तेकर धन ला, खाय मरार।।"
इसका उल्लेख करते हुए छत्तीसगढ़ी प्रिय नेताजी ने कहा-अब समझ गए ना? इस क्षेत्र में हमारे ही जाति के लोग क्यों चुनाव जीतते हैं। जिन्हें भी राष्ट्रीय पार्टियां टिकट देती है। वे लोग पार्टी फण्ड को ही गटकने के फिराक में रहते हैं। "चमड़ी जाए तो जाए, दमड़ी न जाए" सोचने वाले लोग क्या चुनाव लड़ेंगे। उनका इशारा किधर था? हमें तो समझ नहीं आया। नेताजी क्या कहना चाहते हैं? आपको समझ आया, तो हमें भी बताएं। 

# बकरा भात में किसका हाथ ?


महासमुन्द शहर से लगे एक गांव में 'बकरा-भात' (भोज) का आयोजन हुआ। एक जाति विशेष के लोग आपस में एकजुट हुए। जमकर दावत उड़ाई। चुनाव में कोई जीते-कोई हारे, इससे हमें क्या? कहते हुए लोगों ने जमकर पार्टी मनाई। यह खबर गांव में तेजी से फैल गई। अब गांव के अन्य वर्ग के लोग उस सख्श को तलाश रहे हैं, जिन्होंने यह आयोजन कराया। चौराहे पर एक ही चर्चा है-'बकरा भात में है किसका हाथ?' अब देखना होगा कि इसका चुनाव में क्या असर होगा? कत्ल की रात कहे जाने वाले रात से पहले ही न जाने कितने बकरे की बलि चढ़ चुकी है। लोग फूल खा-पी रहे हैं। उम्मीदवार को ही बकरा बना रहे हैं। 'चुनई तिहार' का मजा ले रहे हैं। हार के डर से हर उपाय कर रहे हैं उम्मीदवार। कुछ प्रत्याशी बेचारे फंड कम पड़ने का रोना भी रो रहे हैं। जब चुनाव इतना खर्चीला होगा, तो ईमानदार नेता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? 

-: Disclaimer :- 

इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व 'श्रीपुर एक्सप्रेस' और 'मीडिया24मीडिया' समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। 

( हमारा ध्येय स्वस्थ पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना है। तथापि यदि संयोगवश किसी विषयवस्तु से किसी की भावना को ठेस पहुंचती है, तो अपनी अभिव्यक्ति सीधे प्रधान संपादक तक मोबाइल नंबर- 9669140004 पर व्हाट्सएप्प करके अथवा anand.media24media@gmail.com पर ई-मेल संदेश भेज सकते हैं। हम सुधि पाठकों के भावनाओं का विशेष ध्यान रखेंगे। )

नोट:- इस नियमित कॉलम का उपयोग विभिन्न समाचार पत्रों और वेबपोर्टल संपादकों द्वारा भी किया जा रहा है।

कृपया कंटेंट से छेड़छाड़ कर प्रकाशित न करें। ऐसा करने पर स्वयं जिम्मेदार रहेंगे। 

बहुत कम समय में पाठकों का अपार स्नेह और हमें व्हाट्सएप पर मिल रहे संदेश से हम उत्साहित हैं। 

राष्ट्रीय प्रेस दिवस की सभी सुधि पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं











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