महासमुंद। "हमारी संस्कृति में जो देता है वह देवता है। संघ समाज को नई दिशा देने के लिए तैयार है। हमें सकारात्मक सोच के साथ देश और अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना है। जिस प्रकार प्रभु श्रीराम ने गिरि वासियों, वनवासियों को संगठित कर अधर्म और अन्याय के प्रतीक रावण का संहार कर धर्म व सज्जन शक्ति को स्थापित किया। उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक हिन्दू समाज के सज्जन शक्तियों को जागृत कर संगठित करने का कार्य करते हुए देश की रक्षा के लिए संकल्पित है। समाज में शक्ति का जागरण ही विजयादशमी पर्व है"।
यह उदगार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महासमुन्द नगर द्वारा आयोजित विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि प्रेस क्लब अध्यक्ष उत्तरा विदानी ने व्यक्त की। अमृत वचन, एकल गीत के पश्चात मुख्य वक्ता सुबोध राठी प्रांत संयोजक गौसेवा ने कहा "हमारा धर्म और संस्कृति कितना भी श्रेष्ठ क्यों ना हो, जब तक हमारे पास शक्ति नहीं उसका कोई औचित्य नहीं है। निर्बल शक्ति को कोई नहीं मानता। शक्ति में सामर्थ्य होनी चाहिए। शक्ति की आराधना ही हमारी मूल आराधना है। शक्ति का संचय अर्थात् समाज का जागरण। हमारे पूर्वज ही हमारी संस्कृति के संवाहक हैं। हमारा इतिहास संघर्षों का इतिहास है। हमें अपनी विरासत को संजोए रखना है, शास्त्र और शस्त्र की शक्ति को पहचानना है। जहां शक्ति होती है, वही शांति होती है।"
मुख्य वक्ता ने आगे कहा "त्रेता युग में मंत्र शक्ति, सतयुग में ज्ञान शक्ति तथा द्वापर में युद्ध शक्ति प्रमुख बल था, किन्तु कलियुग में संगठन की शक्ति ही प्रधान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संगठन शक्ति के बल पर आज विश्व का सबसे बड़ा बलशाली, पराक्रमी, विजयशाली और विजुगिषु प्रवृत्ति जगाने वाला संगठन है। हमें आधा श्लोक पढ़ाया जाता है "अहिंसा परमो धर्मः" परन्तु उसके आगे की बात नहीं बताई जाती "अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च" अर्थात धर्म स्थापना के लिए हिंसा किया जाए तो वह पाप नहीं है। श्रीराम ने सामाजिक समरसता के लिए शबरी के जूठे बेर खाए। श्री कृष्ण ने माखन चोरी कर ग्वाल बालों को खिलाया। गुरु घासीदास ने "मनखे मनखे एक समान" का नारा देकर समाज को जोड़ने का प्रयास किया।
आज संघ स्थापना दिवस है, आज से 98 वर्ष पूर्व डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की। उन्होंने देखा कि भारत के पास न तो संसाधनों की कमी है और न ही शक्ति का, फिर भी भारत गुलाम है। उन्होंने पाया कि लोगों में देशभक्ति की भावना और संगठन शक्ति का अभाव है। वे भारत को परम वैभव के शिखर में पहुंचाकर विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना चाहते थे। वे खोई हुई हिन्दू संस्कृति और हिन्दू संस्कार को वापस लाना चाहते थे। संघ स्थापना के पीछे यही मूल उद्देश्य था।
आज हमारे सामने मतांतरण, सामाजिक समरसता, पर्यावरण, ग्राम विकास, परिवार प्रबोधन जैसी अनेक चुनौतियां है। उन्होंने समाज को आह्वान करते हुए कहा कि "सर्वे भवन्तु सुखिन: एवं वसुधैव कुटुंबकम" की भावना को लेकर हिन्दुत्व का भाव मन में पैदा करें और आने वाले संकटों का डटकर मुकाबला करें।" इस अवसर पर नगर संघचालक भूपेन्द्र राठौड़, खंड संघचालक, प्रांत व्यवस्था प्रमुख घनश्याम सोनी, समवैचारिक संगठनों के प्रतिनिधियों सहित गणमान्य नागरिक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग, जिला, नगर व खंड के अधिकारी और स्वयंसेवक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। उक्ताशय की जानकारी नगर के प्रचार प्रमुख चन्द्रशेखर साहू ने दी।