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अब रायपुर एम्स में बिना चीर-फाड़ के होगा किडनी की पथरी का इलाज

 रायपुर : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर के यूरोलॉजी विभाग में चुंबकीय किरणों की मदद से पथरी  का उपचार करने वाली एक्स्ट्राकॉरपोरेल शॉक वेव लीथोट्रिप्सी (ईएसडब्ल्यूएल) मशीन लगाई गई है। इसकी मदद से आठ से 15 एमएम आकार तक की पथरी का बिना किसी ऑपरेशन उपचार किया जा सकेगा। इससे एम्स में आने वाले पथरी के रोगियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।


ईएसडब्ल्यूएल अत्याधुनिक तकनीक है जिसकी मदद से बिना ऑपरेशन किए पथरी  का आसानी के साथ उपचार संभव है। इसमें किडनी की 15 एमएम तक की पथरी का आसानी के साथ उपचार संभव है। इस तकनीक में एक दिन के अंदर रोगी की पथरी का उपचार किया जा सकता है। इसमें एक्स रे और अल्ट्रासाउंड की मदद से पथरी के स्थान को चिन्हित किया जाता है।

इसके बाथ ईएसडब्ल्यूएल की मदद से वहां शॉकवेव दी जाती है। चिकित्सक नई तकनीक के माध्यम से शॉकवेव की संख्या और प्रभाव को नियंत्रित करते हैं। पथरी के टूटने तक शॉकवेव दी जाती हैं। बाद में यह बहुत छोटे रूप में मूत्र मार्ग से बाहर निकल आती हैं।

इस तकनीक के दुष्प्रभाव नगण्य हैं। सिर्फ एनेस्थिसिया की मदद से रोगी का शीघ्र उपचार संभव है। निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने ईएसडब्ल्यूएल का उद्घाटन करने के बाद आशा प्रकट की कि इसकी मदद से ओपीडी पर रोगियों का भार कम होगा और उन्हें बिना ऑपरेशन के पथरी  का उपचार मिल सकेगा।

विभागाध्यक्ष डॉ. अमित शर्मा ने बताया कि इस उपचार में प्रमुख रूप से पथरी के आकार, स्थान और पथरी के प्रकार पर विचार करके शॉकवेव दी जाती हैं। एम्स में इसकी काफी समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। अब प्रदेश के बड़ी संख्या में किडनी की पथरी के रोगियों को इसका लाभ मिल सकेगा।


उन्होंने बताया कि इसमें 30 से 40 मिनट में एक रोगी का उपचार संभव है। इस प्रकार प्रतिदिन पांच से छह रोगियों की पथरी को ठीक किया जा सकता है। यूरोलॉजी की ओपीडी में प्रतिदिन औसतन 200 रोगियों में से 20 से 25 प्रतिशत को पथरी की समस्या होती है जिसमें प्रति ओपीडी 10 से 15 रोगियों को ईएसडब्ल्यूएल के उपचार की आवश्यकता होती है। अब प्रति मंगलवार, बुधवार और शनिवार को इसका उपचार ओपीडी में किया जाएगा।


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