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स्वावलम्बी गौठान ने बदली निलजा गांव की जीवनदशा, महिलाओं में जागा आत्मविश्वास, हुई गौरवान्वित

रायपुर। जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने गौठान आरंभ किये तो लोगों को लगा था कि खुले मवेशियों की समस्या से निजात दिलाने और फसल सुरक्षा के लिए सरकार की यह बहुत अच्छी पहल है। एक-दो साल के भीतर यह पहल उनके जीवन और अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव लाएगी, ऐसा सोचना भी मुश्किल था। राजधानी रायपुर के ही पास के एक निलजा गौठान को लें, यहां भी पशुधन रखने गौठान की शुरूआत हुई लेकिन अब यह आजीविकामूलक गतिविधियों का केंद्र बन गया है।
                      

जो लोग दूसरे के खेतों में काम करने मजबूर थे अब खुद का उद्यम कर रहे हैं। निलजा में ही 70 परिवार ऐसे हैं जो गौठान से सीधे लाभान्वित हो रहे हैं। इन घरों के सपने परिवार के मुखिया के साथ ही गृहिणी भी पूरी कर रही हैं क्योंकि अब आर्थिक शक्ति उनके हाथों में भी आई है। निलजा गौठान ऐसा है जहां के बनाए वर्मी कम्पोस्ट की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि इनकी बड़ी माँग होती है इतनी की महिला समूह आपूर्ति नहीं कर पाता। इस गौठान के कारण महिलाएं अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मगौरव का अनुभव कर रहीं है। यहां के ग्रामीण कह रहे हैं धन्यवाद मुख्यमंत्री जी।

ग्राम निलजा की कहानी उस समय शुरू होती है जब राज्य सरकार ने नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना शुरू की। इस योजना के तहत निलजा में गौठान बनाए गए। साथ ही कुछ समय में ही आजीविका मूलक गतिविधियां भी शुरू की गई। वर्ष 2020 में गोधन योजना के तहत गोबर खरीदी शुरू की गई। एक साल तीन महीने के भीतर गौठान स्वावलंबी हो गया। सारे खर्च स्वयं उठाने लगा। समूह के अध्यक्ष घनश्याम वर्मा बताते है कि अब तक सात लाख 65 हजार गोबर की खरीदी हो चुकी है। गौठान द्वारा अब तक 2 हजार 185 किलो वर्मी कम्पोस्ट बनाया जा चुका हैं। गौठान समिति को अब तक करीब 21 लाख रूपए की आय हो चुकी है। साथ ही 2383 लीटर गौमूत्र की खरीदी की है जिससे 1200 लीटर ब्रम्हास्त्र बनाया जा चुका है। गौठान से जुड़कर महिलाओं आज अपने पैरो पर खड़ी है और आत्मविश्वास से भरी हुई है।

महिला समूह की अध्यक्ष श्रीमती शकुन वर्मा कहती है कि उनके समूह ने अब तक साढ़े सात लाख रूपए आय अर्जित की है। वे पहले दूसरे के खेतों में काम करती थीं अब खुद का काम कर रही है। उनके समूह में 11 सदस्य है जिन्हें प्रतिदिन औसतन प्रतिदिन करीब 150 से 200 रूपए की आय हो रही है। श्रीमती शकुन कहती हे कि उनके पति ट्रैक्टर चलाने का कार्य करते है। वह स्वयं दूसरे के खेतों में काम करने जाती थी। काम की अनिश्चितता रहती थी कभी अच्छा काम मिलता था तो कभी काम ही नहीं मिलता था।

गौठान से जुड़ने के बाद अब नियमित आय का साधन मिल गया है। स्वयं का काम करने से आत्मविश्चास तो आया, साथ ही आत्मसम्मान भी जागा है। जो कमाई हुई, उससे उन्होने घर में टाईल्स लगवाया और बच्चों के लिए सायकल खरीदी, घर चलाने में भी मदद करती है। श्रीमती वर्मा मुख्यमंत्री को धन्यवाद देती है और कहती है कि उनके समूह की महिलाओं ने सोचा भी नहीं था कि गौठान से जुड़कर कोई रोजगार मिल सकता है और इससे कोई आत्मनिर्भर हो सकता है। श्रीमती राधाबाई वर्मा कहती हैं कि वे तीन साल से समूह से जुड़ी है। अब खुद का काम कर रही है। अच्छा लग रहा है। अपने पैरों पर खड़ी हैं। इस कमाई से उन्होंने पायल लिया है।

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