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Charcha Chaurahe Par : महादेव की माया से खेला हो गया, मेरे गाँव में मेला हो गया, मुर्गियां बेचारी-किस्मत की मारी, एक वोट-हजार रुपये का नोट

चर्चा चौराहे पर-08

# लक्ष्मीजी की माया-ज्यादातर जगह फूल छाया

विधानसभा चुनाव संपन्न हो गया। उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है। चौराहे पर अब एक ही चर्चा है-कौन जीत रहे हैं? सबका अपना-अपना तर्क है। एक विश्लेषक कलमकार का कहना है-"लक्ष्मीजी की माया है,ज्यादातर जगह फूल छाया है।" एग्जिट पोल पर रोक है। लोग कानाफूसी कर रहे हैं। जीत-हार के अपने-अपने दावे हैं। कोई भाग्य पर इतरा रहे हैं। किसी के हिस्से में अब बस पछतावा है। 


इस बीच धार्मिक आस्था वाले एक उम्मीदवार कह रहे हैं- 
          "महादेव की 'माया' से सब काम हो रहा,
                    करने वाले स्वयं महादेव हैं,
                          और मेरा नाम हो रहा है।" 
छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए क्षेत्र क्रमांक -42 महासमुन्द में गजब चमत्कार होने के संकेत मिल रहे हैं। बाबाजी की भविष्यवाणी सुफल होने वाली है? बाबा जी ने क्या भविष्यवाणी की थी? इसका खुलासा 3 दिसंबर को दोपहर करीब 3 बजे होगी। तब तक दिल थाम कर बैठिए। राजनीति में भविष्य तलाशने वालों को 'बाबाजी' की तलाश है। बाबाजी को सच्चे मन से तलाशें। बाबाजी आपके आस-पास हैं। एक व्यक्ति ने चुटकी ली-"दाढ़ी वाले बाबा का जादू चल गया ?" जी नहीं, हम किसी और बाबा की बात कर रहे हैं। 

# मुर्गियां बेचारी-किस्मत की मारी,

वर्ष-2023 तिथि-16 और 17 नवम्बर। यह तारीख मुर्गियों की सात पीढ़ी कभी नहीं भूलेंगी। 16 नवम्बर की रात में देशी मुर्गियों की शामत आ गई। ज्यादातर मतदान दल की फरमान थी- 
" चिंता के नईये कोनो बात,
      आज हावे कत्ल के रात।
          पांच साल म ये चुनई तिहार आथे, 
             कतको खुशी के सौगात साथ लाथे।।
                 आज चुरही मुर्गी अउ-भात, 
                  तभेच त याद रही कत्ल के ये रात।।"
प्रायः ज्यादातर बूथ में देशी-बायलर मुर्गे की बलि चढ़ी। तब बूथ मैनेजमेंट हुआ। यही नहीं कोई गांव शेष नहीं रहा, जहाँ कत्ल की रात न मनाई गई हो। लोकतंत्र का त्यौहार यूँ ही चर्चित नहीं है। हर पांच साल में एक बार आता है यह महापर्व। अनेक खट्टे-मीठे अनुभव छोड़ जाता है। सबसे ज्यादा अपनी किस्मत पर मुर्गियां रो रही हैं। 'चुनई तिहार' में न जाने इनके कितने लाल शहीद हो गए हैं। 

# एक वोट-हजार रुपये का नोट


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव ने इस बार 1972 की याद दिला दी। बुजुर्ग बताते हैं- जब एक वर्ग विशेष के खिलाफ मुहिम चला। " ...वाड़ी भगाओ, महासमुन्द बचाओ" का नारा चला। तब सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार की सभा में लोग उमड़ पड़ते थे। चुनाव में एक वोट देने का वादा करते थे और 'एक नोट' भी सभास्थल पर बिछाए गए लाल गमछा में डालते थे। इस तरह 'एक वोट-एक नोट' जन मुहिम बन गया। जनता के खर्चे से एक ईमानदार नेता का उदय हुआ। कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। चौराहे पर चर्चा है कि 51 साल बाद, एकबार फिर से " कु... हटाओ, विकास कराओ " का मुहिम चल पड़ा है। अंतर केवल इतना है कि तब जनता ने 'एक वोट-एक नोट' दिया था। इस बार उम्मीदवार ने 'एक वोट-हजार रुपये का नोट' दिया है। अब ये मत कहिएगा कि एक हजार का नोट तो प्रचलन में नहीं है। दरअसल, 
      "गांधी जी के जोड़ीदार, 
             आ कर ले करार। 
         अब अउ नई सहिबो, 
               बदल के रहिबो।।" 
का नारा चला। जानकर तो यहाँ तक कहते हैं कि महिला समूहों को एक-एक हजार रुपये देने में 'चार खोखा' भी कम पड़ गया। अब आगे-आगे देखिए होता है क्या ? क्या यह मुहिम सही है ?

# खेला हो गया, मेरे गाँव में मेला हो गया 


कहते हैं कि गांव में आज भी ईमानदारी जिंदा है। वफादारी के लिए सबकुछ न्यौछावर किया जाता है। जिसकी खाते हैं-उसकी गाते हैं। 'गुन-हगरई' नहीं करते हैं। कोई मुर्गा खाया। कोई बकरा भात खाया। कोई भजिया-चटनी खाया। जो कुछ भी नहीं खाया, वह नगदी पाया। दो दिन और एक रात में सब खेला हो गया। लक्ष्मी जी की माया से हर गांव में मेला हो गया।

   "लुटिया किसी की डूबे रे भैया, 
               सबसे बड़ा रुपैया।
                       ददा चिन्हे न भईया, 
                              सबसे बड़ा रुपैया।।"
इसी तर्ज पर यह चुनाव हुआ। लाखों फूंक कर 'हार-जीत' का दांव खेलने वाले अब हारे हुए जुआरी की तरह फिलिंग कर रहे हैं। यह तो तय है कि जीतना किसी एक को ही है। बाकी को तो 'हाथ' मलते हुए 'किस्मत' को कोसना है। मन मसोजकर भीतरघात और दगाबाज का ठीकरा फोड़ना है। यह राजनीति है जनाब! इसका आकर्षण उस बाज़ारू औरत की तरह है, जिसकी बाहों में हो उसकी होती है। अर्थात वह हर किसी की होते हुए भी किसी की नहीं है। 

-: Disclaimer :- 

इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व 'श्रीपुर एक्सप्रेस' और 'मीडिया24मीडिया' समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। 

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